मानवीय गतिविधियों की वजह से दुनिया का तापमान भी तेजी से बढ़ रहा है. जलवायु परिवर्तन (Climatic Change) इंसानों के लिए आज सबसे बड़ी चुनौती बन गया है. ग्लोबल वार्मिंग अगर 3 डिग्री सेल्सियस बढ़ जाती है, तो हिमालय क्षेत्र के करीब 90 प्रतिशत हिस्से में एक साल तक तक सूखा रहेगा, ये जानकारी एक रिसर्च में सामने आई है. जर्नल क्लाइमैटिक चेंज में पब्लिश प्रकाशित निष्कर्षों के मुताबिक, भारत गर्मी के जोखिम से 80 प्रतिशत तक बच सकता है, जबकि 3 डिग्री ज्यादा तापमान होने से कृषि भूमि को सूखे की ज्यादा मार झेलनी पड़ती है. इससे बचने के लिए पेरिस समझौते का पालन करना होगा. वहीं पेरिस समझौता वैश्विक तापमान बढ़ोतरी (Global Warming) को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने के लक्ष्यों का पालन करने को कहता है.
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कैसे बढ़ता है ग्लोबल वार्मिंग का खतरा?
यूके में ईस्ट एंग्लिया विश्वविद्यालय (यूईए) में रिसर्चर्स के नेतृत्व वाली टीम इस निष्कर्ष पर पहुंची कि किस तरह से इंसान और प्रकृति के जुड़े जोखिम बढ़ने से ग्लोबल वार्मिंग का खतरा बढ़ जाता है. यह आठ स्टडी भारत, ब्राजील, चीन, मिस्र, इथियोपिया और घाना पर केंद्रित हैं. स्टडी के मुताबिक, सूखा, बाढ़, फसल की पैदावार में गिरावट और जैव विविधता और प्राकृतिक पूंजी के नुकसान से ग्लोबल वार्मिंग का स्तर काफी बढ़ जाता है. शोधकर्ताओं ने कहा कि ग्लोबल वार्मिंग को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने से आधी बॉयो-डाइवर्सिटी को बचाने में मदद मिल सकती है. जबकि 3 डिग्री रखने पर 6 प्रतिशत ही बचाया जा सकेगा.
कैसे कम होगी कृषि भूमि पर सूखे की मार?
रिसर्च टीम के मुताबिक, तापमान में 3 डिग्री सेल्सियस बढ़ोतरी की वजह से खेती की जमीन को सूखे की ज्यादा मार झेलनी पड़ती है. ऐसा हुआ तो हर देश में 50 प्रतिशत से ज्यादा खेती की जमीन को एक साल से लेकर 30 साल तक गंभीर रूप से सूखे की मार झेलनी पड़ सकती है. वहीं ग्लोबल वॉर्मिंग को अगर1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित किया जाता है तो भारत में कृषि भूमि पर सूखे का जोखिम 21 प्रतिशत (भारत) और 61 प्रतिशत (इथियोपिया) के बीच कम हो जाएगा. इससे नदी और झरनों की वजह से आने वाली बाढ़ और इससे होने वाला नुकसान भी कम होगा.
ग्लोबल वार्मिंग पर शोधकर्ताओं की चेतावनी
शोधकर्ताओं ने कहा कि छह देशों में गंभीर सूखे की वजह से मानव जोखिम में होने वाली वृद्धि में 3 डिग्री सेल्सियस की तुलना में 1.5 डिग्री सेल्सियस पर 20-80 प्रतिशत की कमी आई है. उन्होंने कहा कि समुद्र के बढ़ते स्तर से तटीय देशों में आर्थिक नुकसान बढ़ने का अनुमान जताया गया है, अगर तापमान वृद्धि 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित रहा तो गर्मी में काफी कमी आएगी. शोधकर्ताओं ने चेतावनी दी कि ग्लोबल वार्मिंग को कम करने के लिए और ज्यादा कोशिशों की जरूरत है, क्यों कि क्योंकि वर्तमान में वैश्विक स्तर पर चल रही नीतियों के तहत ग्लोबल वार्मिंग में 3 डिग्री सेल्सियस की बढ़ोतरी होने की संभावना है.
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