सेप्टिक टैंक साफ करते वक्त अब नहीं होगी मज़दूरों की मौत, IIT मद्रास ने बनाया रोबोट

ये एक ऐसी तकनीक है जो 75 साल बाद लोगों को हाथ से मैला उठाने से रोक सकती है. मानवीय गरिमा को कायम कर सकती है और साथ ही उन्हें आर्थिक रूप से सशक्त बना सकती है. कई लोगों को उम्मीद है कि स्थानीय निकाय तेजी से बदलाव लाने के लिए इस तकनीक को अपनाएंगे.

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इसकी मदद से अब सफाई करने के लिए श्रमिकों को सेप्टिक टैंक के अंदर जाना नहीं पड़ेगा.

IIT मद्रास की एक कार्यशाला में 45 वर्षीय नागामल पूरे उत्साह के साथ सेप्टिक टैंक साफ करने वाला रोबोट चलाना सीख रही हैं. दरअसल नागामल के पति की मौत सेप्टिक टैंक की सफाई के दौरान हो गई थी. जिसके बाद परिवार की सारी जिम्मेदारी नागामल के कंधों पर आ गई. बता दें कि सेप्टिक टैंक की सफाई के दौरान दम घुटने के कारण 1993 से अब तक 900 से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है. वहीं इस समस्या को देखते हुए सेप्टिक टैंकों को साफ करने के लिए IIT मद्रास की ओर से रोबोटिक HOMOSEP बनाया गया. इसकी मदद से अब सफाई करने के लिए श्रमिकों को सेप्टिक टैंक के अंदर जाना नहीं पड़ेगा.

चेन्नई में रहने वाली नागामल जल्द ही एक उद्यमी के रूप में बदल जाएगी, जो सेप्टिक टैंकों को साफ करने के लिए इस रोबोटिक तकनीक का संचालन करेगी. एनडीटीवी से बात करते हुए नागामल ने कहा कि बीस साल पहले उनके पति एक सेप्टिक टैंक की सफाई करने के लिए उसमें उतरे थे. सफाई के दौरान जहरीली गैस के कारण उनकी मौत हो गई. दो बेटियों के साथ जीवन कठिन था. अब मैं बहुत खुश हूं कि पहली मशीन मुझे दी गई है. मुझे बहुत गर्व है कि इससे मैं दस लोगों की जान बचा सकूंगी.

एक दशक से अधिक समय तक हाउसकीपिंग वर्कर के रूप में संघर्ष करने के बाद अब नागामल ने अपने नए उद्यम में दो अन्य लोगों को शामिल किया है. आईआईटी मद्रास के एक स्टार्टअप ने स्थानीय समुदायों के परामर्श से ट्रैक्टर पर लगे इस रोबोटिक सिस्टम को विकसित किया है. ब्लेड के साथ रोबोटिक आर्म, जो खुल और बंद हो सकता है. ये रोबोट सेप्टिक टैंक के निचले भाग तक पहुंचता है, कीचड़ को कुचलता है और इसे वहां से बाहर निकलता है.

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मैकेनिकल इंजीनियरिंग विभाग के प्रोफेसर प्रभु राजगोपाल, जो एक सह-संस्थापक भी हैं. उन्होंने कहा कि "हर जिले में स्वयं सहायता समूहों का एक निर्धारित सेट होना चाहिए. जो इन मशीनों को हासिल करेगा. इस प्रकार समस्या को हमेशा के लिए समाप्त किया जा सकता है. अपने काम को सम्मान के साथ करेंगे और अपनी आजीविका कमाएं."

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छात्रों की एक टीम और IIT मद्रास के एक फैकल्टी सदस्य द्वारा स्थापित, इस मशीन की कीमत लगभग 20 लाख रुपये है. सीएसआर फंडिंग से नागामल जैसे कई लोगों को मशीन का मालिक बनने में मदद मिली है. वहीं ये टीम एक कॉम्पैक्ट मॉडल पर भी काम कर रही है.

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सोलिनास के सीईओ दिवांशु कुमार ने कहा, "मौजूदा कॉम्पैक्ट संस्करण में हम कल्पना कर रहे हैं कि डिस्लजिंग सिस्टम, सक्शन के साथ-साथ स्टोरेज टैंक सभी को एक वाहन में ही फिट किया जा सकता है. जो इसे बहुत ही मॉड्यूलर बना देगा.

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सफाई कर्मचारी आंदोलन, राष्ट्रीय कोर टीम की सदस्य दीप्ति सुकुमार ने कहा कि एक ऐसी तकनीक का मालिक होना जो इसका समाधान दे रही है, एक बहुत बड़ा इतिहास रचती है. आत्मविश्वास, उनका स्वाभिमान और सम्मान, सब कुछ बदल रहा है"

यह कोई रॉकेट साइंस नहीं है बल्कि 75 साल बाद एक ऐसी तकनीक है जो लोगों को हाथ से मैला उठाने से रोक सकती है, मानवीय गरिमा को बरकरार रख सकती है और उन्हें आर्थिक रूप से सशक्त बना सकती है. कई लोगों को उम्मीद है कि स्थानीय निकाय तेजी से बदलाव लाने के लिए इस तकनीक को अपनाएंगे.

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