जम्मू कश्मीर चुनाव : बदलते सूबे में बदलती सियासत; वंशवाद कहां से कहां तक, नए दल बनाएंगे नए समीकरण

जम्मू कश्मीर में पहले गिनी चुनी स्थानीय राजनीतिक पार्टियां थीं जिनमें से अधिकांश कश्मीर में अलगाववादियों के सुर में सुर मिलाए रहती थीं.

विज्ञापन
Read Time: 7 mins
श्रीनगर का लाल चौक (प्रतीकात्मक तस्वीर).

जम्मू-कश्मीर में जल्द ही विधानसभा चुनाव होंगे और अक्टूबर के पहले सप्ताह में नतीजे आने के बाद इस केंद्र शासित प्रदेश की पहली सरकार अस्तित्व में आ जाएगी. आर्टिकल 370 समाप्त होने और जम्मू कश्मीर का विशेष राज्य का दर्जा खत्म होने के बाद बनाए गए केंद्र शासित प्रदेश का यह पहला विधानसभा चुनाव है. जम्मू कश्मीर में 10 साल बाद विधानसभा चुनाव हो रहे हैं. 

जम्मू कश्मीर का विशेष राज्य का दर्जा खत्म होने और इसे अन्य भारतीय राज्यों की श्रेणी में लाए जाने के बाद यहां के राजनीतिक परिदृश्य में काफी बदलाव आया है. पहले यहां गिनी चुनी स्थानीय राजनीतिक पार्टियां थीं जिनमें से अधिकांश कश्मीर में अलगाववादियों के सुर में सुर मिलाए रहती थीं. यह उनकी चुनाव जीतने के लिए राजनैतिक मजबूरी भी होती थी.

उभरने लगीं नई क्षेत्रीय पार्टियां 

हालांकि जम्मू-कश्मीर की बदली हुई राजनीतिक फिजां में अब नए क्षेत्रीय दल उभरने लगे हैं जो कि यहां लोकतंत्र मजबूत होने का संकेत दे रहे हैं. जम्मू कश्मीर में पिछले तीन सालों के दौरान करीब एक दर्जन नए क्षेत्रीय राजनीतिक दल उभरकर सामने आए हैं. इन सभी दलों ने चुनाव आयोग में अपना रजिस्ट्रेशन भी करा लिया है. इनमें से कुछ दल विधानसभा चुनाव लड़ सकते हैं.

Advertisement

जम्मू कश्मीर का अगस्त 2019 में विशेष राज्य दर्जा समाप्त होने से पहले यहां मुख्य रूप से नेशनल कॉन्फ्रेंस (NC), पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (PDP), पीपुल्स कॉन्फ्रेंस और जम्मू कश्मीर पैंथर्स पार्टी सक्रिय दल थे जो कि हमेशा यहां की सियासत के केंद्र में बने रहे. इसके अलावा डोगरा स्वभाविमान संगठन, पीपुल्स डेमोक्रेटिक फ्रंट, अवामी लीग और अवामी नेशनल कॉन्फ्रेंस जैसे दल भी आंशिक रूप से सक्रिय बने रहे. 

Advertisement

संविधान और लोकतंत्र के प्रति बढ़ती आस्था

राज्य में नई पार्टियों का गठन होना, खास तौर पर कश्मीर के लोगों में देश के संविधान और लोकतंत्र के प्रति आस्था बढ़ने का संकेत है. यह दल राज्य में परिवारवाद और वंशवाद के सहारे सियासत करने वाले पुराने दलों का विकल्प बन सकते हैं. शायद यही कारण है कि राज्य की नेशनल कांफ्रेंस और पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (PDP) जैसी पार्टियां नए दलों के आने से नाराज दिख रही हैं. 

Advertisement

जम्मू कश्मीर में तीन साल के दौरान पूर्व मुख्यमंत्री गुलाम नबी आजाद की प्रोग्रेसिव आजाद पार्टी सहित कई नए राजनीतिक दल बन गए हैं. इनमें नेशनल अवामी यूनाइटेड पार्टी, नेशनल डेमोक्रेटिक पार्टी, अमन और शांति तहरीके जम्मू कश्मीर, वायस ऑफ लेबर पार्टी, हक इंसाफ पार्टी, जम्मू कश्मीर पीपुल्स मूवमेंट, इक्कजुट जम्मू, गरीब डेमोक्रेटिक पार्टी और जम्मू कश्मीर नेशनलिस्ट पीपुल्स फ्रंट जैसे दल शामिल हैं. 

