झारखंड (Jharkhand) सरकार ने राज्य में प्रदूषण (Pollution) फैलाने वाली औद्योगिक इकाइयों (Industries) के नाम सार्वजनिक करने के लिए एक वेबसाइट शुरू की है. यह कदम उद्योगों को वायुमंडल में प्रदूषण फैलाने पर जवाबदेह ठहराने के लिए है. झारखंड राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (JMPCB) ने कहा है कि, "यह डेटा का सार्वजनकीकरण और पारदर्शिता मंच झारखंड के स्टार रेटिंग प्रोग्राम का हिस्सा है. इसमें उद्योगों को उनके पीएम उत्सर्जन के आधार पर एक स्टार से पांच स्टार तक क्लासीफाइड किया जाता है. जो सबसे अधिक प्रदूषण फैलाने वाले उद्योग हैं उनको एक स्टार मिलता है. नियामकों के प्रदूषण मानकों के अनुसार सबसे कम प्रदूषण करने वालों को फाइव स्टार दिए जाते हैं."
जेएमपीसीबी ने एक विज्ञप्ति में कहा है कि, स्टार रेटिंग कार्यक्रम के लिए वेबसाइट www.jspcb.info का गुरुवार को रांची में अनावरण किया गया. इसके जरिए उपयोगकर्ताओं को यह पता लगाने में मदद मिलती है कि राज्य में कौन से उद्योग प्रदूषण फैला रहे हैं.
जेएसपीसीबी ने वेबसाइट पर बताया है कि, "स्टार रेटिंग प्रोग्राम एक पारदर्शी पहल है जिसका उद्देश्य औद्योगिक पार्टिकुलेट मैटर (PM) पर जानकारी को समझने योग्य तरीके से जाहिर करना है. इस पहल का उद्देश्य उद्योगों को उनके पीएम उत्सर्जन के लिए जवाबदेह ठहराना है, जिससे उन्हें ऐसी प्रौद्योगिकियों को अपनाने के लिए प्रोत्साहित किया जा सके जिनसे प्रदूषण कम हो."
सरल शब्दों में पार्टिकुलेट मैटर या पीएम हवा में मौजूद सभी कणों का एक सामूहिक नाम है. जबकि धूल जैसे बड़े कणों पर ध्यान आसानी से जाता है लेकिन छोटे कण जो वाहनों के उत्सर्जन, सिगरेट के धुएं आदि से निकलते हैं, दिखाई नहीं देते हैं.
पार्टिकुलेट मैटर को आमतौर पर आकार के आधार पर वर्गीकृत किया जाता है और उसी के अनुसार इन्हें चार समूहों में वर्गीकृत किया जाता है - PM10, PM2.5, PM1 और अल्ट्रा-फाइन पार्टिकुलेट मैटर.
हवा में खतरनाक कण कई स्रोतों से आते हैं. बिजली संयंत्रों, परिवहन क्षेत्र में जीवाश्म ईंधन की खपत, ग्रामीण क्षेत्रों में बायोमास जलाने, कचरा जलाने, निर्माण स्थलों से धूल, कच्ची सड़कों, खेतों, हमारे घर में गंदे डोरमैट और पर्दे तक सभी स्थानों से उठने वाले कण वायु प्रदूषण को बढ़ाते हैं.
विभिन्न पार्टिकुलेट मैटर जीवन पर अपना प्रभाव थोड़े समय के लिए या हमेशा के लिए छोड़ सकते है. खांसी, छींक, सिरदर्द, चिंता, प्रतिरक्षा स्तर का गिरना जैसे लक्षणों के साथ एक व्यक्ति नियमित रूप से मौसमी बीमारियों की चपेट में आ जाता है. इसके दीर्घकालिक प्रभाव से हृदय रोग, स्ट्रोक, फेफड़े की क्षमता घटना, फेफड़ों का कैंसर, अस्थमा और ब्रोंकाइटिस जैसे श्वसन रोग हो सकते हैं.
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