भारत में हाइपरटेंशन के खिलाफ बड़ा कदम , IHCI का दूसरा चरण 100 जिलों में लागू, 5 साल में मिले 20 लाख मरीज

भारत हर चौथा वयस्क हाई बीपी (हाइपरटेंशन) से जूझ रहा है, लेकिन सिर्फ 10% लोगों का बीपी कंट्रोल में है. ऐसे में लोगों को हाई बीपी से बचाने के लिए केंद्र सरकार ने एक बड़ी पहल की है.

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  • भारत में हर चौथा वयस्क हाई बीपी से प्रभावित है, लेकिन केवल दस प्रतिशत लोगों का बीपी नियंत्रण में है, जो स्वास्थ्य के लिए चिंता का विषय है.
  • केंद्र सरकार ने हाइपरटेंशन कंट्रोल इनिशिएटिव के दूसरे चरण को 21 राज्यों के 100 जिलों में शुरू किया है, जहां अब तक बीस लाख से अधिक मरीजों का पंजीकरण हुआ है.
  • IHCI कार्यक्रम का उद्देश्य हाई बीपी की जल्दी पहचान, मानकीकृत इलाज और डिजिटल टूल्स के माध्यम से निगरानी को बेहतर बनाना है.
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देश में हाई बीपी (हाइपरटेंशन) एक बड़ी समस्या बनती जा रही है और मौजूदा आंकड़े चिंतित करने वाले है. जानकारी के अनुसार, भारत हर चौथा वयस्क हाई बीपी (हाइपरटेंशन) से जूझ रहा है, लेकिन सिर्फ 10% लोगों का बीपी कंट्रोल में है. ऐसे में लोगों को हाई बीपी से बचाने के लिए केंद्र सरकार ने एक बड़ी पहल की है. सरकार ने हाइपरटेंशन कंट्रोल इनिशिएटिव (IHCI) नाम का कार्यक्रम का दूसरा फेज देश के 21 राज्यों के 100 जिलों में शुरू कर दिया है. इसमें 5 साल में अब तक 20 लाख से ज्यादा मरीजों का रजिस्ट्रेशन हो चुका है, जिनमें से करीब 47% का बीपी नियंत्रण में है.

पहले चरण में सरकार को मिली सफलता 

केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के अनुसार, यह बदलाव लगातार जांच और स्वास्थ्य निगरानी के कारण संभव हुआ है. केंद्र सरकार ने इस कार्यक्रम के पहले चरण की शुरुआत 2017 में की थीं, जो 2019 तक कुल 26 जिलों में चला था. इसके नतीजों को देखते हुए इसे अब 104 जिलों तक शुरू किया गया, जहां के करीब 13,821 अस्पतालों और स्वास्थ्य केंद्रों में हाई बीपी की जांच, निगरानी और इलाज की सुविधा का विस्तार हुआ है.

क्या है IHCI कार्यक्रम?
यह एक राष्ट्रीय कार्यक्रम है जिसे ICMR और केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय मिलकर चला रहे हैं. इसका उद्देश्य है – हाई बीपी की जल्दी पहचान, सही इलाज और लगातार निगरानी करना है.

IHCI के तीन अहम हिस्से हैं:

1. मानकीकृत इलाज – पूरे देश में बीपी के इलाज की एक समान व्यवस्था करना है.


2. डिजिटल टूल्स – बीपी पासबुक, मोबाइल ऐप और डिजिटल रजिस्ट्रेशन से ट्रैकिंग आसान करना है.


3. हर स्तर पर इलाज की सुविधा – गांव के हेल्थ सेंटर से लेकर शहरों तक बीपी की जांच और दवाओं की सुविधा का विस्तार करना है.


क्यों है ये जरूरी?

हर साल भारत में लाखों लोग हार्ट अटैक और स्ट्रोक जैसी बीमारियों से जान गंवाते हैं, जिनकी मुख्य वजह अनियंत्रित बीपी है. खासतौर पर ग्रामीण इलाकों में तो बीपी की जांच और इलाज की पहुंच काफी कम है. वहीं, दूसरी ओर हाइपरटेंशन से जुड़ी बीमारियां भारत के कुल स्वास्थ्य बोझ का बड़ा हिस्सा बन चुकी हैं.

तमिलनाडु बना रोल मॉडल: ICMR 

आईसीएमआर- नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ एपिडेमियोलॉजी के शोधकर्ताओं के अनुसार, तमिलनाडु ने हाई बीपी को कंट्रोल करने में बड़ी सफलता हासिल की है. 2019-20 में जहां सिर्फ 7.3% मरीजों का बीपी कंट्रोल में था, वहीं 2023-24 में यह आंकड़ा 17% तक पहुंच गया. सर्वे के दौरान शोधकर्ताओं ने 18 से 69 वर्ष के कुल 8880 वयस्कों की जांच की और इनमें 29.6% हाई बीपी रोगियों की पहचान की. इसी जांच में उन्हें 19.5% लोग डायबिटिक मिले. इस तरह महज तीन साल में नियंत्रण दर दोगुना होने के साथ छह में से एक मरीज का हाइपरटेंशन कंट्रोल में हो गया. निदेशक डॉ. मनोज वी. मुर्हेकर ने कहा कि ये सुधार तमिलनाडु हेल्थ सिस्टम रिफॉर्म प्रोग्राम की बदौलत संभव हुआ है. यह आंकड़े बताते हैं कि यदि राज्य की स्वास्थ्य प्रणाली को मजबूत किया जाए तो नॉन कम्युनिकेबल डिसीज पर भी काबू पाया जा सकता है.

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ICMR के डीजी डॉ. राजीव बहल कहा है कि तमिलनाडु का मॉडल दूसरे राज्यों के लिए एक मिसाल है. अगर सही तरीके से दवा वितरण, नियमित जांच और जागरूकता फैलाई जाए, तो हाई बीपी और मधुमेह जैसी बीमारियों सहित गंभीर रोगों पर काबू पाया जा सकता है.

पहले चरण में भी दिखा असर, 26 जिलों में आया बदलाव 

केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने हाइपरटेंशन कंट्रोल इनिशिएटिव कार्यक्रम (IHCI) के पहले चरण की रिपोर्ट भी जारी की है. इसमें बताया कि IHCI के तहत पंजाब, केरल, मध्य प्रदेश, तेलंगाना, महाराष्ट्र सहित पांच राज्यों के 26 जिलों में इस मॉडल को लागू किया गया था. जिसमें कुछ समय बाद पता चला कि स्थानीय आबादी में गैर संचारी रोगों के प्रति जागरूकता में 6.1%, बीपी नियंत्रण में 6.7% और इलाज में 3.9% की बढ़ोतरी देखी गई.

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