Advertisement

राज्य के दो हिस्सों की राजनीति में विरोधाभास

जम्मू-कश्मीर में इसका विशेष दर्जा खत्म होने से पहले यहां की राज्य केंद्रित राजनीति में जम्मू और कश्मीर के बीच विरोधाभास बना रहा. कश्मीर में जहां अलगाववाद की हवा चलती रही वहीं जम्मू में अखंड भारत का नारा हमेशा बुलंद रहा. यही कारण है कि यहां के राजनीतिक दलों की विचारधाराओं में बहुत असमानता देखने को मिलती रही. डोगरा स्वभाविमान संगठन और इक्कजुट जम्मू जैसे दल डोगरा समुदाय की जमीन जम्मू पर केंद्रित रहे हैं. बाकी जो प्रमुख पार्टियां हैं वे कश्मीर केंद्रित रही हैं.

जम्मू कश्मीर में राजनीतिक वर्चस्व वंशानुगत बना रहा है. यहां सबसे पहले सन 1932 में शेख अब्दुल्ला और चौधरी गुलाम अब्बास ने ऑल जम्मू कश्मीर मुस्लिम कॉन्फ्रेंस पार्टी स्थापित की थी. सन 1939 में इसका नाम बदलकर नेशनल कॉन्फ्रेंस किया गया. देश की आजादी के बाद कई दशकों तक नेशनल कॉन्फ्रेंस ठीक उसी तरह जम्मू-कश्मीर की सियासत के केंद्र में रही, जैसे देश में कांग्रेस पार्टी. शेख अब्दुल्ला का सन 1982 में देहावसान हो गया और इसके बाद पार्टी की बागडोर उनके बेटे डॉ फारूक अब्दुल्ला के हाथ में आ गई. 

जम्मू कश्मीर के प्रधानमंत्री थे शेख अब्दुल्ला! 

शेख अब्दुल्ला जम्मू-कश्मीर के प्रधानमंत्री रहे थे. जम्मू कश्मीर में सन 1964 तक राज्य की सत्ता का सर्वोच्च पद प्रधानमंत्री का होता था, जो कि मुख्यमंत्री के समतुल्य होता था. इसके अलावा एक और पद सदर ए रियासत होता था जो कि राज्यपाल के समतुल्य होता था. सन 1964 में केंद्र सरकार ने पदों के नाम और अधिकार में बदलाव किया और प्रधानमंत्री की जगह मुख्यमंत्री कहा जाने लगा. 

शेख अब्दुल्ला की राजनीतिक विरासत फारूक अब्दुल्ला को मिली और वे मुख्यमंत्री बने. सन 2002 में शेख अब्दुल्ला की तीसरी पीढ़ी में फारूक अब्दुल्ला के पुत्र उमर अब्दुल्ला के हाथ में पार्टी की कमान आई. हालांकि सन 2009 में एक बार फिर फारूक अब्दुल्ला ने पार्टी का नेतृत्व संभाल लिया.

पार्टी की विरासत तीसरी पीढ़ी के पास

फारूक अब्दुल्ला सन 1982 से 2002 तक नेशनल कॉन्फ्रेंस के अध्यक्ष रहे और फिर 2009 के बाद से पार्टी के अध्यक्ष हैं. फारूक तीन बार सन 1982 से 84 तक, सन 1986 से 90 तक और सन 1996 से 2002 तक जम्मू कश्मीर के मुख्यमंत्री रहे. फारूक सन 2017 में श्रीनगर से लोकसभा सांसद चुने गए थे. राज्य की सत्ता शेख अब्दुल्ला, फारूक अब्दुल्ला से होते हुए सन 2009 में उमर अब्दुल्ला के हाथ में आई. नेशनल कॉन्फ्रेंस के उपाध्यक्ष उमर अब्दुल्ला 2009 से 2015 तक राज्य के मुख्यमंत्री रहे. हालांकि इसके पहले वे 2001 से 2002 तक केंद्र सरकार में विदेश राज्यमंत्री भी रह चुके थे. उमर मुख्यमंत्री बनने से पहले 1998 से 2009 तक सांसद रहे थे. 
अब उमर अब्दुल्ला दोनों बेटों को राजनीति के मैदान में उतारने की तैयारी चल रही है. वे दोनों लोकसभा चुनाव अपने पिता का प्रचार करते हुए देखे गए थे. 

