- 17 दिसंबर को पीएम मोदी का मस्कट जाना, भारत-ओमान के बीच व्यापारिक रिश्ते और साझा इतिहास में नए युग की शुरुआत है
- भारतीय निवेशक ओमान के फ्री जोन में इंफ्रास्ट्रक्चर और इनोवेशन को बढ़ावा दे रहे
- हजारों साल पुराने रिश्ते अब 10 अरब डॉलर से अधिक मजबूत साझेदारी में तब्दील हो गई है
आज, जब वैश्विक अर्थव्यवस्था में ठीक उसी तरह बहुत तेजी से बदलाव आ रहा है जैसे तपती धूप में रेत के टीले बदलते रहते हैं, ऐसे समय में भारत और ओमान के बीच हुआ सीईपीए यानी व्यापक आर्थिक साझेदारी समझौता (CEPA) दुनिया की अनिश्चित हालात के बावजूद आपसी सहयोग की भावना को दिखाता है. 17 दिसंबर 2025 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मस्कट पहुंचने के साथ ही यह साफ हो गया कि यह दौरा सिर्फ व्यापार तक सीमित नहीं है, बल्कि भारत और मध्य-पूर्व के रिश्तों को नई गहराई देने की कोशिश है.भारत और ओमान के संबंध केवल आयात-निर्यात तक नहीं सिमटे हैं, इनकी जड़ें इतिहास, संस्कृति और समृद्ध भविष्य की एक समान सोच में निहित हैं. CEPA के तहत होर्मुज स्ट्रेट (जलडमरूमध्य) का अहम प्रवेशद्वार ओमान, न केवल समुद्री रास्ते से व्यापार के रास्ते खोलता है. बल्कि विचारों और साझा भविष्य को भी जोड़ता है.
भारत को होगा फायदा
प्रधानमंत्री मोदी ने नए अवसरों की चर्चा करते हुए बिल्कुल सही कहा कि “व्यापार सिर्फ शुल्क और कोटे तक सीमित नहीं होता, यह भरोसे और रिश्तों पर टिका होता है.” अमेरिका के बढ़ते टैरिफ दोनों देशों के आर्थिक रिश्तों पर लंबे समय से असर डाल रहे हैं, ऐसे में CEPA का मुख्य मकसद निर्यात के लिए नए बाजार की तलाश करना भी है. वाणिज्य मंत्रालय के मुताबिक, ओमान ने अपने 98 प्रतिशत से ज्यादा टैरिफ पर शून्य शुल्क देने का प्रस्ताव रखा है, यह दोनों देशों के बीच व्यापार का नक्शा बदलने की क्षमता रखता है और भारत के रत्न, आभूषण, कपड़े, दवाइयां और गाड़ियों के क्षेत्रों को खास फायदा होगा. वहीं, ओमान से आने वाले करीब 95 प्रतिशत आयात पर शुल्क कम करने का फैसला यह दिखाता है कि दोनों देश बराबरी के आधार पर आगे बढ़ना चाहते हैं—खासतौर पर ऐसे क्षेत्र में, जहां अक्सर बड़े देशों का दबदबा रहता है.
ओमान का साहसिक कदम
भारत-ओमान CEPA, 2006 में अमेरिका के साथ हुए समझौते के बाद ओमान का पहला द्विपक्षीय समझौता है. इसके अलावा, CEPA समझौता ओमान के लिए एक बड़ा कदम है. ओमान, जो हमेशा तनावपूर्ण हालात में तटस्थ रहने के लिए जाना जाता है, अब अंतरराष्ट्रीय रिश्तों में साहसिक कदम उठा रहा है. 2006 में अमेरिका के साथ हुए समझौते के बाद यह उसका पहला द्विपक्षीय समझौता है, जो एक नए अध्याय की शुरुआत है. पश्चिम के साथ हुई असफल वार्ताओं के अनुभव ने भारत के साथ एक मजबूत और अर्थपूर्ण रिश्ते बनाने का बुनियाद तैयार किया है. एक ऐसे साथी के साथ जो बाजार में ही नहीं बल्कि संस्कृति में भी साझीदार है.
भारत का 2022 का UAE CEPA, अन्य GCC देशों के साथ FTAs के लिए मॉडल बना
भारत ने UAE के साथ Comprehensive Partnership Agreement (CEPA) पर हस्ताक्षर किए जो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और UAE के राष्ट्रपति शेख मोहम्मद बिन जायद अल नाहयान के बीच 18 फरवरी 2022 को एक वर्चुअल सम्मेलन के दौरान हुआ, क्योंकि तब कोविड-19 का संकट था. UAE के साथ CEPA समझौता 1 मई 2022 से आधिकारिक रूप से लागू हुआ, जो दोनों देशों के व्यापार और आर्थिक संबंधों को बढ़ाने में एक बड़ा कदम था. यह भारत का किसी भी देश के साथ पिछले दस सालों में पहला व्यापक मुक्त व्यापार समझौता (फ्री ट्रेड एग्रीमेंट यानी FTA) था, जिसका उद्देश्य द्विपक्षीय व्यापार और अवसरों को बढ़ाना था.
