कल्पना, जयराम,चंद्रदेव... सहित इन चेहरों की झारखंड विधानसभा चुनाव में क्यों हो रही है इतनी चर्चा? जानिए पूरी कहानी

झारखंड की राजनीति में पिछले 2-3 साल में कई नए नेताओं ने अपने आपको स्थापित किया है. डिजिटल प्लेटफॉर्म और ग्राउंड जीरो दोनों ही जगहों पर इन नेताओं के साथ लोगों की भीड़ उमड़ती रही है.

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नई दिल्ली:

झारखंड विधानसभा चुनाव (Jharkhand assembly elections) की तारीख की घोषणा हो गयी है. चुनाव आयोग ने 2 चरण में राज्य में विधानसभा चुनाव करवाने का फैसला लिया है. पहले चरण के लिए 13 नवंबर और दूसरे चरण में 20 नवंबर को वोट डाले जाएंगे. 23 तारीख को मतों की गिनती होगी. पूरे देश की नजर इस चुनाव पर है. हालांकि मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन, बीजेपी नेता और राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी सहित तमाम दिग्गजों के बीच कुछ ऐसे भी चेहरे हैं.

जिन चेहरों पर पूरे देश की नजर रहेगी उनमें सबसे पहला नाम कल्पना मुर्मू सोरेन का आता है जिन्होंने बहुत ही कम समय में झारखंड की राजनीति में एक अलग पहचान बनायी है. इसी तरह जयराम महतो, बाबूलाल सोरेन और चंद्रदेव महतो पर भी पूरे देश की नजर रहेगी.

कल्पना सोरेन ने बहुत ही कम समय में किया अपने आपको स्थापित
झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की पत्नी कल्पना सोरेन ने बहुत ही कम समय में झारखंड की राजनीति में अपने आपको स्थापित किया है. हेमंत सोरेन के सीएम बनने के बाद भी कल्पना सोरेन ने राजनीति से अपने आपको अलग रखा था. जब जेल जाने के कारण हेमंत सोरेन को पद छोड़ना पड़ा उस समय भी कल्पना सोरेन की राजनीति में डायरेक्ट एंट्री नहीं हुई थी. हालांकि बाद में गांडेय विधानसभा सीट पर हुए उपचुनाव के माध्यम से उन्होंने राजनीति में एंट्री मारी.

महज पिछले 4-5 महीने में ही कल्पना सोरेन ने अपने आपको पूरी तरह से राजनीति में स्थापित कर लिया है. सोशल मीडिया पर उनके हजारों की संख्या में फॉलोअर्स हैं. महिला वोटर्स के बीच भी उनकी अच्छी पकड़ मानी जाती है. सूत्रों के अनुसार मंइयां सम्मान योजना के पीछे भी कल्पना सोरेन की रणनीति ही बतायी जा रही है. इस विधानसभा चुनाव में पूरे देश की नजर कल्पना सोरेन पर होगी. कई विधानसभा सीटों पर अभी से ही उनकी सभा के लिए प्रत्याशियों की तरफ से तैयारी की जा रही है. 

जयराम महतो ने पुराने मुद्दों को दी नई धार
जेएलकेएम के नेता जयराम महतो इस विधानसभा चुनाव में लगभग 1 दर्जन सीटों पर प्रभावी साबित हो सकते हैं. जयराम महतो ने झारखंड में स्थानीयता और भाषा जैसे मुद्दों के दम पर पिछले 2-3 सालों में छोटानागपुर और कोल्हान के कुछ क्षेत्रों में अपनी पकड़ बनायी है. हाल ही में उन्होंने अपनी पार्टी का भी गठन किया है. लोकसभा चुनाव में भी गिरिडीह सीट पर उन्होंने 3 लाख से अधिक वोट लाकर लोगों को चौका दिया था. कई अन्य सीटों पर भी उनके उम्मीदवारों ने अच्छा प्रदर्शन किया था. हालांकि हाल के दिनों में उनकी पार्टी में हुई टूट के कारण उन्हें परेशानी का सामना करना पड़ रहा है. युवाओं के बीच उनकी अच्छी पकड़ है. झारखंड की राजनीति में जयराम महतो की पार्टी को आजसू पार्टी के लिए खतरे के तौर पर देखा जा रहा है. 

