BJP किसे बनाएगी अगला उप राष्ट्रपति? जगदीप धनखड़ के इस्तीफे के बाद दौड़ तेज

संसद के मॉनसून सत्र के पहले दिन उप राष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के इस्तीफे के बाद उनके उत्तराधिकारी को लेकर कवायद भी शुरू हो गई है.

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Jagdeep Dhankhar
नई दिल्ली:

Jagdeep Dhankhar Resignation: जगदीप धनखड़ के उप राष्ट्रपति पद से इस्तीफा देने के बाद उनके उत्तराधिकारी को लेकर चर्चा भी तेज हो गई है. बीजेपी की अगुवाई वाले एनडीए का लोकसभा और राज्यसभा में पर्याप्त संख्याबल है, लिहाजा सरकार को कोई दिक्कत नहीं होने वाली है. धनखड़ के त्यागपत्र के बाद उनके उत्तराधिकारी को लेकर कयास लगने शुरू हो गए हैं. उप राष्ट्रपति बनने के पहले धनखड़ पश्चिम बंगाल के गवर्नर पद पर थे. कहा जा रहा है कि धनखड़ जैसे किसी राज्यपाल या संगठन का कोई मंझा हुआ नेता या किसी केंद्रीय मंत्री को ये जिम्मेदारी दी जा सकती है. बीजेपी के पास ऐसे नेताओं की पूरी फौज है.

धनखड़ के पहले एम वेंकैया नायडू बीजेपी के अध्यक्ष और पीएम मोदी की कैबिनेट में मंत्री भी रहे थे. उन्हें 2017 में उप राष्ट्रपति पद के लिए चुना गया था. बीजेपी के एक नेता ने कहा, हम अभी इस कवायद में जुटे हैं. मेरा मानना है कि पार्टी किसी एक व्यक्ति को चुनेगी, जो एक दमदार व्यक्तित्व और निर्विवादित छवि वाला हो. उन्होंने संकेत दिया कि किसी वरिष्ठ नेता को पार्टी इसके लिए प्राथमिकता दे सकती है.

राज्यसभा डिप्टी चेयरमैन हरिवंश जेडीयू के सांसद हैं. उन्हें भी एक संभावित उम्मीदवार के तौर पर देखा जा रहा है. वो उप सभापति की जिम्मेदारी वर्ष 2020 से संभाल रहे हैं और सरकार के विश्वासपात्र भी हैं. धनखड़ के 3 साल के कार्यकाल में राज्यसभा में विपक्षी दलों के साथ उनकी लगातार तीखी बहस हुईं, लेकिन कई बार विवादास्पद मुद्दों पर उनकी तीखी टिप्पणियों ने सरकार को भी कई बार असहज किया.

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इस बीच अचानक सोमवार रात को स्वास्थ्य कारणों का हवाला देते हुए धनखड़ ने अपना इस्तीफा राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को भेज दिया, जिसे स्वीकार भी कर लिया गया है. 74 साल के धनखड़ ने अगस्त 2022 में पदभार संभाला था और उनका कार्यकाल अभी 2027 तक था. उप राष्ट्रपति राज्यसभा के सभापति के तौर पर भी जिम्मेदारी संभालते हैं.

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धनखड़ का अचानक इस्तीफा राज्यसभा में सरकार के लिए हैरतभरे घटनाक्रम के बाद आया, जब इलाहाबाद हाईकोर्ट के जज यशवंत वर्मा को हटाने के लिए विपक्ष द्वारा प्रायोजित प्रस्ताव का नोटिस उन्हें सौंपा गया और उन्होंने सदन में इसका उल्लेख किया. यह घटनाक्रम सत्तारूढ़ गठबंधन के लिए एक झटका था, जिसने लोकसभा में इसी तरह का नोटिस दिया था और विपक्ष को भी इस पर भरोसे में लिया था.

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