अब फ्लाइट में मिलेगा मोबाइल इंटरनेट, मस्क के रॉकेट से पहली बार लॉन्च होगा ISRO का सैटेलाइट, जानें GSAT N-2 की खासियतें

ऐसा पहली बार होगा जब ISRO अपने किसी मिशन को लॉन्च करने के लिए एलन मस्क की कंपनी स्पेस-X के फॉल्कन-9 हेवी लिफ्ट लॉन्चर का इस्तेमाल करेगा. ISRO के कमर्शियल पार्टनर न्यू स्पेस इंडिया लिमिटेड (NSIL) ने इसकी घोषणा की.

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GSAT-N2 की मिशन लाइफ 14 साल है.
नई दिल्ली:

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) पहली बार अमेरिकी कारोबारी एलन मस्क (Elon Musk) के मालिकाना हक वाली स्पेसएक्स (SpaceX) के फाल्कन 9 रॉकेट की मदद से अपना कम्युनिकेशन सैटेलाइट लॉन्च करने के लिए पूरी तरह तैयार है. सोमवार-मंगलवार की दरमियानी रात इस सैटेलाइट को लॉन्च किया जाना है. इससे दूरदराज के इलाकों में ब्रॉडबैंड सर्विस मिलेगी. साथ ही फ्लाइट में पैसेंजरों को इंटरनेट की सुविधा भी मिल पाएगी.  

भारत की स्पेस एजेंसी ने इस कम्युनिकेशन सैटेलाइट का नाम GSAT N-2 रखा है. इसे GSAT 20 भी कहा जाता है. GSAT-N2 की मिशन लाइफ 14 साल है. 4700 किलोग्राम वजन वाले इस कमर्शियल सैटेलाइट को अमेरिका के फ्लोरिडा के केप कैनावेरल में स्पेस कॉम्प्लेक्स 40 से लॉन्च किया जाएगा. इस लॉन्च पैड को SpaceX ने अमेरिका के स्पेस फोर्स से किराए पर लिया है, जो देश के आर्म फोर्स का एक स्पेशल विंग है. इसे 2019 में अपनी स्पेस प्रॉपर्टी को सुरक्षित करने के लिए बनाया गया था. 

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कितने बजे होगी लॉन्चिंग?
GSAT N-2 की लॉन्चिंग का ट्रांसमिशन सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X पर SpaceX के अकाउंट पर किया जाएगा. लॉन्चिंग का काउंटडाउन सोमवार रात 11.46 बजे शुरू होगा. लिफ्ट-ऑफ मंगलवार सुबह 12.01 बजे शुरू होगी. अगर किसी वजह से लॉन्चिंग में दिक्कत आती है, तो सैटेलाइट की  लॉन्चिंग मंगलवार दोपहर 3.03 बजे होगी. बता दें कि लॉन्च विंडो करीब एक घंटे 50 मिनट की होती है. इसी समय के अंदर लॉन्चिंग पूरी करनी होती है.

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सैटेलाइट की लॉन्च से पहले ही भारतीय स्पेस एजेंसी के अधिकारी फ्लोरिडा के केप कैनावेरल में तैनात हैं. उन्होंने एक डेडिकेटेड लॉन्चिंग की मांग की है. यानी इस लॉन्चिंग में कोई को-सैटेलाइट नहीं होगा. 


GSAT-N2 की खासियतें
-GSAT-20 सैटेलाइट को खासतौर पर दूरदराज के इलाकों में कम्युनिकेशन सिस्टम को बेहतर बनाने के लिए डिजाइन किया गया है. -यह अनिवार्य रूप से दूरदराज के क्षेत्रों में ब्रॉडबैंड इंटरनेट सुविधा देगा. ये सैटेलाइट 48Gpbs की स्पीड से इंटरनेट देगा.

-इस सैटेलाइट से अंडमान-निकोबार आईलैंड, जम्मू-कश्मीर और लक्षद्वीप सहित दूरदराज के भारतीय क्षेत्रों में कम्युनिकेशन सर्विस मिलेगी. 

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-इसमें 32 नैरो स्पॉट बीम होंगे. 8 बीम पूर्वोत्तर क्षेत्र के लिए होंगे, जबकि 24 वाइड बीम बाकी भारत के लिए डेडिकेडेड हैं. इन 32 बीमों को भारतीय भू-भाग के भीतर स्थित हब स्टेशनों से सपोर्ट मिलेगा. केए बैंड हाई-थू्रपुट कम्युनिकेशन पे-लोड की क्षमता लगभग 48 GB प्रति सेकेंड है. यह देश के दूर-दराज के गांवों को इंटरनेट से जोड़ेगा.