ए.के. रॉय की विरासत संभालने आगे आए हैं चंद्रदेव महतो
झारखंड अलग राज्य आंदोलन को 60,70 और 80 की दशक में ए.के. रॉय ने नई दिशा दी थी. उनके प्रयासों से ही स्थापित झारखंड मुक्ति मोर्चा ने बढ़ चढ़कर झारखंड आंदोलन में हिस्सा लिया. एक दौर में शिबू सोरेन, बिनोद बिहारी महतो और ए.के रॉय की तिकड़ी की चर्चा देश भर में होती थी. ए.के. रॉय शिबू सोरेन के कट्टर प्रशंसक थे और वो झारखंड की कमान आदिवासियों के हाथ में जाए इसके सबसे बड़े पैरवीकार रहे थे. 

ए.के रॉय के निधन के बाद उनकी पार्टी का हाल ही में भाकपा माले में विलय हो गया. ए.के. रॉय की पार्टी के नेता रहे चंद्रदेव महतो, ए.के रॉय की परंपरागत सीट सिंदरी से इस चुनाव में भाकपा माले की टिकट पर उतरने वाले हैं.

चंद्रदेव महतो बेहद ही इमानदार और ए.के. रॉय की ही तरह फक्कड़ स्वभाव के माने जाते हैं. चंद्रदेव महतो ने बतौर शिक्षक रहते हुए भी सिंदरी में जमकर काम किया और उन्होंने शिक्षक की नौकरी छोड़कर राजनीति में एंट्री ली है. वो उन तमाम पुराने मुद्दों को लेकर आगे बढ़ रहे हैं जिन्हें एक दौर में बिनोद बिहारी महतो, शिबू सोरेन और ए.के रॉय उठाते रहे थे.

झारखंड की राजनीति में सिंदरी सीट इस चुनाव में चंद्रदेव महतो के द्वारा उठाए जा रहे मुद्दों के कारण तेजी से चर्चित हो रहा है. राजनीति के जानकारों का मानना है कि भाकपा माले के इंडिया गठबंधन में शामिल होने के बाद उत्तरी छोटानागपुर के क्षेत्र में चुनाव परिणाम पर भी इसका असर पड़ सकता है.  

चंपई के बेटे बाबूलाल सोरेन ने मान सम्मान को बनाया मुद्दा
हेमंत सोरेन के जेल जाने के बाद जेएमएम की तरफ से झारखंड के मुख्यमंत्री बने चंपई सोरेन ने बाद में विद्रोह कर दिया और वो बीजेपी में शामिल हो गए. चंपई सोरेन के बीजेपी में एंट्री और जेएमएम में विद्रोह के पीछे सबसे बड़े सूत्रधार के तौर पर बाबूलाल सोरेन का नाम सामने आया. बाबूलाल सोरेन चंपई सोरेन के पुत्र हैं. उन्होंने चंपई सोरेन को सीएम पद से हटाने के जेएमएम के तरीके पर सवाल उठाया था और कहा जाता है कि बीजेपी के साथ दोस्ती के लिए भी पूरी कहानी के प्रमुख सूत्रधार वो रहे थे. 

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बाबूलाल सोरेन के घाटशिला विधानसभा सीट से चुनाव लड़ने की चर्चा है. हालांकि बीजेपी की तरफ से प्रत्याशियों के नाम की घोषणा नहीं हुई है. लेकिन वो लंबे समय से क्षेत्र में सक्रिय रहे हैं. चंपई सोरेन के विधानसभा क्षेत्र में भी कार्यकर्ताओं की कमान बाबूलाल सोरेन के हाथ में ही लंबे समय से रही है. हालांकि जेएमएम की तरफ से उनके खिलाफ बड़ी तैयारी करने की योजना है. ऐसे में पूरे देश के लोगों की नजर है कि क्या बाबूलाल सोरेन राजनीति के मैदान में जोरदार एंट्री मार पाएंगे? 

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