भारत-रूस रिश्ते: स्थाई नहीं तेल का खेल, पुतिन दौरे पर बनेगा बदलती दुनिया के लिए प्लान?

भारत और रूस के बीच रिश्ते आपसी भरोसे और जरूरत का रहा है. रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन का दौरा ऐसे समय है जब दुनिया कई अलग-अलग संकटों से जूझ रही है.

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भारत और रूस के बीच मजबूत रिश्ते
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  • पुतिन की यात्रा दिखाती है कि बदलती दुनिया में भारत–रूस साझेदारी भारत की रणनीतिक ताकत का बड़ा आधार बनी हुई है.
  • रिकॉर्ड व्यापार के बावजूद असंतुलन और प्रतिबंध बताता है कि भारत को नए भुगतान सिस्टम और भरोसेमंद विकल्प चाहिए.
  • भारत की असली मजबूती अब विविध साझेदारियों, घरेलू क्षमता और बदलते हालात में स्मार्ट नेविगेशन से बनेगी.
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नई दिल्ली:

4 दिसंबर से राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की भारत यात्रा ऐसे समय पर हो रही है जब वैश्विक अर्थव्यवस्था और रणनीतिक माहौल में बहुत ज्यादा बदलाव हो रहा है. राजधानी नई दिल्ली में उनकी मौजूदगी न केवल पुराने भरोसेमंद रिश्तों की पुष्टि है, बल्कि यह भी दिखाता है कि कैसे बदलते वैश्विक व्यापार, वित्तीय व्यवस्था और सुरक्षा माहौल में भारत और रूस के रिश्ते कैसे नई शक्ल अख्तियार कर रहे हैं. दोनों देशों के बीच तेजी से बढ़ता व्यापार, बढ़ती प्रतिबंधों को लेकर तेज होती बहस और गैर-पश्चिमी साझेदारी का बढ़ता प्रभाव- ये सभी एक बड़े बदलाव के संकेत हैं. दुनिया अब एक केंद्र वाली व्यवस्था से हटकर कई समानांतर आर्थिक नेटवर्कों में बदल रही है. ऐसे में पुतिन की यात्रा यह समझने का एक अहम मौका है कि भारत को इस बदलते माहौल में खुद को कैसे स्थापित करना चाहिए.

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भारत-रूस कारोबार 

भारत और रूस के बीच व्यापार अब तक के सबसे ऊंचे स्तर पर पहुंच गया है, यह वित्त वर्ष 2024-25 में 68.7 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुंच गया है, यह रियायती दर पर मिलने वाले रूसी तेल की वजह से बढ़ा है. बाहर से देखने में भले ही यह एक शानदार सफलता दिखती है पर वास्तविक आंकड़े बहुत असंतुलित हैं. दरअसल, इसका  रूस का भारत को निर्यात 63.8 बिलियन डॉलर का है जो कि कुल व्यापार का 92 फीसद से भी अधिक हिस्सा है, जबकि भारत का रूस को निर्यात 5 बिलियन डॉलर (8 प्रतिशत) से भी कम है. रुपया-रूबल में लेनदेन का मामला अब तक सुलझा नहीं है, जिससे व्यापार को और बढ़ाने में समस्या आ रही है.

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कारोबार की पूरी रणनीति समझिए 

क्या दोनों देशों के बीच चल रहा यह व्यापार दीर्घावधि तक चलता रहेगा? आंशिक रूप से इसका जवाब 'हां' में है. जब तक भारत को रूस से सस्ते दरों पर तेल के आपूर्ति हो रही है और रूस पर लगाए जा रहे प्रतिबंध उसे मजबूर न कर दें, भारत उसके लिए एक अहम बाजार बना रहेगा. लेकिन लंबे समय तक ऐसा ही बना रहे इसके लिए बड़े सुधार करने होंगे, जैसे- भारत का निर्यात बढ़े, निवेश दो-तरफा हो और एक ऐसा भुगतान सिस्टम बने जो मौजूदा रुकावटों को दूर करे. इसके बिना, वैश्विक राजनीतिक माहौल बदलने और ऊर्जा के क्षेत्र में वर्तमान उछाल की स्थित खुद-ब-खुद वापस पहले वाली स्थिति में आने का खतरा है. लिहाजा व्यापार में आया ये उछाल एक स्थायी बदलाव नहीं है बल्कि इसे अवसर के तौर पर देखा जाना चाहिए कि क्या यह आर्थिक तौर पर एक लंबी साझेदारी का मौका है या नहीं. यह बहुत कुछ इस पर निर्भर करेगा कि भारत और रूस तेल के अलावा अपने व्यापारिक रिश्ते कितना संतुलित बनाते हैं.

