स्थगन की संस्कृति और लंबी छुट्टी के मुद्दे का करना होगा समाधान: सुप्रीम कोर्ट के डायमंड जुबली समारोह में CJI

अपने संबोधन में सीजेआई चंद्रचूड़ ने कहा,‘‘ हमारी व्यवस्था में आबादी के विभिन्न वर्गों का समावेश करने से हमारी वैधता कायम रहेगी. इसलिए, हमें समाज के विभिन्न वर्गों को कानूनी पेशे में लाने के लिए और अधिक प्रयास करने की आवश्यकता है.’’ उन्होंने कहा, ‘‘ उदाहरण के लिए, बार और पीठ दोनों में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति का प्रतिनिधित्व काफी कम है.’’

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नई दिल्ली: प्रधान न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ ने रविवार को ‘स्थगन की संस्कृति' और लंबी छुट्टियों का मुद्दा उठाते हुए कहा कि एक संस्था के रूप में प्रासंगिक बने रहने की न्यायपालिका की क्षमता के लिए जरूरी है कि वह चुनौतियों को पहचाने और ‘कठिन संवाद'शुरू करे. उन्होंने हाशिए पर मौजूद वर्गों का प्रतिनिधित्व बढ़ाने और पहली पीढ़ी के वकीलों को समान अवसर प्रदान करने पर भी जोर दिया.

प्रधान न्यायाधीश शीर्ष अदालत की स्थापना के हीरक जयंती वर्ष के उद्घाटन के अवसर पर उच्चतम न्यायालय द्वारा आयोजित एक समारोह को संबोधित कर रहे थे. इस कार्यक्रम में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी मुख्य अतिथि थे.

न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने भारत में हो रहे जनसांख्यिकीय परिवर्तनों पर भी प्रकाश डाला और कहा कि कानूनी पेशे में पारंपरिक रूप से महिलाओं का प्रतिनिधित्व कम रहता था, लेकिन अब जिला न्यायपालिका के कार्यबल में उनकी हिस्सेदारी 36.3 प्रतिशत है.

प्रधान न्यायाधीश चंद्रचूड़ ने समाज के विभिन्न वर्गों को कानूनी पेशे में शामिल करने का आह्वान किया. उन्होंने रेखांकित किया कि अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति का प्रतिनिधित्व ‘‘बार और पीठ दोनों में काफी कम है.''

प्रधान न्यायाधीश(सीजेआई) ने इसे देश के इतिहास में एक ‘महत्वपूर्ण अवसर' करार देते हुए कहा कि अब भारत में महिलाओं को महत्वपूर्ण पदों पर देखा जा सकता है. उन्होंने कहा, ‘‘समाज में हाशिये पर मौजूद वर्गों के व्यापक समावेश पर ध्यान केंद्रित किया गया है. युवा आबादी का अपने पेशेवर जीवन में सफल होने का आत्मविश्वास भी उतना ही प्रेरणादायक है.''

उच्चतम न्यायालय 28 जनवरी, 1950 को अस्तित्व में आया. वर्तमान भवन में स्थानांतरित होने से पहले यह संसद भवन से कार्य करता था. सीजेआई चंद्रचूड़ ने कहा, ‘‘परंपरागत रूप से कानूनी पेशा कुलीन पुरुषों का माना जाता था. समय बदल गया है. पेशे में परंपरागत रूप से कम प्रतिनिधित्व वाली महिलाएं, अब जिला न्यायपालिका की कामकाजी ताकत का 36.3 प्रतिशत हैं.''

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प्रधान न्यायाधीश ने न्यायपालिका को प्रभावित करने वाले संरचनात्मक मुद्दों, जैसे लंबित मामलों, पुरानी प्रक्रियाओं और स्थगन की संस्कृति को भी रेखांकित किया. उन्होंने जोर देकर कहा कि निकट भविष्य में इन मुद्दों का समाधान किया जाना चाहिए.

