न हो न्यायाधीशों को डराने की कोशिश... जस्टिस स्वामीनाथन महाभियोग मामले पर सुप्रीम कोर्ट, HC के पूर्व जज

मद्रास हाई कोर्ट के जस्टिस जी.आर. स्वामीनाथन के खिलाफ लाए जा रहे महाभियोग प्रस्ताव की देशभर के जजों ने कड़ी निंदा की है. जजों ने संयुक्‍त बयान में कहा गया है कि किसी निर्णय से असहमति हो, तो उसका समाधान कानूनी अपील और तर्कपूर्ण आलोचना है न कि न्यायाधीशों को डराने की कोशिश.

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  • SC और HC के पूर्व न्यायाधीशों ने मद्रास हाई कोर्ट के जस्टिस स्वामीनाथन के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव की निंदा की
  • जजों के संयुक्‍त बयान में कहा गया कि कुछ सांसदों और वरिष्ठ वकीलों द्वारा यह कदम राजनीतिक प्रेरित है
  • बयान में आपातकाल, केशवानंद भारती मामले जैसे उदाहरण देकर राजनीतिक दबाव से लोकतंत्र कमजोर होने की बात कही गई है
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नई दिल्‍ली:

सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के पूर्व न्यायाधीशों ने एक संयुक्त बयान जारी कर मद्रास हाई कोर्ट के जस्टिस जी.आर. स्वामीनाथन के खिलाफ लाए जा रहे महाभियोग प्रस्ताव की कड़ी निंदा की है. सुप्रीम कोर्ट और विभिन्न हाई कोर्ट के 56 रिटायर्ड जजों ने साझा बयान जारी किया है. बयान में कहा गया है कि कुछ सांसदों और वरिष्ठ वकीलों द्वारा उठाया गया यह कदम राजनीतिक प्रेरित है और इसका उद्देश्य न्यायपालिका को डराना है, जबकि महाभियोग जैसी संवैधानिक प्रक्रिया का इस्तेमाल केवल दुर्लभ और अत्यंत गंभीर मामलों में ही होना चाहिए.

जब अदालतों के फैसले कुछ राजनीतिक हितों के अनुकूल नहीं रहे

संयुक्त बयान में इतिहास से उदाहरण देते हुए कहा गया है कि आपातकाल काल की राजनीतिक दखलअंदाजी, केशवानंद भारती मामले के बाद जजों की सुपरसैशन और न्यायमूर्ति एच.आर. खन्ना की उपेक्षा की गई. ये सभी मामले दर्शाते हैं कि राजनीतिक दबाव कैसे लोकतांत्रिक संस्थाओं को कमजोर करता है. पूर्व न्यायाधीशों ने यह भी कहा कि हाल के वर्षों में जब-जब अदालतों के फैसले कुछ राजनीतिक हितों के अनुकूल नहीं रहे, तब शीर्ष न्यायाधीशों और प्रमुख न्यायाधीशों को बदनाम करने की कोशिशें हुई हैं. 

न हो न्यायाधीशों को डराने की कोशिश

इसमें न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा, रंजन गोगोई, एस.ए. बोबडे, डी.वाई. चंद्रचूड़ और मौजूदा CJI सूर्यकांत जैसे नामों का संदर्भ शामिल है. पूर्व न्यायाधीशों ने सांसदों, बार, नागरिक समाज और आम नागरिकों से अपील की है कि वे ऐसे कदमों को अस्वीकार करें और न्यायपालिका की स्वतंत्रता को मजबूती से संरक्षित करें. उनका कहना है कि न्यायिक जवाबदेही संवैधानिक मूल्यों और न्यायिक प्रक्रिया के भीतर तय होती है न कि राजनीतिक दबाव या महाभियोग की धमकी से. बयान का मुख्य संदेश है कि किसी निर्णय से असहमति हो, तो उसका समाधान कानूनी अपील और तर्कपूर्ण आलोचना है न कि न्यायाधीशों को डराने की कोशिश.

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