दुनिया में बन रहा है नया सिस्टम

दूसरा बड़ा बदलाव वैश्विक व्यापार व्यवस्था से जुड़ा हुआ है. अमेरिका और यूरोप टैरिफ, एक्सपोर्ट कंट्रोल और वित्तीय प्रतिबंधों को रणनीतिक हथियार की तरह इस्तेमाल कर रहे हैं. इससे वर्ल्ड ट्रेड ऑर्गेनाइजेशन (WTO) की प्रासंगिकता पर भी सवाल उठने लगे हैं, यह एक बेकार विवाद समाधान तंत्र (डिस्प्यूट सेटलमेंट सिस्टम) बन गया है जिसके कायदे-कानून पुराने हो चुके हैं. लेकिन WTO अभी भी खत्म नहीं हुआ है. विकासशील देशों, खासकर भारत के लिए WTO ही वह मंच है जो देशों को एकतरफा फैसले लेने से रोकता है और निर्यात आधारित विकास का भरोसेमंद फ्रेमवर्क देता है. दुनिया में अब एक नया हाइब्रिड सिस्टम बन रहा है, जहां बहुपक्षीय नियम मौजूद रहेंगे, लेकिन साथ में द्विपक्षीय और छोटे समूहों के समझौते भी बढ़ेंगे.

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भारत के लिए क्या है चुनौती

ब्रिक्स+ जैसे मंच, क्षेत्रीय व्यापार समझौते, सप्लाई चेन साझेदारी और स्थानीय मुद्रा में भुगतान- ये सभी नए प्रयोगशाला की तरह काम कर रहे हैं. भारत के लिए चुनौती दोहरी है- WTO में सुधार की पहल का नेतृत्व करना जिससे ग्लोबल साउथ की आवाज मजबूत हो, और साथ ही साझेदारों के इस्तेमाल से एक ऐसी दुनिया में अपनी ताकत बढ़ाना जो अब एक ही ऑपरेटिंग सिस्टम पर नहीं चलती.

एशियाई देशों से मजबूत किए रिश्ते

पुतिन की यात्रा ने इस बहस को भी तेज कर दी है कि क्या एकतरफा प्रतिबंध अपना असर खो रही हैं. रूस इसका जटिल लेकिन सीखने लायक उदाहरण है. पश्चिम की लगाई पाबंदियों के बावजूद रूस ने व्यापार को नए रास्तों पर मोड़ लिया, कई आर्थिक संकेतकों को स्थिर किया और एशियाई देशों से रिश्ते मजबूत किए. पाबंदियों से नुकसान तो हुआ है, लेकिन वैसी गिरावट नहीं आई जिसकी कई लोगों ने भविष्यवाणी की थी.

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यह दो बातें स्पष्ट करता है


पहली- प्रतिबंध तब ही बेहद प्रभावी होते हैं जब दुनिया के बड़े हिस्से उनका समर्थन करें, यह आज कम होता जा रहा है.
दूसरी- UN के बाहर लगे एकतरफा प्रतिबंधों को भारत सहित ग्लोबल साउथ संदेह की नजरों से देखता है. उन्हें यह न्याय का हथियार नहीं, बल्कि दबाव का साधन लगता है, जो तीसरे देशों के विकास हितों को नहीं देखता. इसलिए दुनिया प्रतिबंध-मुक्त नहीं बन रही, बल्कि कई नए विकल्प बन रहे हैं, जैसे- लोकल-करेंसी सेटलमेंट, BRICS फाइनेंशियल इंस्ट्रूमेंट्स, अलग-अलग तरह के लॉजिस्टिक्स कॉरिडोर, और बढ़ा हुआ साउथ-साउथ ट्रेड. लेकिन दुनिया की सप्लाई चेन अभी भी पश्चिमी देशों के पैसों, तकनीक और उनके नियमों पर बहुत अधिक निर्भर है. इसलिए एक बिल्कुल अलग और पूरी तरह सुरक्षित नई व्यवस्था बनाना, भारत समेत ज्यादातर देशों के लिए न तो आसान है और न ही फायदेमंद.

