भारत-अमेरिका अंतरिक्ष कूटनीति में लिख रहे नया युग, शुभांशु शुक्ला का मिशन मोदी-ट्रंप समिट का सुनहरा मौका क्यों?

India US Space Diplomacy: अमेरिकी एयरोस्पेस इंजीनियर और निवेशक जॉर्ज वेनमैन ने NDTV से कहा, "राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा मिलकर अंतरिक्ष यात्रियों को एक संयुक्त संबोधन देना एकता और प्रेरणा का एक शक्तिशाली प्रतीक हो सकता है."

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India US Space Diplomacy: भारत और अमेरिका- स्पेस पार्टनर बनते दो दोस्त
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  • भारत और अमेरिका ने मिलकर अंतरिक्ष अन्वेषण में नया अध्याय शुरू किया है.
  • पहली बार एक भारतीय और चार अमेरिकी अंतरिक्ष यात्री ISS पर सहयोग कर रहे हैं.
  • भारत और अमेरिका के बीच साझा अंतरिक्ष मिशन को लेकर उत्साह बढ़ रहा है.
  • NISAR सैटेलाइट, जिसका निर्माण ISRO और NASA ने मिलकर किया है, लॉन्च के लिए तैयार है.
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भारत और अमेरिका पहली बार वैश्विक अंतरिक्ष अन्वेषण यानी ग्लोबल स्पेस एक्सप्लोरेशन में मिलकर एक नया अध्याय (India US Space Diplomacy) लिख रहे हैं. पहली बार एक भारतीय और चार अमेरिकी अंतरिक्ष यात्री पृथ्वी के बाहर मानवता की सबसे बड़ी मानव चौकी, इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन पर कंधे से कंधा मिलाकर काम कर रहे हैं. दुनिया के सबसे पुराने लोकतंत्र अमेरिका और दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र भारत का इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन पर एक साथ होने का प्रतीक एक अनोखी जुगलबंदी है. सवाल है कि क्या भारत और अमेरिका के अंतरिक्ष में सपने एक हो सकते हैं, क्या वो करीबी पार्टनर बन सकते हैं?

मौका है इसे मानवता के लिए एक मील का पत्थर बन बनाने का. यह होगा यदि राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी अवसर का लाभ उठाते हैं और एक अंतरिक्ष पुल (स्पेस ब्रिज) बनाते हुए भारत-अमेरिका शिखर सम्मेलन आयोजित करते हैं. 4 जुलाई को अमेरिका अपना स्वतंत्रता दिवस मनाएगा और स्पेस पर शिखर सम्मेलन आयोजित करने का इससे अच्छा मौका और क्या हो सकता है. अंतरिक्ष हमें हर तरह की सीमाओं से मुक्ति देता है, जैसा धरती पर नहीं है.

भारत का 'वसुधैव कुटुंबकम' या दुनिया एक परिवार है का दर्शन पूरे ब्रह्मांड में गूंज सकता है. ऐसा तब होगा जब मोदी और ट्रंप, जो एक साथ लगभग दो अरब की आबादी का प्रतिनिधित्व और नेतृत्व करते हैं, एक साथ सितारों तक पहुंचते हैं और एक शानदार स्पेस पार्टनर के रूप में अंतरिक्ष का उपयोग करके दुनिया को संबोधित करते हैं.

भारत और अमेरिका- स्पेस पार्टनर बनते दो दोस्त

अगले कुछ हफ्तों में भारत और अमेरिका फिर से मिलकर अंतरिक्ष में छलांग लगाएंगे, इसरो और नासा दोनों श्रीहरिकोटा से NISAR सैटेलाइट लॉन्च करने के लिए तैयार हैं. नासा-इसरो सिंथेटिक एपर्चर रडार सैटेलाइट (NISAR) को दोनों ने संयुक्त रूप से बनाया है. यह इसलिए प्रसिद्ध है क्योंकि यह दुनिया का अब तक का सबसे महंगा नागरिक पृथ्वी इमेजिंग सैटेलाइट है और इसकी लागत 1.2 बिलियन डॉलर से अधिक है. यह वर्तमान में इसरो के क्लीन रूम में तैयार खड़ा है और श्रीहरिकोटा से अंतरिक्ष में लॉन्च करने के लिए जियो-सिंक्रोनस सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल (GSLV) का इंतजार कर रहा है. 

