पहली बार किसी CJI ने सभी सामग्री सार्वजनिक की : उपराष्ट्रपति धनखड़ ने यशवंत वर्मा मामले CJI के कदम की सराहना की

उपराष्ट्रपति धनखड़ राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग अधिनियम को रद्द करने के उच्चतम न्यायालय के अक्टूबर 2015 के फैसले के मुखर आलोचक रहे हैं. उन्होंने कहा कि विपक्ष के नेता के सुझाव के अनुसार, वे जल्द ही इस मुद्दे पर राज्यसभा में विभिन्न दलों के नेताओं की बैठक बुलाएंगे और एनजेएसी अधिनियम के मुद्दे को आगे बढ़ाएंगे.

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नई दिल्ली:

राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ ने उच्च न्यायालय के एक न्यायाधीश के आवास से नकदी बरामदगी के आरोपों के मद्देनजर न्यायिक जवाबदेही को लेकर सदन के नेता जेपी नड्डा और विपक्ष के नेता मल्लिकार्जुन खरगे के साथ बैठक की. इसके साथ ही, धनखड़ ने कहा कि उन्होंने इस मुद्दे को आगे बढ़ाने से पहले प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) द्वारा नियुक्त आंतरिक जांच पैनल के नतीजे का इंतजार करने का फैसला किया है. धनखड़ ने प्रधान न्यायाधीश संजीव खन्ना की सराहना करते हुए कहा कि उन्होंने ‘‘बहुत प्रभावशाली, पारदर्शी तरीके से'' कार्रवाई शुरू की है.

उपराष्ट्रपति धनखड़ राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग अधिनियम को रद्द करने के उच्चतम न्यायालय के अक्टूबर 2015 के फैसले के मुखर आलोचक रहे हैं. उन्होंने कहा कि विपक्ष के नेता के सुझाव के अनुसार, वे जल्द ही इस मुद्दे पर राज्यसभा में विभिन्न दलों के नेताओं की बैठक बुलाएंगे और एनजेएसी अधिनियम के मुद्दे को आगे बढ़ाएंगे.

धनखड़ ने कहा कि प्रधान न्यायाधीश ने 14 मार्च को दिल्ली उच्च न्यायालय के न्यायाधीश यशवंत वर्मा के आवास पर आग लगने की घटना के बाद बड़ी मात्रा में अधजले नोट मिलने के आरोपों के बाद ‘सतर्कता' दिखाई और मामले की जांच के लिए पैनल का गठन किया.

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इससे पहले, उन्होंने न्यायिक जवाबदेही और एनजेएसी अधिनियम के मुद्दे पर राज्यसभा में चर्चा के लिए इस तरह की बैठक करने के लिए नड्डा और खरगे को पत्र लिखा था. धनखड़ ने सोमवार को दोनों नेताओं के साथ बंद कमरे में बैठक की. यह बैठक धनखड़ के कक्ष में पूर्वाह्न 11:30 बजे शुरू हुई.

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कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने उच्च न्यायालय के एक न्यायाधीश के आवास से नकदी बरामद होने का मुद्दा 21 मार्च को उच्च सदन में उठाया था, जिसके जवाब में सभापति धनखड़ की टिप्पणियों की पृष्ठभूमि में यह बैठक बुलाई गई.

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सभापति धनखड़ ने राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (एनजेएसी) अधिनियम के 2014 में पारित होने के बाद न्यायिक नियुक्तियों के लिए एक तंत्र का उल्लेख किया था. उच्चतम न्यायालय ने बाद में इस अधिनियम को रद्द कर दिया था. बैठक के बाद, धनखड़ ने कहा कि वे सदन के नेता और विपक्ष के नेता के प्रति आभारी हैं, जिन्होंने न्यायपालिका, सांसदों और आम जनता के मन में उठने वाले इस मुद्दे पर सार्थक विचार-विमर्श किया.

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बैठक के बाद उन्होंने कहा, ‘‘स्वतंत्रता के बाद यह पहला मौका है जब किसी प्रधान न्यायाधीश ने पारदर्शी, जवाबदेह तरीके से अपने पास उपलब्ध सभी सामग्री को लोगों के बीच रखा और न्यायालय के साथ कुछ भी छिपाए बिना इसे साझा किया.''

उन्होंने कहा कि यह सही दिशा में उठाया गया कदम है. धनखड़ ने 21 मार्च को राज्यसभा में कहा था, “आप सभी को वह प्रणाली याद होगी जिसे इस सदन ने लगभग सर्वसम्मति से पारित किया था. उस पर कोई मतभेद नहीं था. सभी राजनीतिक दल एकजुट हुए थे और सरकार की पहल का समर्थन किया था.”

उन्होंने कहा था, ‘‘मैं यह जानना चाहता हूं कि भारतीय संसद से पारित उस विधेयक की क्या स्थिति है, जिसे देश की 16 राज्य विधानसभाओं ने मंजूरी दी और जिस पर संविधान के अनुच्छेद 111 के तहत माननीय राष्ट्रपति ने हस्ताक्षर किए थे.”

सभापति ने कहा था, “इस देश के संसदीय इतिहास में अभूतपूर्व सहमति के साथ इस संसद द्वारा पारित ऐतिहासिक विधेयक में इस समस्या से निपटने के लिए बहुत गंभीर प्रावधान थे. यदि इस बीमारी को खत्म कर दिया गया होता तो शायद हमें इस तरह के मुद्दों का सामना नहीं करना पड़ता.”

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