भारत का प्लान समझिए 

भारत–रूस संबंध दो स्तंभों पर टिके हैंः ऊर्जा सुरक्षा और रक्षा के क्षेत्र में सहयोग. इसमें रक्षा हिस्सेदारी भले ही घट रही है पर आज भी भारत अपने जरूरत की एक तिहाई खरीदारी रूस से ही करता है. ब्रह्मोस जैसे संयुक्त कार्यक्रम दिखाते हैं कि रिश्ता अब सिर्फ खरीदने और बेचनेवाले के बीच का नहीं है, बल्कि साझी विकास मॉडल की ओर बढ़ रहा है. S-400 की तैनाती ने भारत का भरोसा और बढ़ाया है. साथ ही भारत अमेरिकी, फ्रांसीसी, इजरायली और घरेलू उद्योगों की ओर भी तेजी से विविधीकरण कर रहा है. मकसद रूस को हटाना नहीं, बल्कि किसी एक देश पर निर्भरता कम करना है. आज की बंटी हुई वैश्विक प्रणाली में असली रणनीतिक स्वायत्तता तभी मिलेगी जब भारत बहुस्तरीय साझेदारियां, सप्लाई चेन में बैकअप और अपनी घरेलू क्षमता मजबूत करे.

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क्या बनेगा नया वैश्विक ब्लॉक

एक नए वैश्विक आर्थिक ब्लॉक की बातें हो रही हैं, जो पश्चिमी नियंत्रण से अलग हो. लेकिन हकीकत अधिक जटिल है. नए ढांचे जरूर बन रहे हैं स्थानीय मुद्रा व्यापार, BRICS की नई वित्तीय व्यवस्थाएं, नए व्यापार मार्ग, साउथ-साउथ ट्रेड का विस्तार. लेकिन दुनिया की वैल्यू चेन अभी भी पश्चिमी पूंजी, तकनीक और नियमों से गहराई से जुड़ी है. पूरी तरह अलग वैश्विक व्यवस्था बनना न तो संभव है, न व्यावहारिक—भारत के लिए भी नहीं.

भारत के पास बड़ा मौका 

इसके बजाय अब एक कई-परतों वाली वैश्विक अर्थव्यवस्था बन रही है, जो पूर्व बनाम पश्चिम की दो हिस्सों वाली दुनिया नहीं, बल्कि एक ऐसा नेटवर्क है जहां देश अलग-अलग तरह के रिश्ते बनाकर अपनी मजबूती और मोलभाव की ताकत बढ़ाते हैं. भारत के लिए यह खतरा नहीं, बल्कि बड़ा मौका है. क्योंकि भारत पूर्व और पश्चिम दोनों के साथ गहराई से जुड़ा हुआ है. अगर भारत नए विकल्पों में निवेश करे और मौजूदा रिश्तों भी बरकरार रखे, तो उसे अनोखी रणनीतिक ताकत मिल सकती है.

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भारत और रूस के रिश्ते कोई पुरानी बात नहीं बल्कि एक ऐसा नजरिया है जिससे दुनिया की नई इकोनॉमिक ज्योमेट्री को देखा जा सकता है. बढ़ता व्यापार, बैन का विरोध, गुट की राजनीति, बदलती रक्षा जरूरतें- ये सब एक बड़े बदलाव का हिस्सा हैं. भविष्य की दुनिया दो हिस्सों में नहीं बंटी होगी. वह बहुकेंद्रित, विवादित मुद्दों पर सवाल उठाने वाली और  गतिशील होगी. भारत के लिए असली चुनौती यह है कि वह बदलाव के इस दौर का सही इस्तेमाल करे. ऐसे नियम बनाए जो उसके हित में हों, अपने विकल्पों को ज्यादा विविध बनाए, घरेलू क्षमताओं को मजबूत करे और यह सुनिश्चित करे कि उसकी स्ट्रेटेजिक ऑटोनॉमी मजबूत आर्थिक लचीलेपन पर आधारित रहे. एक ऐसी दुनिया जो अब सिर्फ एक शक्ति संतुलन के इर्द-गिर्द संगठित नहीं है, वहां किसी एक ओर न जाकर, हालात को समझकर अपना रुख तय करना ही सफलता तय करेगा.

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