बिलकीस बानो केस के दोषियों की रिहाई पर जस्टिस यूडी साल्वी ने कहा, यह गैंगरेप से भी ज्यादा खराब

पूर्व जज जस्टिस यूडी साल्वी ने एनडीटीवी से कहा- रिहाई लोकतंत्र के लिए अच्छी नहीं, विचारधारा की गुलामी गलत है, बिलकीस बानो मामले में दोषियों ने धर्म को भी शर्मसार किया

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जस्टिस यूडी साल्वी ने ने 2008 में बिलकीस बानो केस में दोषियों को सजा सुनाई थी.

नई दिल्ली:

बिलकीस बानो मामले (Bilkis Bano case) में आज सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में सुनवाई हुई. इस मामले में पूर्व जज जस्टिस यूडी साल्वी (Justice UD Salvi) ने एनडीटीवी से बातचीत में कहा कि किसी को क्षमादान देना राज्य सरकार का अधिकार है. लेकिन किस आधार पर दिया गया है यह बड़ा सवाल है. साथ ही उन्होंने कहा कि विचारधारा की गुलामी गलत है. बिलकीस बानो मामले में दोषियों ने धर्म को भी शर्मसार किया है.

पूर्व जज जस्टिस यूडी साल्वी ने 2008 में बिलकीस बानो केस में दोषियों को सजा सुनाई थी. जस्टिस साल्वी कहा कि, रिहाई करने का अधिकार राज्य सरकार के पास होता है, लेकिन इसके लिए एक प्रक्रिया है. इस प्रक्रिया में ट्रायल कोर्ट का ओपीनियन और रिकार्ड, कागज़, एविडेंस उनको मंगाना पड़ता है.  

उन्होंने कहा कि, यह सीबीआई द्वारा की गई जांच थी, तो इसे केंद्र सरकार के मत पर ध्यान देना होता है, उसी के बाद राज्य सरकार रिहाई कर सकती है. तो ये डिपेंड करता है कि उन्होंने ये किया या नहीं? इसलिए मैं नहीं कह सकता, लेकिन एक आम आदमी की तरह ये लगेगा कि ऐसे कैसे हुआ? 

जस्टिस साल्वी ने कहा कि, गैंगरेप अलग है, रेप और गैंग रेप में फर्क है. मॉब होना, मॉब के साथ आना, यह सबसे बुरी चीज़ है. यह दिखाता है कि लोग बदले हैं. यह लोकतंत्र के लिए अच्छा नहीं, यह गैंगरेप से ज्यादा खराब है. 

पूर्व न्यायमूर्ति ने कहा कि, उन्होंने (दोषियों) खुलकर यह सब किया, इससे पता चलता है कि उनको किसी की भी कदर नहीं है. हिंदुत्व का नाम लेकर ये काम करते हैं. हिन्दू धर्म में ऐसी कई बात हैं जो औरतों को ऊंचा स्थान देती हैं. उनका यह स्थान उपनिषद से आया है. हिन्दू धर्म का ये मूल सिद्धांत है. 
इससे हिन्दू धर्म को शर्म आई.  

उन्होंने कहा कि, यह कहना अच्छा नहीं है कि वे बेगुनाह हैं, क्योंकि यह न्याय प्रक्रिया पर सवाल उठाता है. ये सब ट्रायल से होता है, वे सुप्रीम कोर्ट में भी गिल्टी पाए गए हैं. यह धर्म और न्याय के लिए शर्मनाक है. यह मामला कोर्ट में गया है तो कोर्ट ही तय करेगा.  

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जस्टिस साल्वी ने कहा कि, कौन लोग किस विचारधारा का है, इससे फर्क नहीं पड़ना चाहिए. पहले लोगों में इंसानियत की ज़रूरत है. कानून के काम करने की ज़रूरत है. विचारधारा का गुलाम होना बेकार है.

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