कमाल खान के निधन को आज एक साल हो गया. वो NDTV के सबसे मजबूत स्तंभों में रहे. हिंदी पत्रकारिता की सबसे नफ़ीस और भरोसेमंद आवाज़ों में एक. उनका जाना हिंदी पत्रकारिता में ऐसा शून्य पैदा कर गया, जिसे अब तक भरा नहीं जा सका है. आज कमाल खान की पहली पुण्यतिथि है. हमारे साथ देश-दुनिया में मौजूद कमाल खान के मुरीद उन्हें अपने-अपने ढंग से श्रद्धांजलि दे रहे हैं. लखनऊ में उन्हें श्रद्धांजलि देने के लिए शनिवार को प्रतिष्ठित नागरिक, मित्र और परिवार के लोग एकत्रित हुए.
उपस्थित लोगों में प्रमुख सामाजिक कार्यकर्ता और लखनऊ विश्वविद्यालय की पूर्व प्रोफेसर रूप रेखा वर्मा, थिएटरकर्मी और कार्यकर्ता दीपक कबीर और कहानीकार, लेखक और पत्रकार हिमांशु बाजपेयी भी शामिल थे.
एनडीटीवी इंडिया के मैनेजिंग एडिटर मनोरंजन भारती ने कहा, "वह हज के बारे में जितनी ईमानदारी से रिपोर्ट करते थे उतनी ही ईमानदारी से राम मंदिर पर रिपोर्ट करते थे. यही कारण है कि कमाल भाई को वाराणसी के बच्चों से लेकर दिल्ली के लोगों और पुरी के रेत कलाकारों से श्रद्धांजलि मिली."
उत्तर प्रदेश की राजनीति की गहरी जानकारी और शिष्ट भाषा की उत्कृष्ट रिपोर्टिंग के लिए जाने जाने वाले कमाल खान का पिछले साल दिल का दौरा पड़ने से लखनऊ में उनके घर पर निधन हो गया था. वह तीन दशकों से अधिक समय तक NDTV के साथ थे.
उन्हें एक बेहतरीन रिपोर्टर के रूप में याद किया जाता है, उनका काम आने वाली पीढ़ी के लिए एक उदाहरण है. कठोर सच्चाई को काव्यात्मक निपुणता के साथ सबसे अल्हदा अंदाज में पेश करने का गुण उन्हें लोगों के साथ जोड़ता था तो रिपोर्टर के रूप में सबसे आगे खड़ा करता था.
एक न्यूज एंकर के रूप में कमाल खान का गंभीर बातों को बहुत सहजता से कहने का अंदाज लोगों को बेहद पसंद आता था. एक बेहद शिष्ट और विषय की गहरी समझ रखने वाले कमाल को उनकी भाषा के लिए भी हमेशा याद किया जाएगा.
दुनिया में साधारण बातें हम भूल जाते हैं और असाधारण सालों याद रहती हैं. कमाल का नाम ही उनके पत्रकारिता जीवन को एक शब्दों में बयान करने के लिए काफी है. बेहतरीन और असाधारण रिपोर्टिंग की बात चलेगी तो जिक्र कमाल खान का जरूर आएगा.