"आदिवासियों को छूट तो मुस्लिमों को क्यों नहीं?": UCC विधेयक पर जमीयत का विरोध

मौलाना मदनी ने सवाल किया, " अगर संविधान के एक अनुच्छेद (Uttarakhand UCC Bill) के तहत अनुसूचित जनजातियों को कानून से अलग रखा जा सकता है, तो हमें संविधान के अनुच्छेद 25 और 26 के तहत धार्मिक आज़ादी क्यों नहीं दी जा सकती?

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Uttarakhand Uniform Civil Code: उत्तराखंड यूनिफॉर्म सिविल कोड बिल पर जमीयत उलेमा-ए-हिंद की नाराजगी. (प्रतीकात्मक फोटो)
नई दिल्ली:

उत्तराखंड विधानसभा में यूनिफॉर्म सिविल कोड बिल (Uttarakhand Uniform Civil Code Bill) पर आज से बहस शुरू हो रही है. इस बीच मुस्लिम संगठनों ने इस बिल का विरोध शुरू कर दिया है. मुस्लिम संगठन जमीयत उलेमा-ए-हिंद के प्रमुख मौलाना अरशद मदनी ने UCC विधेयक को भेदभावपूर्ण करार देते हुए कहा कि मुस्लिम समुदाय को ऐसा कोई कानून स्वीकार्य नहीं है, जो शरीयत के खिलाफ हो. उन्होंने कहा कि अगर अनुसूचित जनजाति को विधेयक के दायरे से बाहर रखा जा सकता है, तो फिर मुस्लिम समुदाय को छूट क्यों नहीं मिल सकती.

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"शरीयत के खिलाफ कोई कानून स्वीकार्य नहीं"

मौलाना मदनी ने एक बयान में कहा, "हमें ऐसा कोई कानून स्वीकार्य नहीं है, जो शरीयत के खिलाफ हो...सच तो यह है कि किसी भी धर्म को मानने वाला अपने धार्मिक कार्यों में किसी प्रकार का अनुचित हस्तक्षेप बर्दाश्त नहीं कर सकता." उन्होंने कहा कि आज उत्तराखंड विधानसभा में पेश किए गए समान नागरिक संहिता विधेयक में अनुसूचित जनजातियों को संविधान के प्रावधानों के तहत नए कानून में छूट दी गई है और यह तर्क दिया गया है कि संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत उनके अधिकारों को सुरक्षा प्रदान की गई है. 

UCC में नागरिकों के बीच भेदभाव क्यों?

मदनी ने सवाल किया, " अगर संविधान के एक अनुच्छेद के तहत अनुसूचित जनजातियों को इस कानून से अलग रखा जा सकता है, तो हमें संविधान के अनुच्छेद 25 और 26 के तहत धार्मिक आज़ादी क्यों नहीं दी जा सकती? उन्होंने कहा है कि संविधान के अनुच्छेद 25 और 26 के तहत नागरिकों के मौलिक अधिकारों को मान्यता देकर धार्मिक स्वतंत्रता की गारंटी दी गई है.  मौलाना मदनी ने दावा किया, "समान नागरिक संहिता मौलिक अधिकारों को नकारती है, अगर यह समान नागरिक संहिता है, तो फिर नागरिकों के बीच यह भेदभाव क्यों?"

विधानसभा में आज UCC बिल पर सुनवाई

उन्होंने यह भी कहा, "हमारी कानूनी टीम विधेयक के कानूनी पहलुओं की समीक्षा करेगी, जिसके बाद कानूनी कदम पर फैसला लिया जाएगा." बता दें कि उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने राज्य विधानसभा में मंगलवार को बहुप्रतीक्षित समान नागरिक संहिता (यूसीसी) विधेयक पेश किया, जिसमें बहुविवाह और 'हलाला' जैसी प्रथाओं को आपराधिक कृत्य बनाने तथा 'लिव-इन' में रह रहे जोड़ों के बच्चों को जैविक बच्चों की तरह उत्तराधिकार दिए जाने का प्रावधान है. 

ये जनजातियों ‘समान नागरिक संहिता' बिल से बाहर

यूसीसी विधेयक को पारित कराने के लिए बुलाये गए विधानसभा के विशेष सत्र के दूसरे दिन पेश ‘समान नागरिक संहिता, उत्तराखंड-2024' विधेयक में धर्म और समुदाय से परे सभी नागरिकों के लिए विवाह, तलाक, उत्तराधिकार, संपत्ति जैसे विषयों पर एक समान कानून प्रस्तावित है. हालांकि, प्रदेश में रह रही अनुसूचित जनजातियों को इसके दायरे से बाहर रखा गया है. 

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(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)
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