Lok Sabha Elections 2024: लोकसभा चुनाव में मुख्य मुकाबला बीजेपी (BJP) और विपक्ष के इंडिया गठबंधन (INDIA Alliance) का है. इंडिया गठबंधन का नेतृत्व कांग्रेस (Congress) कर रही है. भले की विपक्ष में कई दल हैं, वे जो गठबंधन में शामिल हैं और वे जो शामिल नहीं हैं, पर माना यही जा रहा है कि मुख्य चुनावी संग्राम बीजेपी और कांग्रेस का है. बीजेपी अपने चुनाव चिह्न (Election Symbol) 'कमल का फूल' को हमेशा आगे रखे रही वहीं कांग्रेस ने अपने चुनाव चिह्न 'हाथ का पंजा' का जमकर प्रचार किया. ऐसा होता भी क्यों नहीं, आखिर वोट तो चुनाव चिह्न देखकर ही दिया जाता है. कांग्रेस को 'हाथ का पंजा' चुनाव चिह्न कब और कैसे मिला? इसकी कहानी बड़ी रोचक है.
भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में किसी भी राजनीतिक दल के लिए जितना महत्वपूर्ण उसका झंडा होता है उतना ही अहम उसका चुनाव चिह्न होता है. चाहे विधानसभा चुनाव हो या लोकसभा चुनाव मतदान में प्रत्याशी के नाम के साथ पार्टी का चुनाव चिह्न या फिर निर्दलीय होने पर उसे चुनाव आयोग द्वारा आवंटित चुनाव चिह्न, मत पत्र पर या फिर ईवीएम पर अंकित होता है.
आजादी के बाद जब भारतीय लोकतंत्र का उदय हुआ तो राजनीतिक दलों के लिए चुनाव चिह्नों की जरूरत पड़ी. ऐसा इसलिए भी जरूरी था क्योंकि उस दौर में साक्षरता बहुत कम थी. कम पढ़े-लिखे या अनपढ़ लोग आसानी से समझकर अपने पसंदीदा प्रत्याशी को चुन सकें, इसके लिए चुनाव चिह्न अच्छी तरकीब मानी गई.
देश में पहला लोकसभा चुनाव सन 1952 में हुआ था. उस समय कांग्रेस, यानी भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस को चुनाव चिह्न 'दो बैलों की जोड़ी' मिला था. इसके बाद सन 1969 तक कांग्रेस का यही चुनाव चिह्न रहा.
इससे बाद एक राजनीतिक उठापटक के दौरान 12 नवंबर 1969 को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को कांग्रेस ने पार्टी से बर्खास्त कर दिया और पार्टी के दो हिस्से हो गए. इससे इंदिरा गांधी के सामने संकट खड़ा हो गया. उन्होंने कांग्रेस (आर) के नाम से अपनी नई पार्टी बनाई. इस पार्टी को 'गाय-बछड़ा' चुनाव चिह्न मिला. इंदिरा गांधी के नेतृत्व वाली कांग्रेस का सन 1971 से 1977 तक यही चुनाव चिह्न रहा.
इंदिरा गांधी के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार ने देश में 1975 में आपातकाल लगा दिया गया. इसके खत्म होने के बाद सन 1977 में इंदिरा गांधी ने कांग्रेस (आर) की जगह कांग्रेस (आई) नाम से एक नई पार्टी गठित कर ली. तब उन्होंने 'हाथ का पंजा' अपना चुनाव चिह्न बनाया. इसके बाद 47 साल से कांग्रेस का यही चुनाव चिह्न है.
इंदिरा गांधी के 'हाथ का पंजा' चुनाव चिह्न चुनने के पीछे रोचक कहानी है. सन 1977 में इमरजेंसी खत्म होने के बाद हुए चुनाव में इंदिरा गांधी को करारी शिकस्त का सामना करना पड़ा था. यह वह पहला चुनाव था जिसमें कांग्रेस के हाथ से देश की सत्ता छिन गई थी. यह वास्तव में आपातकाल के दौर के कटु अनुभवों से उपजी देश के मतदाताओं की लोकतांत्रिक प्रतिक्रिया थी.
आशीर्वाद से मिला 'संकेत'सत्ता से बेदखल हुईं इंदिरा गांधी उत्तर प्रदेश के देवरिया जिले में वयोवृद्ध संत देवरहा बाबा से मिलने के लिए पहुंचीं. देवरहा बाबा ने उन्हें हाथ, यानी 'पंजा' उठाकर आशीर्वाद दिया. शायद इंदिरा गांधी ने इसे शुभ संकेत माना. देवरिया से वापसी के बाद इंदिरा गांधी ने अपनी पार्टी कांग्रेस का चुनाव चिह्न 'हाथ का पंजा' तय कर लिया. इसी निशान पर उन्होंने 1980 का लोकसभा चुनाव लड़ा. इस चुनाव में कांग्रेस को प्रचंड बहुमत मिला और इंदिरा गांधी की सत्ता में वापसी हुई.
माना जाता है कि इंदिरा गांधी को आशीर्वाद देने वाले देवरहा बाबा चमत्कारिक दैवीय शक्तियों से संपन्न सिद्ध संत थे. देवरिया के निवासी होने के कारण उन्हें देवरहा बाबा के नाम से जाना जाता था. देवरहा बाबा का निधन 19 जून 1990 को हुआ था. माना जाता है कि तब उनकी उम्र 500 साल थी.
जनसंघ से बीजेपी तक का, 'दीपक' से 'कमल' तक का सफरआज के दौर में कांग्रेस से मुकाबला करने वाली भारतीय जनता पार्टी सन 1952 के पहले लोकसभा चुनाव से ही अपने अलग नाम के साथ अस्तित्व में रही. तब इस पार्टी का नाम भारतीय जनसंघ था. डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी की अध्यक्षता में अखिल भारतीय जनसंघ का गठन 21 अक्टूबर 1951 को हुआ था. पहले लोकसभा चुनाव में इस पार्टी को 'दीपक' चुनाव चिह्न मिला था.
सन 1977 में देश में इमरजेंसी खत्म होने के बाद भारतीय जनसंघ का जनता पार्टी में विलय हो गया. तब जनता पार्टी को चुनाव चिह्न 'हलधर किसान' मिला था. बाद में 6 अप्रैल 1980 को भारतीय जनता पार्टी की स्थापना हुई. इस पार्टी को चुनाव चिह्न 'कमल' मिला. पिछले 44 साल से बीजेपी का चुनाव चिह्न 'कमल' है.