रथ यात्रा का मुख्य उद्देश्य भगवान जगन्नाथ का अपने भक्तों के बीच वार्षिक भ्रमण होता है.
- जगन्नाथ रथयात्रा शुक्रवार से शुरू होने जा रही है.
- पुरी रथ यात्रा की परंपरा 12वीं से 16वीं शताब्दी के बीच आरंभ मानी जाती है.
- एक मान्यता के अनुसार यह यात्रा भगवान श्रीकृष्ण द्वारा अपनी माता के मायके जाने का प्रतीक है.
जगन्नाथ रथयात्रा शुक्रवार से शुरू हो रही है. रथ यात्रा को लेकर ओडिशा के पुरी में स्थित जगन्नाथ मंदिर में तैयारियां जोर-शोर से जारी हैं. आषाढ़ मास की द्वितीया तिथि पर भगवान जगन्नाथ भाई बलभद्र और सुभद्रा के साथ भ्रमण पर निकलते हैं. रथ यात्रा को लेकर बीजेपी सांसद संबित पात्रा ने NDTV से खास बात की. उन्होंने इस दौरान जगन्नाथ रथ यात्रा का महत्व बताया. उन्होंने कहा, महाप्रभु जगन्नाथ जी के सामने ना कोई विधायक होता है, ना कोई सांसद होता है, ना कोई मंत्री होता है. महाप्रभु जगन्नाथ के समक्ष हर कोई एक भक्त होता है. वो उनसे प्यार करता है और दिल से दिल का रिश्ता होता है. महाप्रभु जगन्नाथ एक अद्भुत भगवान है, वो गरीबों के ईश्वर हैं, वह साधारण लोगों के ईश्वर हैं.
"साधारण मनुष्य का रूप धारण करते हैं भगवान"
पुरी सांसद ने कहा स्नान पूर्णिमा के दिन महाप्रभु जगन्नाथ उनके बड़े भाई बलभद्र जी और बहन सुभद्रा मंदिर प्रांगण में आते हैं. बाहर स्नान वेदी जिसको कहा जाता है, उसमें सुदर्शन जी के साथ आते हैं. चारों देवता का वहां पर स्नान होता है. पूरा जगत महाप्रभु जगन्नाथ को स्नान करते हुए देखता है. स्वाभाविक होता है जब आप बहुत स्नान कर लेते तो बीमार पड़ जाते हैं. तो देखिए कैसे अनूठे भगवान हैं, जो साधारण मनुष्य का रूप धारण करके बीमार पड़ जाते हैं. उनका इलाज होता है. देखिए उस समय भी ईश्वर को लगभग 15 दिनों के लिए एक क्वारंटाइन रखा जाता है. उनकी इलाज होता है और उसके पश्चात जब वो स्वस्थ हो जाते है, तो उनका नवयौवन दर्शन होते है. फिर वो रथ पर आरूढ़ होकर गुंडिचा मंदिर जाते हैं. यह जो मुख्य मंदिर है, जिसको हम श्री मंदिर कहते हैं, वहां से गुंडिचा मंदिर वो लगभग 3 किलोमीटर दूर है.
संबित पात्रा ने आगे कहा कि उनके प्रसाद को केवल प्रसाद नहीं कहा जाता है, महाप्रसाद कहा जा जाता है. वो 3 किलोमीटर का सफर- तीन रथ में भाई बहन और सुदर्शन चक्र ये पूरा करते हैं. तालध्वज, दर्पदलन, नंदीघोष रथ- ये तीन नाम है रथों के इन पर आरूढ़ होकर भगवान निकलते हैं.
भगवान के सामने सबको झुकना पड़ता है
संबित पात्रा ने कहा, हमारे यहां जगन्नाथ निवास करते हैं. हमारे राजाधिराज तो जगन्नाथ हैं जो खुद अपने रत्न सिंहासन को छोड़कर, रथ पर बैठते हैं. वह कहते हैं चलो मैं जनता के बीच चलता हूं. जनता खुश है कि नहीं जानता हूं. जो हमारे पूरी के महाराज हैं वो उस समय अपने हाथ में झाड़ू लेकर महाप्रभु के चलने के पथ ( जहां से रथ गुजरता है) उसे साफ करते हैं. तो क्या संदेश देता है? कोई जाति नहीं, कोई बड़ा नहीं, कोई राजा नहीं, कोई महाराज नहीं, परमेश्वर के सामने सबको झुकना पड़ता है.
कैसे सबसे अलग है महाप्रभु? इस सवाल के जवाब में उन्होंने कहा देखिए गृहस्थ जीवन में पति-पत्नी के बीच लड़ाई होती है. महाप्रभु के जीवन में भी ऐसा ही होता है. रथ यात्रा में जब वो निकलकर भाई-बहन के साथ गुंडिचा मंदिर जाते हैं. बीच में मौसी के यहां जाते हैं. एक ऐसी मान्यता है कि मौसी के घर जाते हुए उस समय मां लक्ष्मी को लेकर नहीं जाते. धर्मपत्नी को मंदिर में छोड़ देते हैं. ऐसे में मां लक्ष्मी को ये अच्छा नहीं लगता है.
ये पूरे नौ दिन की प्रक्रिया है. सात दिन महाप्रभु गुंडिचा में रहते हैं. एक दिन जाने में एक दिन आने... नौ दिन की प्रक्रिया है. उसमें एक हेरा पंचमी जो पांचवा दिन है. उस दिन मां लक्ष्मी जगन्नाथ जी के पास जाती है. उनसे आने को कहती हैं. तो महाप्रभु कहते हैं मैं जरूर आऊंगा.
जब महाप्रभु लौट के आते हैं, नीलाद्री विजय के समय मंदिर में प्रवेश के समय लक्ष्मी मां को मनाना पड़ता है. रसगुल्ला देकर मनाना पड़ता है. तब जाकर मां लक्ष्मी उन्हें आने की अनुमति देती है. देखिए भगवान भी अपने घर में प्रवेश नहीं कर सकते हैं जब तक कि घर की गृहिणी प्रसन्न ना हो.