पीडीपी भी वंशवाद से मुक्त नहीं    

जम्मू कश्मीर में एक तरफ जहां नेशनल कॉन्फ्रेंस की बागडोर अब्दुल्ला परिवार संभालता रहा वहीं इस पार्टी की स्थापना के 66 साल बाद गठित हुई पार्टी पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) भी वंशवाद में फंसी रही है. पूर्व केंद्रीय गृह मंत्री मुफ्ती मोहम्मद सईद ने सन 1999 में पीडीपी का गठन किया था. सन 2016 में सईद का निधन हो गया. मुफ्ती मोहम्मद सईद सन 2015 से 2016 तक जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री रहे थे. इससे पहले वे 1989 से 1990 तक केंद्रीय गृह मंत्री रहे थे. वे 1986 से 1987 तक केंद्रीय पर्यटन मंत्री भी रहे थे. सईद 1998 से 1999 तक सांसद रहे थे. 

मुफ्ती मोहम्मद सईद के निधन के बाद उनकी बेटी महबूबा मुफ्ती पीडीपी प्रमुख बन गईं. महबूबा 2016 से 2018 तक मुख्यमंत्री रहीं. वे इससे पहले 2004 से 2009 तक और 2014 से 2016 तक सांसद भी रही थीं. अब महबूबा की बेटी इल्तिजा राजनीति में कदम रख चुकी हैं. वे बिजबेहरा से विधानसभा चुनाव लड़ रही हैं. 

वंशवाद सिर्फ प्रमुख दो पार्टियों तक ही सीमित नहीं है. राज्य की इत्तेहाद पार्टी के इंजीनियर रशीद ने बारामुला सीट पर उमर अब्दुल्ला को हराया था. अब चर्चा है कि उनके बेटे और भाई विधानसभा चुनाव लड़ने जा रहे हैं. पैंथर्स पार्टी के संस्थापक भीम सिंह का परिवार भी राजनीति में कदम बढ़ा रहा है.

कांग्रेस के बाद बीजेपी ने जम्मू कश्मीर में कदम जमाए

जम्मू कश्मीर में पूर्व में कांग्रेस के अलावा कोई अन्य राष्ट्रीय पार्टी अपनी राजनीतिक जमीन तैयार नहीं कर की थी. कांग्रेस ने इस राज्य में सन 1967 में और 1972 में जीत हासिल करके सरकार बनाई थी. इसके अलावा उसने 1983 और 1987 में नेशनल कॉन्फ्रेंस के साथ गठबंधन सरकार बनाई थी. बाद में बीजेपी ने खास तौर पर जम्मू संभाग में कदम जमाए और कश्मीर में भी पार्टी का विस्तार किया. बीजेपी ने पीडीपी के साथ गठबंधन सरकार भी बनाई थी. जून 2018 में बीजेपी के समर्थन वापस लेने से यह सरकार गिर गई थी. इसके बाद विधानसभा भंग कर दी गई और इसके एक साल बाद आर्टिकल 370 को हटा दिया गया. 

जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनाव तीन चरणों में 18 सितंबर, 25 सितंबर और एक अक्टूबर को होंगे. नतीजे चार अक्टूबर को घोषित किए जाएंगे.

यह भी पढ़ें -

जम्मू-कश्मीर चुनाव : PDP की पहली लिस्ट में महबूबा की बेटी इल्तिजा का नाम आते ही बगावत होने लगी

जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनाव का इंतजार खत्म, 18 सितंबर से 3 चरणों में होगा मतदान

Featured Video Of The Day
AAP Candidate List: AAP की पहली लिस्ट जारी, 11 में से 6 दल बदलुओं को दिए टिकट | Khabron Ki Khabar