- हैदराबाद के वैज्ञानिकों ने सांप के विष के एंटी वेनम की जांच के लिए इन-विट्रो टेक्नोलॉजी विकसित की है
- पारंपरिक जांच में हर फैक्टरी में हजारों चूहों का प्रयोग होता है जो दर्दनाक और महंगा तरीका है
- नई तकनीक से चूहों की संख्या कम होकर एंटी वेनम की गुणवत्ता लैब में ही मापी जा सकेगी
सांप के काटने से हर साल देश में हजारों लोगों की जान चली जाती है लेकिन अब भारतीय वैज्ञानिक ऐसा प्रयोग कर रहे हैं, जिससे न सिर्फ इंसानों की जान बचेगी बल्कि हजारों जानवरों को भी मौत से बचाया जा सकेगा. इतना ही नहीं अब सांप के काटने के बाद इलाज के लिए लगने वाले इंजेक्शन की गुणवत्ता की जांच के लिए चूहों को भी नहीं मारना पड़ेगा.
दरअसल, हैदराबाद के सीएसआईआर - सेंटर फॉर सेलुलर एंड मॉलिक्यूलर बायोलॉजी के वैज्ञानिक एक ऐसा प्रयोग कर रहे हैं, जिससे सर्पदंश से होने वाली मौतों के साथ-साथ एंटी वेनम बनाने में हर साल मारे जाने वाले हजारों चूहों की जान भी बचेगी.
भारत में एंटी स्नेक वेनम इंजेक्शन की गुणवत्ता की जांच के लिए ED50 टेस्ट किया जाता है. इसमें हर फैक्टरी में करीब 3,700 चूहों का इस्तेमाल होता है. ये 100 साल पुराना तरीका है जो काफी समय लेने के साथ महंगा और जानवरों के लिए दर्दनाक होता है. वैज्ञानिकों की टीम ने इन-विट्रो टेक्नोलॉजी विकसित की है. इससे विष के अलग-अलग टॉक्सिन्स पर एंटी वेनम की क्षमता लैब में ही मापी जा सकेगी.
डॉ शुभम आनंद, एम्स जोधपुर ने कहा, "एंटी-वेनम उत्पादन में सबसे बड़ा चैलेंज ये है कि इसकी गुणवत्ता जांच के लिए हर युनिट में 3700 चूहों का इस्तेमाल किया जाता है लेकिन इसकी जगह अगर हम इन-विट्रो प्रशिक्षण की तरफ जाएं तो इस संख्या को हम कम से कम 50 प्रतिशत नीचे ला सकते हैं. इसके साथ जो स्केलेबिलिटी का ऑपरेशन चैलेंज आता है, उसे भी दूर सकते हैं और अफोर्डेबिलिटी की तरफ भी जा सकते हैं. इससे ये होगा कि दूर दराज ग्रामीण इलाकों में भी उपलब्ध कराया जा सकता है. हम लोगों को चाहिए कि इसके लिए ज्यादा से ज्यादा लोगों को जागरूक करें और ये एंटी स्नेक वेनम का प्रोडक्शन भी ज्यादा किया जाए और इसकी एवेलिबिलिटी भी ज्यादा कराई जाए."
- भारत में हर साल करीब 58 हजार लोगों की सांप के काटने से मौत होती है.
- 2 लाख से ज्यादा लोग लंबे समय तक विकलांगता या गंभीर बीमारियों से जूझते हैं
- यूपी, एमपी, बिहार, राजस्थान, ओड़िशा, आंध्र प्रदेश और पश्चिम बंगाल सबसे ज्यादा प्रभावित राज्य हैं
- सरकार का लक्ष्य है कि 2030 तक सांप के काटने से मौतें और विकलांगता को 50% कम करना.
भारत में फिलहाल चार प्रमुख सांप इंडियन कोबरा, कॉमन करैत, रसेल वाइपर और सॉ-स्केल्ड वाइपर के लिए पॉलीवैलेंट एंटी वेनम बनाया जा रहा है. शुरुआती शोध में पता चला है कि एक ही प्रजाति के सांप के अलग-अलग इलाकों में पाए जाने वाले विष में भिन्नता होती है. इसलिए एक ऐसे परीक्षण की जरूरत है जो लैब में ही यह बता सके कि एंटी वेनम कितना असरदार है.
वैज्ञानिकों के अनुसार, अभी उनकी यह खोज शुरुवाती चरण यानी टेक्नोलॉजी रेडीनेस लेवल (टीआरएल) 2 पर है और टीम का लक्ष्य इसे टीआरएल 6 तक ले जाना है जिसका मतलब है कि इसे उद्योग में उपयोग के लिए तैयार करना.
डब्ल्यूएचओ भी इन-विट्रो टेस्टिंग को अपनाने की सिफारिश कर चुका है. अगर भारत का यह प्रयोग सफल रहा, तो आने वाले कुछ वर्षो में एंटी वेनम उत्पादन और जांच की पूरी तस्वीर बदल सकती है. साथ ही इसे वैश्विक मानक बनाया जा सकता है, जो ना सिर्फ भारत बल्कि अफ्रीका और एशिया के देशों में भी बदलाव ला सकता है.