"अंतरिक्ष में आपसी सहयोग के अलावा और कोई विकल्प नहीं", भारत के पहले अंतरिक्ष यात्री राकेश शर्मा

राकेश शर्मा ने कहा कि समावेशिता समय की मांग है. हमें उपनिवेश बनाने की आदत छोड़नी होगी. अंतरिक्ष के क्षेत्र में हम जो भी प्राप्त करते हैं उसे आपस में साझा करना होगा.

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नई दिल्ली:

अंतरिक्ष विज्ञान के क्षेत्र मे दुनिया भर में होड़ मची है. कई देश एक दूसरे को पीछे छोड़ आगे बढ़ना चाहते हैं. भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) भी मजबूती के साथ इस क्षेत्र में कार्य कर रहा है. एनडीटीवी के साइंस एडिटर पल्लव बागला के साथ एक विशेष इंटरव्यू में, भारत के पहले अंतरिक्ष यात्री विंग कमांडर राकेश शर्मा (Wing Commander Rakesh Sharma) अंतरिक्ष के क्षेत्र में मची होड़ सहित तमाम मुद्दों पर बात की है. उन्होने कहा कि जब हम जमीन पर होते हैं तब हमारा अस्तित्व मानवता को आपस में बांटने वाले कई कारकों पर निर्भर करता है.

राकेश शर्मा ने कहा कि ऐसे हालात में समावेशी विश्वदृष्टि रखना अक्सर मुश्किल होता है. लेकिन जब-जब कोई अंतरिक्ष में जाता है, जैसा कि कई अंतरिक्ष यात्रियों ने गवाही दी है, तो सीमाएं धुंधली हो जाती हैं और आप पृथ्वी को वैसे ही देखते हैं जैसा वह है - पृथ्वी एक अंतहीन ब्रह्मांड में तैरता हुआ एक हल्का नीला बिंदु की तरह ही दिखता है, यह बिंदु वही है जो एकमात्र स्थान भी है जिसे मनुष्य अपना घर कह सकता है. 

विंग कमांडर शर्मा ने सऊदी अरब के प्रिंस सुल्तान इब्न सलमान अल सऊद का जिक्र करते हुए कहा कि उन्होंने अंतरिक्ष से वापस आकर कहा था कि  "अंतरिक्ष से तुम्हें देशों की सीमाएं नहीं दिखतीं हैं". विंग कमांडर राकेश शर्मा ने एनडीटीवी के साथ कई विचारों को साझा करते हुए कहा कि मानव जाति संसाधनों के न्यायसंगत वितरण, और आपसी संघर्षों में कमी के लिए काम कर सकता है. साथ ही सबसे महत्वपूर्ण रूप से - "किसी दूर के ग्रह को नरक बनाने से बच सकता है"

धरती पर शक्तिशाली हमेशा कमजोरों को बेदखल करते रहे हैं: राकेश शर्मा
राकेश शर्मा ने कहा कि जाहिर है, जब आप अंतरिक्ष में जाते हैं और वहां की सुंदरता देखते हैं और यह भी देखते हैं कि वहां से देशों की सीमाएं दिखाई नहीं देती हैं, तो हमेशा आश्चर्य होता है कि हम सदियों से संघर्ष के घेरे से बाहर क्यों नहीं निकल पाए हैं. इसका मूल कारण इसका मतलब यह है कि शक्तिशाली हमेशा कमजोरों को बेदखल करते रहे हैं, यहां तक ​​कि उनके अधीन प्राकृतिक संसाधनों से भी. इसलिए, जाहिर है, धन का वितरण न्यायसंगत नहीं रहा है. 

राकेश शर्मा ने कहा कि मेरी राय में, सभी देशों के लोगों के सामाजिक-आर्थिक मानकों को बेहतर बनाने के लिए अंतरिक्ष का वास्तव में लाभ उठाया जा सकता है. और मुझे लगता है कि इसरो (भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन) ने (विक्रम) साराभाई के दृष्टिकोण के कारण इसे खूबसूरती से प्रदर्शित किया है.

एक दूसरे के साथ सहयोग की जरूरत है: राकेश शर्मा
पूर्व वायु सेना पायलट ने कहा, "यदि सभी अंतरिक्ष यात्रा करने वाले देश एक साथ आ जाए और प्रतिस्पर्धा करने के बजाय सहयोग करना शुरू कर दें तो बहुत कुछ बदल सकता है.  शर्मा ने कहा कि अंतरिक्ष में जो कुछ भी हम प्राप्त करते हैं उसे एक दूसरे के साथ साझा करने की जरूरत है. क्योंकि संयुक्त राष्ट्र ने बहुत स्पष्ट रूप से उल्लेख किया है कि अंतरिक्ष पूरी मानवता का है. 

समावेशिता समय की मांग है: राकेश शर्मा
राकेश शर्मा ने कहा कि समावेशिता समय की मांग है.  हमें उपनिवेश बनाने की आदत छोड़नी होगी. अंतरिक्ष के क्षेत्र में हम जो भी प्राप्त करते हैं उसे आपस में साझा करना होगा.हम जो भी प्राप्त करते हैं, चाहे क्षुद्रग्रहों पर या चंद्रमा या मंगल ग्रह पर, अगर हम उस जानकारी को पृथ्वी पर सभी के साथ साझा कर सकते हैं, तो यह सबसे बेहतर होगा.  मुझे लगता है कि इससे हम आपसी संघर्ष के मूल कारण को दूर कर देंगे. 

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पिछले साल भारत के द्वारा अमेरिका के नेतृत्व वाले आर्टेमिस समझौते को लेकर पूछे गए सवाल के जवाब में राकेश शर्मा ने कहा कि वो इसे लेकर विरोध में नहीं हैं. उन्होंने कहा कि सहयोग के अलावा कोई विकल्प नहीं है.

राकेश शर्मा ने कहा कि अंतरिक्ष सेक्टर में आपसी संघर्ष को रोकने के लिए निजीकरण एक बेहतर माध्यम हो सकता है. इस टकराव को रोकने के लिए अन्य सभी कदम असफल रह गए हैं. शायद यह कदम सफल हो जाए. हर किसी से एक अलग दृष्टिकोण आज़माने का आग्रह करते हुए, अंतरिक्ष यात्री ने कहा, "अगर हमें सुरंग के अंत में भी प्रकाश दिखता है तो;  हम सभी विश्वास कर सकते हैं कि पृथ्वी हर किसी के लिए एक बेहतर जगह हो सकती है; अगर हम विकास को टिकाऊ बना सकते हैं; और यदि आप इन सभी संदेशों को ले जा सकते हैं, तो स्वर्ग यहीं पृथ्वी पर है, हमारे ग्रह पर ही स्वर्ग है. साथ ही हमें किसी दूसरे ग्रह पर जाकर नरक का निर्माण नहीं करना चाहिए. 

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राकेश शर्मा ने कहा कि आइए मिलकर हम इसे ठीक करें. इससे हमारे समाज को मदद मिलेगी और मुझे लगता है कि यह संघर्ष को कम करने में मदद करेगा. आखिरकार, हम सभी के बच्चे, पोते-पोतियां और परपोते-पोते होंगे. तो आइए उनके बारे में सोचें. 

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