कांग्रेस (Congress) के पूर्व नेता और एक दिन पहले ही बीजेपी (BJP) में शामिल हुए जितिन प्रसाद (Jitin Prasada) ने अपने फैसले का बचाव किया और अपने पूर्व सहयोगी कपिल सिब्बल (Kapil Sibal) के व्यक्तिगत लाभ के लिये की गई ‘प्रसाद की राजनीति' वाली टिप्पणी पर पलटवार भी किया. जितिन प्रसाद ने NDTV से एक इंटरव्यू में कहा, 'वह (कपिल सिब्बल) बहुत वरिष्ठ नेता है. कोई विचारधारा नहीं है. केवल एक विचारधारा राष्ट्र हित को लेकर है. जब कांग्रेस शिवसेना के साथ गठबंधन कर रही थी तब कौन सी विचारधारा थी. जब कांग्रेस बंगाल में वाम दलों के साथ गठबंधन कर रही थी तब कौन सी विचारधारा थी जबकि ठीक उसी समय केरल में वो उनके खिलाफ चुनाव लड़ रहे थे.''
''मेरे जैसे मामूली शख्स पर टिप्पणी करने से कांग्रेस की किस्मत नहीं बदल जाएगी.''
इससे पहले कपिल सिब्बल ने जितिन प्रसाद के एक ऐसी पार्टी में जाने की निंदा की थी जिसका उन्होंने हमेशा विरोध किया.
सिब्बल ने NDTV से कहा था, ''भारतीय राजनीति में हम ऐसे मुकाम पर पहुंच गए हैं जहां इस तरह के फैसले विचारधारा पर कतई आधारित नहीं होते. वो उस पर आधारित होते हैं जिसे अब में 'प्रसाद की राजनीति' कहता हूं. पहले यह आया राम गया राम था.''
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जितिन प्रसाद और कपिल सिब्बल दोनों कांग्रेस के "जी -23" नेताओं में से थे, जिन्होंने पिछले साल सोनिया गांधी को पत्र लिखकर सामूहिक नेतृत्व सहित पार्टी में व्यापक सुधारों की सिफारिश की थी. कम से कम 1999 के बाद, जब जितिन प्रसाद के पिता जितेंद्र प्रसाद ने कांग्रेस के सोनिया गांधी के नेतृत्व को चुनौती दी और पार्टी अध्यक्ष के लिए उनके खिलाफ चुनाव लड़ा, इसे गांधी नेतृत्व के खिलाफ पार्टी में विद्रोह के सबसे असाधारण कृत्यों में से एक माना जाता था.
प्रसाद ने गांधी परिवार पर कटाक्ष करते हुए कहा, 'गांधी परिवार पर कटाक्ष करते हुए जितिन ने कहा, 'बीजेपी अल्पकालीन उद्देश्य के लिए लोगों की छवि खराब नहीं करती, यह वास्तविक रूप में नेशनल पार्टी है, इसका ध्यान दीर्घकालीन लक्ष्यों पर होता है.'
उन्होंने यह भी दावा कि किया कि उन्होंने यह फैसला काफी सोच समझ कर लिया. उन्होंने कहा, 'वर्षों से एक राजनेता के रूप में मेरी भूमिका और लोगों की मदद करना कम होता जा रहा था. मैं नेता के लिए काम नहीं कर पा रहा था, लेकिन आज मैं लोगों के लिए पूरे दिल से काम करने की योजना बना रहा हूं.'
बीजेपी जितिन प्रसाद को, जो कि उत्तर प्रदेश में एक प्रमुख ब्राह्मण चेहरे हैं, अगले साल होने वाले यूपी चुनावों से पहले कोई महत्वपूर्ण भूमिका दे सकती है. पार्टी राज्य में ब्राह्मणों के एक वर्ग की नाराजगी को दूर करने के लिए कड़ी मेहनत कर रही है, जो महसूस करते हैं कि ठाकुरों की तुलना में उनकी स्थिति कम हो गई है; योगी आदित्यनाथ ठाकुर हैं.
पिछले वर्ष जितिन प्रसाद ने 'ब्राह्मण चेतना' नाम से एक संगठन भी बनाया था जो ज्यादा कामयाब नहीं हो सका. पूर्व केंद्रीय मंत्री को लगता है कि आखिरकार अब वो वह काम कर सकते हैं जो पहले कांग्रेस में रहते हुए नहीं कर सके.
उन्होंने कहा, "मैं ब्राह्मण चेतना के गठन में शामिल लोगों में से एक था. मेरा उद्देश्य इसे गैर-राजनीतिक रखना था. हम यह तय नहीं कर रहे हैं कि समुदाय के वोट कहां जाते हैं. यह समुदाय के खिलाफ अत्याचारों और समस्याओं के समाधान के लिए था. मैं बीजेपी में रहकर ऐसा करने की स्थिति में हूं.