"मैं निरंकुशता के खिलाफ'' : ममता बनर्जी ने 'एक देश-एक चुनाव' को किया खारिज

पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविन्द के नेतृत्व वाली समिति ने 'एक देश, एक चुनाव' के विचार को लेकर सुझाव मांगे हैं. ममता बनर्जी ने उनको एक विस्तृत पत्र लिखा है जिसमें उन्होंने कहा है कि उन्हें "सिद्धांत के साथ बुनियादी वैचारिक कठिनाइयां" हैं.

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बंगाल की मुख्यमंत्री और तृणमूल कांग्रेस का प्रमुख ममता बनर्जी (फाइल फोटो).
कोलकाता:

बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने गुरुवार को विवादास्पद 'एक देश, एक चुनाव' के विचार पर हमला बोला. उन्होंने इसे "संविधान की मूल संरचना को नष्ट करने और लोकतंत्र में निरंकुशता की इजाजत देने के लिए एक प्रणाली बनाने की योजना" करार दिया. उन्होंने कहा कि, "मैं निरंकुशता के खिलाफ हूं और इसलिए, आपकी इस डिजाइन के खिलाफ हूं.''

पत्र में ममता बनर्जी ने लिखा है कि, यह भारत के संवैधानिक बुनियादी ढांचे के खिलाफ होगा. ममता ने कहा कि 1952 में लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के एक साथ पहली बार आम चुनाव कराए गए थे. उन्होंने कहा, ''कुछ वर्षों तक इस तरह से चला लेकिन बाद में यह प्रक्रिया टूट गई.'' उन्होंने पत्र में लिखा, ''मुझे खेद है कि मैं आपके द्वारा तैयार 'एक देश, एक चुनाव' की अवधारणा से सहमत नहीं हूं. हम आपके प्रारूप और प्रस्ताव से असहमत हैं.''

उन्होंने कहा कि समिति के साथ सहमत होने को लेकर कुछ वैचारिक कठिनाइयां हैं और इसकी अवधारणा स्पष्ट नहीं है.

नरेंद्र मोदी सरकार की कटु आलोचक तृणमूल कांग्रेस प्रमुख ने व्यंग्यात्मक लहजे में कहा, "ऐसा लगता है कि आप केंद्र सरकार द्वारा पहले ही एकतरफा लिए जा चुके 'निर्णय' के बारे में ऊपर से नीचे की ओर संदेश दे रहे हैं, एक ऐसा ढांचा लागू करना जो वास्तव में लोकतांत्रिक और संघीय (राष्ट्र) भावना के खिलाफ है.''

पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविन्द के नेतृत्व वाली एक उच्च-स्तरीय समिति के सचिव डॉ नितेन चंद्रा को भेजे गए एक विस्तृत पत्र में ममता बनर्जी ने कहा कि उन्हें "सिद्धांत के साथ बुनियादी वैचारिक कठिनाइयां" और साथ ही "आपके पद्धतिगत दृष्टिकोण में कठिनाइयां" हैं.

ममता बनर्जी ने 'एक देश एक चुनाव' के मतलब को लेकर सवाल किया और कहा, ''मैं ऐतिहासिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक परिपेक्ष्य में एक राष्ट्र का अर्थ समझती हूं, लेकिन मैं इस मामले में इस शब्द के सटीक संवैधानिक व संरचनात्मक निहितार्थ को नहीं समझ पा रही हूं. क्या भारतीय संविधान 'एक देश, एक सरकार' की अवधारणा का पालन करता है? मुझे डर है, ऐसा नहीं होगा.''

ममता ने कहा कि जब तक यह अवधारणा कहां से आई इसकी 'बुनियादी पहेली' का समाधान नहीं हो जाता तब तक इस मुद्दे पर किसी ठोस राय पर पहुंचना मुश्किल है.

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उन्होंने कहा कि कुछ राज्यों में हाल-फिलहाल में विधानसभा चुनाव नहीं होने वाले इसलिए सिर्फ और सिर्फ एक पहल के नाम पर उन्हें समय पूर्व आम चुनाव के लिए मजबूर नहीं किया जाना चाहिए, जो उस जनता के चुनावी विश्वास का मूल उल्लंघन होगा, जिन्होंने पांच वर्षों के लिए अपने विधानसभा प्रतिनिधियों को चुना है.

ममता बनर्जी ने कहा, ''केंद्र या राज्य सरकार विभिन्न कारणों से अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाती हैं जैसे अविश्वास प्रस्ताव पर गठबंधन का टूटना.'' उन्होंने कहा कि पिछले 50 वर्षों के दौरान लोकसभा में कई बार समय से पहले सरकार को टूटते हुए देखा है. उन्होंने कहा कि इस तरह की स्थिति में नए सिरे से चुनाव ही एकमात्र विकल्प है.

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टीएमसी प्रमुख ने कहा, ''शासन की 'वेस्टमिंस्टर' प्रणाली में संघ और राज्य चुनाव एक साथ न होना एक बुनियादी विशेषता है, जिसे बदला नहीं जाना चाहिए. संक्षेप में कहें तो एक साथ चुनाव नहीं होना भारतीय संवैधानिक व्यवस्था की मूल संरचना का हिस्सा है.''

ममता बनर्जी ने "सामान्य मतदाता सूची की तैयारी" सहित कई "छोटी" आपत्तियां भी उठाईं. उन्होंने मुख्यमंत्रियों को शामिल न करने के लिए समिति की आलोचना भी की.

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ममता बनर्जी ने तीखे स्वर में कहा, "आपके पत्राचार की प्रकृति और जिस तरीके से आप आधी-अधूरी धारणाओं को तथ्य के रूप में स्वीकार करते हैं, उससे हमें संदेह है कि क्या समिति मामले के दोषों का विश्लेषण करने में गंभीरता से रुचि रखती है." उन्होंने कहा, "इन परिस्थितियों में मैं आपके द्वारा तैयार की गई 'एक राष्ट्र, एक चुनाव' की अवधारणा से सहमत नहीं हो सकती. हम आपके सूत्रीकरण और प्रस्ताव से असहमत हैं."

सन 1967 तक चुनाव एक साथ होते थे. इस प्रकार से चार चुनाव आयोजित किए गए. सन 1968-69 में कुछ राज्य विधानसभाओं को समय से पहले भंग कर दिए जाने के बाद यह परंपरा खत्म हो गई.

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साल 2014 के चुनाव में एक साथ लोकसभा और विधानसभा चुनाव कराना बीजेपी के घोषणा पत्र का हिस्सा था.

(इनपुट भाषा से भी)

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