-GSAT-N की 80% कैपेसिटी प्राइवेट कंपनी को बेची जा चुकी है. बाकी 20% भी एयरलाइन और मरीन क्षेत्र में प्राइवेट कंपनियों को बेची जाएगी.

- इस सैटेलाइट से केंद्र की 'स्मार्ट सिटी' पहल को बढ़ावा मिलेगा. साथ ही फ्लाइट में इंटरनेट कनेक्टिविटी को सुविधाजनक बनाने में भी मदद मिलेगी.

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ISRO ने लॉन्चिंग के लिए स्पेसएक्स के रॉकेट को क्यों चुना?
अभी भारत के रॉकेट्स में 4 टन से ज्यादा भारी सैटेलाइट्स को लॉन्च करने की क्षमता नहीं है. इसलिए ISRO ने एलन मस्क की स्पेस एजेंसी के साथ मिलकर काम करने का फैसला किया. इससे पहले ISRO हेवी सैटेलाइट को लॉन्च करने के लिए फ्रांस के एरियनस्पेस कंसोर्टियम पर निर्भर था.

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एलन मस्क ने 2002 में स्पेस ट्रांसपोर्टेशन सर्विस कंपनी SpaceX की स्थापना की थी. ये स्पेस में लिक्विड प्रोपेलेंट रॉकेट भेजने वाली पहली प्राइवेट कंपनी है. स्पेसएक्स ने 2008 में फॉल्कन-1 रॉकेट को लॉन्च किया गया था. 

बेंगलुरु स्थित यूआर राव सैटेलाइट सेंटर के डायरेक्टर डॉ. एम. शंकरन ने कहा, "जब यह स्वदेशी सैटेलाइट ऑपरेशन में आ जाएगा, तो यह वर्ल्ड इंटरनेट के मैप पर भारत में मौजूद इन-फ्लाइट इंटरनेट कनेक्टिविटी की बड़ी कमी को दूर कर देगा." उन्होंने आगे कहा, "यह भारत का सबसे अधिक क्षमता वाला सैटेलाइट है. शायद एकमात्र ऐसा सैटेलाइट है, जो बहुप्रतीक्षित का-बैंड में विशेष रूप से काम करता है."

फ्लाइट में इंटरनेट के लिए अभी क्या है नियम?
मौजूदा समय में जब इंटरनेशनल फ्लाइट भारत के एयर स्पेस में दाखिल होती हैं, तो उन्हें इंटरनेट बंद करना पड़ता है. क्योंकि भारत इस सेवा की अनुमति नहीं देता है. लेकिन, हाल ही में भारत ने उड़ान के दौरान देश में इंटरनेट की सुविधा देने के लिए नियमों में संशोधन किया है. नए नियमों के अनुसार, 3 हजार मीटर से अधिक की ऊंचाई पर फ्लाइट के अंदर वाई-फाई सर्विस दी जा सकती हैं. हालांकि, यात्री इस सर्विस का इस्तेमाल तभी कर पाएंगे, जब फ्लाइट में इलेक्ट्रॉनिक डिवाइसों के इस्तेमाल की परमिशन होगी.

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फाल्कन रॉकेट के बारे में जानिए
सैटेलाइट लॉन्चिंग के समय 70 मीटर लंबे और करीब 549 टन वजनी एक स्टैंडर्ड फाल्कन 9 B-5 रॉकेट का इस्तेमाल लिफ्ट-ऑफ के लिए किया जाएगा. इसे 2 फेज वाले रॉकेट के रूप में डिज़ाइन किया गया है. रॉकेट जियोसिंक्रोनस ट्रांसफर ऑर्बिट में 8,300 किलोग्राम तक और पृथ्वी की निचली कक्षा में 22,800 किलोग्राम तक वजन उठा सकता है. फाल्कन 9 एक रियूजेबल रॉकेट है. स्पेसएक्स दावा करता है कि ये रॉकेट अपने बूस्टर के लिए 19वीं उड़ान भरेगा. स्टेज सेपारेशन के बाद यह  ड्रोन शिप पर उतरेगा और बाद में अटलांटिक महासागर में तैनात होगा."

कर्नाटक के हासन में स्थित इसरो के मास्टर कंट्रोल फेसिलिटी ने बताया कि एक बार ऑर्बिट में स्थापित हो जाने के बाद यह सैटेलाइट पर कंट्रोल ले लेगा. फिर ये रॉकेट सैटेलाइट को भारत से 36,000 किलोमीटर ऊपर अपने डेस्टिनेशन तक ले जाएगा. अब तक फाल्कन 9,395 लॉन्चों का हिस्सा रह चुका है. इनमें से इसे सिर्फ 4 में नाकामी मिली है. बाकी मिशनों में यह 99% की उल्लेखनीय सफलता दर हासिल कर चुका है. 

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