जियो-पॉलिटिक्स पर क्या असर?
भारत और ओमान के बीच CEPA का असर कई क्षेत्रों पर पड़ेगा. यह समझौता जितना टैरिफ को लेकर है, उतना ही जियो-पॉलिटिक्स के बारे में भी है. यह उन जटिल साझेदारियों को भी दिखाता है, जो आधुनिक व्यापार समझौतों की नींव बनाती हैं. ओमान की अगुवाई वाला खाड़ी क्षेत्र एक अहम मोड़ पर खड़ा है, जो तेल और सामान के लिए एक जरूरी रास्ता बन गया है. भारत के लिए, यह रिश्ता केवल लेन-देन वाला नहीं है; यह एक अधिक मज़बूत आर्थिक ढांचे की ओर एक रणनीतिक कदम है जो बाहरी झटकों से मजबूत बनाने में मदद करता है.
कारोबार को मिलेगी नई ऊंचाई
और गहराई से देखें, तो रत्न और आभूषण के निर्यात की अगले तीन सालों में 35 मिलियन डॉलर से बढ़कर अनुमानित 150 मिलियन डॉलर तक जाने की संभावना है, जो विकास की उम्मीद जगाता है. यह सिर्फ आर्थिक आंकड़ों की बात नहीं है; यह कारीगरों के शिल्प कौशल शिल्पकला और सांस्कृतिक पहचान को वैश्विक मंच पर मान्यता दिलाने का भी संकेत है. इसी तरह, ओमान के 12.5 बिलियन डॉलर के बढ़ते हुए सर्विस इम्पोर्ट मार्केट में अपनी जगह बनाने का अवसर एक ऐसे कैनवास की तरह है जो भारतीय कौशल और विशेषज्ञता से रंग भरे जाने के इंतजार में है.
ओमान: रेगिस्तान में एक स्वर्ग और भारत के साथ इसके ऐतिहासिक संबंध
समुद्री यात्राओं की दास्तानों में सिंदबाद की कहानियां दूर-दराज की दुनिया के रोमांच, व्यापार और वहां के आकर्षण की सजीव कल्पनाओं को जिंदा करती हैं. ऐतिहासिक रूप से देखें तो कहा जाता है कि सिंदबाद का जन्म समुद्र किनारे बसे शहर सोहर में हुआ था, जिसे ओमान की समुद्री विरासत का प्रतीक माना जाता है. वोस्को डी गामा के हिंद महासागर की आंधी-तूफान से भरी यात्रा से कहीं पहले ओमानी इसके (हिंद महासागर के) नाविक के रूप में महारत हासिल कर चुके थे. अपने जहाज पर नमक और मसालों की खुशबू के साथ समुद्र की लहरों पर सफर करते और उनके छोटे जहाजों की पतवार ऐसे फरफराती थीं जैसे अरब की गरम हवाएं.
प्रसिद्ध नाविक
ओमान की पहचान एक समुद्री देश के तौर पर है, और यही पहचान सिंदबाद की पौराणिक यात्राओं में दिखता है. ओमान के नाविकों को हवाओं और समुद्र की धाराओं का बहुत गहरा ज्ञान था, वे वास्तव में उन व्यापारिक मार्गों के असली पायनियर थे जो पूर्वी अफ्रीकी तटों को भारत के तटों से जोड़ते थे. उनकी विरासत न केवल लोबान, गूगल और मोतियों के कीमती सामानों में दिखती है, जिसे वे ट्रांसपोर्ट करते थे, बल्कि उस मिलीजुली विविध संस्कृति में भी दिखती है जिसे उन्होंने सदियों के सांस्कृतिक आदान-प्रदान से बुना था. ओमान की यह समुद्री विरासत सिर्फ एक पृष्ठभूमि नहीं है, बल्कि उनके इतिहास की बुनियाद है. ओमानी लोगों ने गुलामों के व्यापार पर दबदबा बनाया और उन्होंने स्वाहिली तट पर एक साम्राज्य बनाने में अहम भूमिका निभाई, जिससे उनकी संस्कृति अफ्रीका और एशिया के प्रभावों से समृद्ध हुई. इसके परिणामस्वरूप, ओमान कई सभ्यताओं का संगम बन गया, जहां अलग-अलग भाषाओं और रीति-रिवाजों की गूंज ने एक समृद्ध सांस्कृतिक तस्वीर तैयार की.