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NISAR सैटेलाइट एक गेम चेंजिंग जीवन रक्षक सैटेलाइट है क्योंकि यह पृथ्वी के हेल्थ की निगरानी करने और आने वाली आपदाओं पर नजर रखने में मदद करेगा. यह नासा और इसरो के बीच पहला बड़ा सैटेलाइट सहयोग है. संयोग से, हाल तक इसरो और वास्तव में भारत को हमेशा दूर रखा जाता था. भारत से टेक्नोलॉजी शेयर नहीं करना और उसका प्रतिबंध लगाना, खेल इतने तक ही सीमित था. लेकिन जब भारत-अमेरिका नागरिक परमाणु समझौते पर हस्ताक्षर किया गया तो दोनों राष्ट्रों के बीच केमिस्ट्री बदल लगी.

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इससे पहले 2008 में, भारत ने अपना बड़ा दिल दिखाया और अमेरिकी उपकरणों को चंद्रयान -1 पर बैठकर चंद्रमा पर मुफ्त यात्रा की अनुमति दी. यह भारत-अमेरिकी सहयोग ही था जिसने चंद्रयान -1 के जरिए चांद के भूवैज्ञानिक इतिहास में नाम दर्ज कराया, इसने एक बार फिर साबित कर दिया कि चंद्रमा की सूखी सतह पर पानी के अणु उपस्थिति हैं. यह भारत का 100 मिलियन डॉलर से कम लागत वाला चंद्रयान-1 था जिसने एक तरह से दुनिया के लिए चंद्रमा को नई 'नम' आंखों से देखने के लिए 'बाढ़ के द्वार' (फ्लड गेट) खोल दिए. आलम यह है कि अब चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव तक पहुंचने के लिए तमाम देशों की स्पेस एजेंसियों के बीच नई होड़ मच गई है.

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भारत ने 2023 में अपने चंद्रयान-3 के विक्रम लैंडर हिस्से को चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव के सबसे करीब उतारकर फिर से चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव के सबसे करीब पहुंचने का इतिहास बनाया. आज भारत ने आर्टेमिस समझौते पर भी हस्ताक्षर किए हैं ताकि भारत-अमेरिका दोस्ती एक साथ मिलकर जल्द से जल्द चंद्रमा की सतह पर खोज और स्थायी रूप से निवास कर सके.

अभी भारत और अमेरिका ने जिस स्पेश मिशन के लिए हाथ मिलाया है वो है-  Axiom मिशन 4 (AX-4), जिसे कभी-कभी मिशन आकाश गंगा भी कहा जाता है. इस प्राइवेट मिशन को 25 जून, 2025 को फ्लोरिडा में नासा के कैनेडी स्पेस सेंटर से लॉन्च किया गया था. इसमें भारतीय वायु सेना के ग्रुप कैप्टन शुभांशु शुक्ला और अनुभवी अमेरिकी अंतरिक्ष यात्री पैगी व्हिटसन के अलावा पोलैंड और हंगरी के अंतरिक्ष यात्री भी शामिल हैं. यह चार दशकों में भारत का पहला मानव अंतरिक्ष उड़ान मिशन है. पहली बार इतिहास में कोई भारतीय इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन भी गया है. 

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इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन में पहले से ही नासा के तीन अन्य अंतरिक्ष यात्री, निकोल एयर्स, ऐनी मैकक्लेन और जॉनी किम सवार हैं. स्पेस स्टेशन के कमांडर जापान के एयरोस्पेस एक्सप्लोरेशन एजेंसी, जेएक्सए के ताकुया ओनिशी हैं. अंतरिक्ष में घूमता यह लैब रोस्कोस्मोस के अंतरिक्ष यात्री किरिल पेसकोव, सर्गेई रयजिकोव और एलेक्सी ज़ुब्रित्स्की का भी घर बना हुआ है. स्पेस-11 में अंतरिक्ष स्टेशन पर कुल मिलाकर छह देशों का प्रतिनिधित्व है जो आज इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन को अपना घर कहते हैं.

