जगन्नाथ रथ यात्रा आज से शुरू, 53 साल बाद खास अवसर, जानें पौराणिक कथा

Jagannath Rath Yatra 2024: ओडिशा का पुरी शहर रविवार से शुरू होने वाली भगवान जगन्नाथ की वार्षिक रथ यात्रा उत्सव के सुचारू संचालन के लिए पूरी तरह तैयार है. ग्रह-नक्षत्रों की गणना के अनुसार इस साल दो-दिवसीय यात्रा आयोजित की गई है.

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पुरी:

Rath Yatra 2024: ओडिशा में पुरी जगन्नाथ (Jagannath) धाम में महाप्रभु जगन्नाथ आज अपनी मौसी के घर रवाना होंगे. भगवान जगन्नाथ की विश्व प्रसिद्ध रथ यात्रा (Rath Yatra) का शुभारंभ आज से हो रहा है. इसको लेकर विधि-विधान चल रहा है. आज 14 दिनों बाद  महाप्रभु जगन्नाथ (Bhagwan Jagannath) भक्‍तों को दर्शन देंगे. अभी पहंडी की विधि चल रही है. इसके बाद तीनों रथों को आस्‍था की मजबूत रस्‍सी से खींचा जाएगा, जिसके लिए देश-विदेश से लाखों लोग पुरी में जुटे हुए हैं. इस साल होने वाली महाप्रभु जगन्‍नाथ की रथयात्रा इस साल इसलिए बेहद खास है, क्‍योंकि 53 वर्षों बाद यह यात्रा दो-दिवसीय होगी. राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू भी रविवार को लाखों श्रद्धालुओं के साथ रथ यात्रा देखने वाली हैं। राज्य सरकार ने उनकी यात्रा के लिए विशेष व्यवस्था की है.

रथयात्रा के बारे में एक पंडित ने बताया, "अभी पूरे विधि-विधान से भगवान की पूजा हो रही है. पूजा पूरी होने के बाद यहां के महाराजा आएंगे और वो सोने की झाड़ू से सफाई करेंगे, इसके बाद ही यात्रा शुरू होगी. ऐसी भी प्रथा है कि सायंकाल होने पर जगन्‍नाथ भगवान का रथ रोक दिया जाता है. फिर अगले दिन फिर से यात्रा शुरू होती है." 

53 वर्षों बाद यह दो-दिवसीय यात्रा 

ग्रह-नक्षत्रों की गणना के अनुसार इस साल दो-दिवसीय यात्रा आयोजित की गई है, जबकि आखिरी बार 1971 में दो-दिवसीय यात्रा का आयोजन किया गया था. यानि 53 साल ये अवसर आया है. परंपरा से हटकर, तीन भाई-बहन देवी-देवताओं - भगवान जगन्नाथ, देवी सुभद्रा और भगवान बलभद्र से संबंधित त्योहार से संबंधित कुछ अनुष्ठान भी रविवार को एक ही दिन में आयोजित किये जा रहे हैं. रथों को जगन्नाथ मंदिर के सिंहद्वार के सामने खड़ा किया गया है, जहां से उन्हें गुंडिचा मंदिर ले जाया जाएगा.  वहां रथ एक सप्ताह तक रहेंगे. 

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भगवान के बीमार होने की पौराणिक कथा

पुरी में उपस्थित लाखों भक्‍त आज रथों को खींचेंगे. इस वर्ष, रथ यात्रा और संबंधित अनुष्ठान जैसे 'नवयौवन दर्शन' और 'नेत्र उत्सव' एक ही दिन सात जुलाई को आयोजित किए जाएंगे. ये अनुष्ठान आम तौर पर रथ यात्रा से पहले आयोजित किए जाते हैं. पौराणिक कथाओं के अनुसार, स्नान पूर्णिमा पर अधिक स्नान करने के कारण देवता अस्वस्थ हो जाते हैं और इसलिए अंदर ही रहते हैं. 'नवयौवन दर्शन' से पहले, पुजारी 'नेत्र उत्सव' नामक विशेष अनुष्ठान करते हैं, जिसमें देवताओं की आंखों की पुतलियों को नए सिरे से रंगा जाता है.
(आईएएनएस इनपुट के साथ...)

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