हजारों वर्षों का व्यापार और सांस्कृतिक आदान-प्रदान
भारत और ओमान के रिश्ते हजारों साल पुराने हैं. यह रिश्ता व्यापार और सांस्कृतिक आदान-प्रदान के जरिए मजबूत हुआ, जिसने दोनों देशों पर गहरा असर छोड़ा. पुरातात्विक खोजों से पता चलता है कि तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व के आसपास, क्लासिकल काल में भारत-ओमान व्यापार फला-फूला, और इसी शुरुआती संबंध ने स्थायी रिश्तों की नींव रखी. भारत के गुजरात, केरल और मालाबार तट इस साझेदारी में अहम भूमिका निभाते थे, जहां व्यापारी अरब सागर पार करके अपने जहाजों में सामान और उम्मीदें लेकर आते थे.
गुजरात के कच्छ क्षेत्र के व्यापारी समुद्री व्यापार में मशहूर थे. 18वीं और 19वीं सदी में वे हिंद महासागर के व्यापार पर छाए हुए थे. अपने कारोबारी स्वभाव, जोखिम लेने और पूर्वी अफ्रीका, मध्य पूर्व (मस्कट, जांजीबार) तक बड़े व्यापार नेटवर्क के लिए जाने जाते थे, जहां वे कपड़े, मसाले, सोना, हाथी दांत और यहां तक कि गुलामों का भी व्यापार भी करते थे. उन्होंने दुनिया भर में समुदाय बनाए और आधुनिक वेंचर कैपिटल और फाइनेंस के गुणों के साथ शुरुआती वैश्विक व्यापारी की तरह काम किया.
मस्कट में बतौर संपादक मेरा ओमान में व्यक्तिगत अनुभव
जब 2004 में मैं ओमान ट्रिब्यून (अल वतन ग्रुप का अंग्रेजी अखबार) का फाउंडिंग एडिटर बनकर मुस्कट गया, तो मुझे केवल वास्तुकला की भव्यता ही नहीं, बल्कि वहां के लोगों की गर्मजोशी और मेहमाननवाजी ने भी बहुत प्रभावित किया. मस्कट के छह आलीशान महलों और देश भर में फैले प्राचीन किला ने इतिहास की झलक दिखाई, वहीं बाजारों में मसाले, खजूर और कपड़ों के बीच हर बातचीत, हर लेन-देन ने साझा इतिहास और आपसी सम्मान की एक तस्वीर पेश की. गुजरात के कच्छ के व्यापारी और केरल के उद्यमी ओमान के साथ व्यापार में आगे थे—चाहे वह बासमती चावल, रत्न और आभूषण, हॉस्पिटैलिटी इंडस्ट्री, रियल एस्टेट, रिटेल या अन्य क्षेत्रों का व्यापार हो. हर ओमानी जिससे मैं मिला, वह हिंदी और मलयालम जानता था और उसे बॉलीवुड और भारत से बहुत अधिक प्यार था. भारत के लिए यह प्यार वहां की शीर्ष नेतृत्व से शुरू होता था. पूर्व सुल्तान काबूस मेयो कॉलेज, अजमेर में पढ़े थे और भारत के पूर्व उपराष्ट्रपति शंकर दयाल शर्मा के छात्र भी थे. आज भी मेयो कॉलेज के लड़कों के एक हॉस्टल का नाम ओमान हाउस है.
मैंने जाना कि ओमान और भारत के बीच ऐतिहासिक संबंध पुराने समय में राजा टीपू सुल्तान जैसे लोगों के कारण और गहरे हुए, जिन्होंने अपने शासनकाल में ओमान में राजनयिक प्रतिनिधिमंडल भेजे, जिसने राजनीतिक और सांस्कृतिक रिश्ते के मजबूत धागे बुने, जो आज तक कायम हैं. आज भी ओमान की धरती भारतीय और ओमानी परंपराओं का संगम दिखाती है, जहां भारतीय व्यापारी और कामगार ओमान की समाज व्यवस्था में उतने ही अहम हैं जितनी इस रेगिस्तानी स्वर्ग की रेत और समुद्र की लहरें.