यह Axiom-4 मिशन जून 2023 में प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी की वाशिंगटन यात्रा के दौरान साइन किए एक ऐतिहासिक समझौते से उपजा है. भारत और अमेरिका के बीच संयुक्त बयान में इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन में एक भारतीय अंतरिक्ष यात्री को भेजने की प्रतिबद्धता जताई गई थी. अब नासा, इसरो और Axiom Space के संयुक्त प्रयासों से यह वादा पूरा हुआ है.

ISS के अंतरिक्ष यात्रियों से मिलकर बात करेंगे मोदी-ट्रंप?

अमेरिकी एयरोस्पेस इंजीनियर और निवेशक जॉर्ज वेनमैन ने NDTV से बात करते हुए कहा, "यह एक बहुत ही खास अवसर है. ग्रुप कैप्टन शुक्ला और हमारी सबसे सम्मानित अंतरिक्ष यात्रियों में से एक पैगी व्हिटसन का इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन पर एक साथ होना इस बात का सबूत है कि भारतीय और अमेरिकी नेतृत्व का दृष्टिकोण एक है. राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा मिलकर अंतरिक्ष यात्रियों को एक संयुक्त संबोधन देना एकता और प्रेरणा का एक शक्तिशाली प्रतीक हो सकता है."

मिशन की टाइमिंग इसके प्रतीकात्मक महत्व को बढ़ाती है. 4 जुलाई को अमेरिकी स्वतंत्रता दिवस है. ऐसे में दोनों नेताओं (मोदी-ट्रंप) द्वारा स्पेस स्टेशन पर मौजूद अंतरिक्ष यात्रियों से मिलकर बात करने, उन्हें संबोधित करने की अटकलें बढ़ रही हैं. ऐसी कोई पहल दोनों लोकतंत्रों के बीच एक "अंतरिक्ष पुल" के रूप में काम कर सकती है, जो उनके साझा मूल्यों और आकांक्षाओं को मजबूत करती है.

वेनमैन ने कहा, "यह मिशन सिर्फ विज्ञान के बारे में नहीं है… यह कूटनीति, प्रेरणा और हमारे ग्रह से परे खोज करने की साझा मानवीय कोशिश की बात है. 4 जुलाई को एक संयुक्त उत्सव इस दिखाने के लिए सही मिसाल होगा कि ये दोनों देश मिलकर क्या हासिल कर सकते हैं.”

यह दिल मांगे मोर…

इस मिशन का व्यावसायिक यानी कमर्शियल पक्ष भी है. Axiom Space ने भविष्य के मिशनों के लिए भारत के लॉन्च व्हिकल (रॉकेट) का उपयोग करने में रुचि व्यक्त की है. वहीं दूसरी तरफ भारतीय अंतरिक्ष यात्रियों ने अब नासा की फैसिलिटीज में ट्रेनिंग ली है. यह गहराता सहयोग भारत-अमेरिका के बीच एक नए चैप्टर का संकेत देता है- स्पेस में मिलकर खोज, आपस में टेक्नोलॉजी के शेयर करने और कमर्शियल उद्यमों की क्षमता के साथ अंतरिक्ष संबंध.

जब दुनिया इस खगोलीय सहयोग की बुनियाद पर इमारत खड़ी होती दिख रही है, संदेश स्पष्ट है: अंतरिक्ष एक महान एकीकरणकर्ता (यूनिफायर) है आनी वो दो देशों को एक साथ लाने का काम करता है. चाहे विज्ञान, कूटनीति, या साझा सपनों के माध्यम से, भारत और अमेरिका नई ऊंचाइयों तक पहुंचने के लिए एक साथ आ रहे हैं. आखिरकार 'ये दिल मांगे मोर'!

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