उन्होंने कहा, ‘‘न्यायाधीशों और प्रशासकों के रूप में हमारा प्रयास जिला न्यायपालिका की गरिमा सुनिश्चित करना होना चाहिए, जो नागरिकों के लिए संपर्क का पहला बिंदु है. एक संस्था के रूप में प्रासंगिक बने रहने की हमारी क्षमता के लिए जरूरी है कि हम चुनौतियों को पहचानें और कठिन संवाद शुरू करें.''

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प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि स्थगन संस्कृति से पेशेवर संस्कृति की ओर बढ़ने की तत्काल आवश्यकता है. उन्होंने कहा, ‘‘दूसरा, हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि लंबी मौखिक दलीलों के कारण न्यायिक परिणामों में असीम देरी न हो. तीसरा, कानूनी पेशे में आए पहली पीढ़ी के वकीलों चाहे पुरुष हो या महिलाएं या हाशिए पर रहने वाले अन्य लोग को समान अवसर प्रदान करना चाहिए, जिनके पास इच्छाशक्ति और सफल होने की क्षमता है.''

न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने कहा, ‘‘चौथा, लंबी छुट्टियों पर बातचीत शुरू करें और इसपर चर्चा करें कि क्या वकीलों और न्यायाधीशों के लिए लचीले समय जैसे विकल्प संभव हैं.''

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उन्होंने इस बात पर प्रकाश डाला कि आंध्र प्रदेश, अरुणाचल प्रदेश, छत्तीसगढ़, दिल्ली, हिमाचल प्रदेश, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, ओडिशा, राजस्थान, सिक्किम, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड जैसे कई राज्यों में आयोजित जूनियर सिविल जजों की भर्ती परीक्षा में चयनित उम्मीदवारों में से 50 प्रतिशत से अधिक महिलाएं थीं.

प्रधान न्यायाधीश ने हाल ही में उच्चतम न्यायालय द्वारा रिकॉर्ड संख्या में महिलाओं को ‘वरिष्ठ अधिवक्ता' का दर्जा दिए जाने पर भी प्रकाश डाला. उन्होंने कहा, ‘‘हम, न्यायाधीश और प्रशासन के रूप में, बढ़ती आकांक्षाओं से अनभिज्ञ नहीं रह सकते.''

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उन्होंने कहा, ‘‘2024 की शुरुआत से पहले उच्चतम न्यायालय के पिछले 74 साल के इतिहास में केवल 12 महिलाओं को ‘वरिष्ठ अधिवक्ता' के रूप में नामित किया गया था. पिछले हफ्ते, उच्चतम न्यायालय ने देश के विभिन्न हिस्सों से 11 महिलाओं को ‘वरिष्ठ अधिवक्ता' के रूप में नामित किया.''

अपने संबोधन में सीजेआई चंद्रचूड़ ने कहा,‘‘ हमारी व्यवस्था में आबादी के विभिन्न वर्गों का समावेश करने से हमारी वैधता कायम रहेगी. इसलिए, हमें समाज के विभिन्न वर्गों को कानूनी पेशे में लाने के लिए और अधिक प्रयास करने की आवश्यकता है.'' उन्होंने कहा, ‘‘ उदाहरण के लिए, बार और पीठ दोनों में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति का प्रतिनिधित्व काफी कम है.''

सुप्रीम कोर्ट परिसर में आयोजित कार्यक्रम में केंद्रीय कानून और न्याय राज्य मंत्री अर्जुन राम मेघवाल, शीर्ष अदालत और उच्च न्यायालयों के सेवारत और सेवानिवृत्त न्यायाधीश और वकील और कानून के छात्र भी शामिल हुए.

अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी, बार काउंसिल ऑफ इंडिया के अध्यक्ष मनन कुमार मिश्रा और सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन के अध्यक्ष आदिश सी अग्रवाल ने भी सभा को संबोधित किया. इस कार्यक्रम में बांग्लादेश, भूटान, मॉरीशस, नेपाल और श्रीलंका के प्रधान न्यायाधीश भी शामिल हुए.

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