लकवा के मरीजों की आवाज वापस लाने को लेकर एम्स दिल्ली IIT के साथ मिलकर म्यूजिक थेरेपी पर काम कर रही है. एम्स का मानना है कि स्ट्रोक के मरीजों को बिना देरी किए डॉक्टर से परामर्श लेना चाहिए. आंकड़े कह रहे हैं कि साल दो साल की देरी के बाद मरीज़ थक हारकर एम्स पहुंचते हैं. अगर शुरुआती दौर में एम्स आ जाएं तो सुधार की गुंजाइश ज्यादा है.
पश्चिम के देशों में स्ट्रोक के मरीजों की आवाज वापस लाने को लेकर म्यूजिक थेरेपी से इलाज कारगर रहा है. अब एम्स भारतीय संगीत के ज़रिए खोई आवाज़ वापस लाने की संभावना पर काम कर रही है. ICMR ने फंड किया है. कोशिश इस बात की है कि जिस धुन को यहां के लोग समझते हैं, उसके आदि है. उस धुन के सहारे उनकी आवाज़ में सुधार लाया जा सके.
पश्चिम के देशों में इसका प्रमाण पहले से है, लेकिन पाश्चात्य संगीत की धुन के जरिए वहां उपचार किया जाता है. वो न तो धुन की कॉपी एम्स करना चाह रहा है और न ही उस धुन की समझ ही लोगों को होगी. लिहाज़ा खुद की भारतीय धुन के ज़रिए इस तरीके को इजाद किया जा रहा है. देश में ये पहला मौका होगा, जब संगीत के ज़रिए लकवा के मरीजों की आवाज़ वापस लाने की कवायद चली है.
एम्स न्यूरोलॉजी विभाग की प्रोफेसर डॉक्टर दीप्ति विभा कहती हैं कि अगर किसी परिवार में स्ट्रोक का कोई मरीज़ है तो फिलहाल मौजूदा उपचार में ये हिदायत दी जाती है कि मरीज से इशारों इशारों में बात करने से परहेज़ करें. जोर दें की लड़खड़ाता भरी आवाज़ ही सही पर मरीज़ कोशिश बोलने की करे. ऐसा करना फिलहाल फायदेमंद तो साबित हो रहा है, पर संगीत के ज़रिए रिकवरी ज़्यादा तेज़ी से हो सकती है.
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