देश में ₹300 तो विदेशों में ₹1500 किलो काला नमक चावल, वैशाली के किसानों की नई पहचान बना 'बुद्ध का महाप्रसाद'

Kalanamak Rice : काला नमक चावल का इतिहास अत्यंत प्राचीन है. माना जाता है कि इसकी खेती उत्तर प्रदेश के सिद्धार्थनगर जिले में गौतम बुद्ध के काल से की जाती रही है. चीनी यात्री फाह्यान के यात्रा वृत्तांत में भी इस चावल का उल्लेख मिलता है. ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व के कारण इसे महात्मा बुद्ध का महाप्रसाद भी कहा जाता है.

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  • बिहार के वैशाली जिले के लालगंज प्रखंड के नामीडीह गांव में काला नमक चावल की खेती बड़े पैमाने पर हो रही है.
  • काला नमक चावल का इतिहास गौतम बुद्ध के काल से जुड़ा हुआ है और इसका उल्लेख फाह्यान की यात्रा में भी मिलता है.
  • इस चावल में शुगर कम और जिंक, आयरन तथा प्रोटीन की मात्रा सामान्य चावल से कहीं अधिक होती है.
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वैशाली:

बिहार के वैशाली के लालगंज प्रखंड के नामीडीह गांव में सुगंध, स्वाद और सेहत से भरपूर काला नमक चावल की खेती इलाके में चर्चा का विषय बनी हुई है. यहां के किसान बड़े पैमाने पर इस खास किस्म के धान की खेती कर रहे हैं, जो न केवल स्थानीय बाजार बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी अपनी पहचान बना रहा है.

गौतम बुद्ध से जुड़ा है काला नमक चावल

काला नमक चावल का इतिहास अत्यंत प्राचीन है. माना जाता है कि इसकी खेती उत्तर प्रदेश के सिद्धार्थनगर जिले में गौतम बुद्ध के काल से की जाती रही है. चीनी यात्री फाह्यान के यात्रा वृत्तांत में भी इस चावल का उल्लेख मिलता है. ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व के कारण इसे महात्मा बुद्ध का महाप्रसाद भी कहा जाता है.

कालानमक धान की खेती

सेहत के लिए बेहद लाभकारी

काला नमक चावल स्वाद और खुशबू में बासमती से भी अधिक उत्कृष्ट माना जाता है. यह घी जैसा मुलायम होता है और इसकी खुशबू बेहद आकर्षक होती है. विशेषज्ञों के अनुसार नइसमें शुगर बेहद कम होती है. जिंक 4 गुना, आयरन 3 गुना और प्रोटीन 2 गुना अधिक पाया जाता है. इसमें मौजूद एंथोसायनिन एंटीऑक्सिडेंट हृदय रोग से बचाव में सहायक है ब्लड प्रेशर नियंत्रण, खून की कमी और त्वचा स्वास्थ्य के लिए भी यह लाभकारी है.

वैशाली की मिट्टी बनी वरदान

किंवदंतियों के अनुसार बौद्ध काल में बिहार का वैशाली क्षेत्र भी काला नमक चावल के लिए प्रसिद्ध था. गंगा और नारायणी नदियों से घिरी यह उपजाऊ भूमि, जिसके बीच से बाया और नून नदियां बहती हैं. इस चावल की गुणवत्ता और खुशबू बनाए रखने में अहम भूमिका निभाती है.

जीआई टैग और अंतरराष्ट्रीय मांग...

काला नमक चावल को वर्ष 2013 में जीआई टैग प्रदान किया गया था, जिससे सिद्धार्थनगर और आसपास के क्षेत्रों को इसकी आधिकारिक मान्यता मिली. आज यह चावल कंबोडिया, थाईलैंड, म्यांमार, भूटान, श्रीलंका, जापान, ताइवान और सिंगापुर जैसे देशों में निर्यात किया जा रहा है. विदेशों में इसकी कीमत 1500 रुपये प्रति किलो तक है, जबकि देश में यह 300 रुपये प्रति किलो तक बिक रहा है. 

बिहार में पहली बार सफल खेती...

बताया जाता है कि बिहार में पहली बार वैशाली जिले के लालगंज प्रखंड के नामीडीह गांव के प्रगतिशील किसान जितेंद्र सिंह ने काला नमक धान की खेती की शुरुआत की. इन्हें कई राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित भी किया जा चूका है और अब आगामी 23दिसम्बर को दिल्ली मे नेशनल किसान कॉन्क्लेव में व्यखान देंगे.

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गौरतलब है कि पहले इसकी लंबी किस्म तेज हवा और बारिश में गिर जाती थी. लेकिन अब भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (IARI) और आचार्य नरेंद्र देव कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, अयोध्या के संयुक्त प्रयास से इसकी बौनी किस्म विकसित की गई है, जिसे नाम दिया गया है, 'पूसा नरेंद्र काला नमक'

कौशल किशोर की रिपोर्ट
 

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