एक समकालीन आर्थिक साझेदारी
2022 की बात करें (जब मैंने आखिरी बार ओमान का दौरा किया था) और आज 2025 में, प्रधानमंत्री मोदी की यात्रा और भारत और ओमान के बीच व्यापार बातचीत एक मज़बूत साझेदारी में बदल गई है. द्विपक्षीय व्यापार 2024-2025 में 10 अरब डॉलर से भी ऊपर पहुंच गया, वैश्विक चुनौतियों के बावजूद एक साल में यह लगभग दोगुना हो गया है. यह शानदार बढ़ोतरी न केवल आर्थिक सहयोग को दिखाती है, बल्कि एक ऐसे रिश्ते को भी दिखाती है जो साझा हितों और आपसी फायदों पर आधारित है.
भारतीय उद्यमी और निवेश ओमान की अर्थव्यवस्था का अहम हिस्सा बन गए हैं, खासकर सोहार और सालाल्हा के फ्री जोन में, जहां भारतीय कंपनियां इंफ्रास्ट्रक्चर, कॉमर्स और इनोवेशन के भविष्य को आकार दे रही हैं. भारत-ओमान जॉइंट कमीशन की बैठक (JCM) और जॉइंट बिजनेस काउंसिल (JBC) जैसी संस्थागत व्यवस्थाएं इस साझेदारी को और मजबूत बनाती हैं, और ऐसे मंच बनाती हैं जो उतने ही सक्रिय और जीवंत हैं जितने कि उनके प्रतिनिधित्व वाले बाजार.
सांस्कृतिक एकता की धड़कन
जब मैं ओमान की समृद्ध ऐतिहासिक विरासत में डूबा, तो मैंने पाया कि भारतीयों की इस धरती पर गहरी जड़ें हैं, जो सदियों से यहां मिलजुलकर रहते आए हैं. गुजरात के कच्छी व्यापारी, हॉस्पिटैलिटी करने वाले, केरल और आंध्र प्रदेश के कारीगर ओमानी जीवन का हिस्सा बन चुके हैं. उनकी हिम्मत, मेहनत, उद्यमशीलता और सांस्कृतिक मेलजोल की कहानियां ओमान की कहानी को और भी अधिक समृद्ध बनाती हैं. मस्कट में मौजूद सौ साल से भी अधिक दो हिंदू मंदिर लंबे समय से अलग-अलग धर्मों और परंपराओं के साथ रहने का सबूत है.
एक ऐसी दुनिया में जहां अक्सर मतभेद रहता है, ओमान एकता का एक स्थान बनकर सामने आता है, एक ऐसी जगह जहां अतीत की कदर की जाती है और भविष्य को मिलकर गढ़ा जाता है. ओमानी लोगों की मेहमाननवाजी और गर्मजोशी, जो भारतीयों द्वारा लाए गए साझा इतिहास और समुदाय की भावना से जुड़ी है, जो आपको बार-बार यहां वापस आने के लिए बुलाती है.
ओमान भारतीयों के सबसे अच्छे टूरिस्ट डेस्टिनेशन में से एक
अपनी मनमोहक सुंदरता के साथ, ओमान शायद भारतीय पर्यटकों के लिए सबसे खास जगहों में से एक है. धूप से तपती रेगिस्तानी धरती और नीले समुद्रों वाला ओमान सिर्फ एक भौगोलिक जगह नहीं है; यह ऐतिहासिक और सांस्कृतिक स्वर्ग है. सिंदबाद की कहानियां, पुराने समुद्री रास्ते और आधुनिक शहरों की चमक-दमक यह दिखाती हैं कि यह देश साहस, मजबूती और एकता की भावना को अपने में समेटे हुए है. ओमान और भारत के रिश्ते सिर्फ ऐतिहासिक नहीं हैं, यह वो कहानी है जो लगातार बदल रही है और सुनिश्चित करते हुए कि इस रेगिस्तानी स्वर्ग की विरासत आने वाली पीढ़ियों तक संजोकर रखी जाए.
17 दिसंबर 2025 को, जब मस्कट में सूरज अरब सागर पर सुनहरी रौशनी पसारते हुए डूब रहा था तब एक नई कहानी लिखी जा रही थी— एक ऐसी कहानी जो सिर्फ द्विपक्षीय व्यापार की नहीं, बल्कि दोस्ती, मजबूती और साझा महत्वाकांक्षा की थी. हर नए समझौते के साथ नए अवसर सामने आते हैं, और दुनिया देख रही है कि भारत और ओमान साथ मिलकर एक ऐसा भविष्य बना रहे हैं जो उनके साझा इतिहास का सम्मान करता है और नए रास्ते खोलता है. व्यापार की असली खूबसूरती इसी में निहित है: यह केवल सामान का आयात-निर्यात नहीं है, बल्कि दो देशों के जुड़ने का आधार है, जो विविधता भरी दुनिया में देशों को आपस में जोड़ती है.













