क्‍या म्‍यांमार में उल्‍फा के ठिकानों पर भारतीय सेना ने की सर्जिकल स्‍ट्राइक, जानें इस उग्रवादी संगठन के बारे में सबकुछ 

असम का प्रतिबंधित उग्रवादी संगठन उल्‍फा (आई) ने म्‍यांमार में उसके कैंप्‍स पर भारतीय सेना की तरफ से ड्रोन हमलों का दावा किया है.

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  • उल्फा (आई) ने म्यांमार में अपने कैंप्स पर भारतीय सेना द्वारा ड्रोन और मिसाइल हमलों का दावा किया है, जिसे भारतीय अधिकारियों ने पूरी तरह से खारिज किया है.
  • असम का उग्रवादी संगठन उल्फा की स्थापना 1979 में सात युवाओं ने की थी, जिनमें परेश बरुआ और अरविंद राजखोवा प्रमुख संस्थापक थे.
  • उल्फा का मुख्य उद्देश्य असम को भारत से अलग कर एक स्वतंत्र राज्य बनाना था, जिसमें असम की संसाधनों और पहचान की रक्षा शामिल थी.
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नई दिल्‍ली:

असम का प्रतिबंधित उग्रवादी संगठन उल्‍फा (आई) ने म्‍यांमार में उसके कैंप्‍स पर भारतीय सेना की तरफ से ड्रोन हमलों का दावा किया है. हालांकि भारतीय अधिकारियों ने इस दावे को सिरे से नकार दिया है. रविवार को उल्‍फा ने दावा किया है कि ड्रोन और मिसाइलों से म्‍यांमार सीमा पर स्थित उसके कैंप्‍स को भारतीय सेना ने निशाना बनाया है. भारतीय सेनाओं की तरफ से इस बारे में किसी तरह की कोई आधिकारिक पुष्टि नहीं की गई है. रक्षा प्रवक्‍ता की तरफ से भी कहा गया है कि इस तरह की घटना की कोई भी जानकारी नहीं है. लेफ्टिनेंट कर्नल महेंद्र रावत ने कहा, 'भारतीय सेना के पास इस तरह के ऑपरेशन की कोई भी जानकारी नहीं है.'

कब बना था उल्फा

सर्जिकल स्‍ट्राइक की इन खबरों के साथ ही एक बार फिर से खबरों में आ गया है. उल्‍फा की शुरुआत ही एक विरोधी विचारधारा के तहत हुई थी. उल्फा यानी यूनाइटेड लिब्रेशन फ्रंट ऑफ असम जिसकी स्‍थापना सात अप्रैल 1979 को असम के सिवसागर में की गई थी.

कौन थे इसके संस्थापक

संगठन की शुरुआत उस समय सात युवाओं ने की थी जिनमें परेश बरुआ, अरविंद राजखोवा, अंजूर्वा राभा, राजेन शर्मा, भोमेश्‍वर राभा, प्रदीप गोगोई और बुधेश्‍वर राभा शामिल थे. परेश बरुआ इस समय संगठन का कमांडर-इन-चीफ है. जबकि राजखोवा कुछ समय के लिए संगठन का चेयरमैन था.  

राजेन शर्मा जिसे उदिप्‍त हजारिका के नाम से भी जाना जाता था, वह संगठन का पहला मीडिया सेक्रेटरी था. अक्‍टूबर 1989 में उसकी हत्‍या कर दी गई थी. राजखोवा इस समय उस धड़े का मुखिया है जिसने असम सरकार के साथ शांति प्रस्‍ताव को साइन किया था जिसका मकसद क्षेत्र में शांति कायम करना था. 

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क्या था उल्‍फा का मकसद 

उल्‍फा की स्‍थापना का मकसद असम को भारत से अलग करना और एक 'स्वतंत्र असम' का निर्माण करना था. उल्‍फा ने केंद्र सरकार पर आरोप लगाए कि उसने असम के संसाधनों का दोहन किया, उसकी संस्‍कृति और पहचान को भी छीन लिया था. साथ ही उससे आत्‍मनिर्भरता की रक्षा अधिकार भी उसे नहीं दिया. 

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1990 में शुरू हुआ क्रैकडाउन 

 
सन् 1990 में भारतीय सेना ने उल्‍फा के खिलाफ सबसे बड़ा ऑपरेशन शुरू किया जिसे ऑपरेशन बजरंग नाम दिया गया था. यहीं से उल्‍फा कमजोर होना शुरू हुआ. इस ऑपरेशन में उल्‍फा के कई आतंकियों को पकड़ा गया था. धीरे-धीरे उल्‍फा अपनी जमीन खोता गया. कई कई निर्दोषों की हत्या की वजह से उसे आम लोगों का समर्थन मिलना भी बंद हो गया था. उल्‍फा के इस समय दो हिस्‍से हैं एक उल्‍फा प्रो-टॉक जो शांति की वकालत करने लगा है जिसमें राजखोवा शामिल हैं. इसके कई नेताओं ने हथियार डाल दिए हैं. 

कमजोर होता गया संगठन 

दूसरा है उल्‍फा (इंडिपेंडेंट) जिसका लीडर परेश बरुआ है और जिसने अभी तक भारत के खिलाफ विद्रोह छेड़ा हुआ है. बरुआ इस समय माना जाता है कि म्‍यांमार और चीन सीमा के करीब है और वहीं से अपनी गतिविधियां चला रहा है. एक अनुमान के मुताबिक संगठन में इस समय 100 से 150 ही सक्रिय आतंकी ही बचे हैं. कभी हजारों में माने जाने वाले कैडर अब बेहद सीमित और बिखरे हुए हैं. 
 

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