हुसैन रज़ा चला गया; वो कहते हैं, सूखा हुआ है... बेबस मां को बस इतना ही पता, दोषी कौन?

मध्य प्रदेश सरकार हर दिन बच्चों के पोषण पर लाखों खर्च करने का दावा करती है. आंगनबाड़ियों में सामान्य बच्चों के लिए 8 रुपये और गंभीर रूप से कुपोषित बच्चों के लिए 12 रुपये रोज़ खर्च दिखाए जाते हैं.

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  • सतना के मरवा गांव के चार महीने के हुसैन रज़ा का जिला अस्पताल में गंभीर कुपोषण के कारण निधन हो गया.
  • जन्म के बाद निमोनिया और टीकाकरण न होने के कारण हुसैन का वजन जन्म के तीन किलो से घटकर दो किलो 500 ग्राम रह गया.
  • मध्य प्रदेश में कुपोषित बच्चों की संख्या बढ़ रही है और कई जिले राष्ट्रीय पोषण स्तर से ऊपर रेड ज़ोन में हैं.
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सतना के मझगंवा ब्लॉक के मरवा गांव के चार महीने के हुसैन रज़ा ने मंगलवार की रात जिला अस्पताल में दम तोड़ दिया. चार दिन तक वह ज़िंदगी से जूझता रहा. हड्डियों से चिपकी त्वचा, सूखे होंठ और बुझी हुईं आंखें उसकी हर सांस के साथ दर्द बयां कर रही थीं. डॉक्टरों ने पूरी कोशिश की, लेकिन हुसैन को नहीं बचा सके. डॉक्टरों के मुताबिक हुसैन का वजन सिर्फ़ दो किलो 500 ग्राम था, जबकि उसकी उम्र के बच्चे का सामान्य वजन कम से कम पांच किलो होना चाहिए. वह इतना कमज़ोर था कि ज़ोर से रो भी नहीं पाता था. उसकी मां असमा बानो ने पिछले शनिवार को उसे जिला अस्पताल लाकर दाखिल करवाया था. जब शिशु रोग विशेषज्ञ डॉ. संदीप द्विवेदी ने पहली बार बच्चे को देखा तो वह भी सन्न रह गए. जांच के बाद पता चला कि बच्चा ‘गंभीर रूप से कुपोषित' है. उसे तुरंत न्यूट्रिशन रिहैबिलिटेशन सेंटर भेजा गया और फिर पीआईसीयू में भर्ती किया गया. डॉक्टरों ने चार दिन तक उसे बचाने की पूरी कोशिश की, लेकिन मंगलवार देर रात उसने अंतिम सांस ली.

जांच में पता चला कि हुसैन का जन्म 2 जुलाई 2025 को हुआ था. जन्म के वक्त उसका वजन तीन किलो था, लेकिन जन्म के कुछ ही दिनों बाद उसे निमोनिया हो गया. बीमारी ने उसके शरीर को तोड़ दिया. वजन घटकर ढाई किलो रह गया और हैरानी की बात यह कि उसे कोई टीका भी नहीं लगा था. उसकी रोग प्रतिरोधक क्षमता लगभग ख़त्म हो चुकी थी.

ये पहला मामला नहीं

बच्चे की मौत के बाद स्वास्थ्य विभाग ने लापरवाही बरतने पर तीन लोगों को नोटिस जारी किए हैं. खुठा स्वास्थ्य केंद्र के चिकित्सा अधिकारी डॉ. एसपी श्रीवास्तव, मरवा उप-स्वास्थ्य केंद्र की कार्यकर्ता लक्ष्मी रावत, और आशा कार्यकर्ता उर्मिला सतनामी को जवाब देने के लिए कहा गया है. विभाग का कहना है कि कुपोषित बच्चों की पहचान और निगरानी में लापरवाही किसी भी सूरत में बर्दाश्त नहीं की जाएगी.

लेकिन हुसैन की मौत एक बड़ा सवाल छोड़ गई है. जब हर स्तर पर योजनाएं चल रही हैं, पोषण मिशन पर करोड़ों खर्च हो रहे हैं, तो फिर गांवों में बच्चों की मौत क्यों नहीं रुक रही? 

यह मौत अकेली नहीं है. अगस्त में शिवपुरी की 15 महीने की दिव्यांशी ने जिला अस्पताल में दम तोड़ा, उसका वजन सिर्फ़ 3.7 किलो था. उससे पहले श्योपुर की डेढ़ साल की राधिका की मौत हुई, उसका वजन सिर्फ़ 2.5 किलो था. जुलाई में भिंड के लहार अस्पताल में भी एक बच्चे की मौत हुई, परिवार ने कारण कुपोषण बताया. हर कहानी एक जैसी है, और हर बार दोष ‘सिस्टम' पर डालकर मामला बंद कर दिया जाता है.

एमपी सरकार के आंकड़े

विधानसभा में पेश आंकड़ों के मुताबिक साल 2020 से जून 2025 तक आदिवासी विकास खंडों में 85,330 बच्चों को NRC में भर्ती किया गया. हर साल यह संख्या लगातार बढ़ी है. 2020–21 में 11,566, और 2024–25 में 20,741 बच्चे भर्ती हुए.  केवल 2025–26 के पहले तीन महीनों में ही 5,928 बच्चों का इलाज किया जा चुका है.

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सरकारी रिकॉर्ड मानते हैं कि प्रदेश में 10 लाख से अधिक बच्चे कुपोषित हैं, जिनमें से 1.36 लाख गंभीर रूप से कमजोर हैं. अप्रैल 2025 में राष्ट्रीय स्तर पर 5 वर्ष से कम उम्र के बच्चों में गंभीर और मध्यम कुपोषण का औसत 5.40% था, जबकि मध्य प्रदेश में यह दर 7.79% रही.

केंद्र के न्यूट्रिशन ट्रैकर ऐप के अनुसार मई 2025 में राज्य के 55 में से 45 ज़िले “रेड ज़ोन” में थे, जहां 20% से अधिक बच्चे अपनी उम्र के अनुसार बेहद कम वज़न के हैं.

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कितना मिलता है पैसा

हुसैन रज़ा अब एक आंकड़ा बन चुका है एक और नंबर, एक और फाइल. पर उस आंकड़े के पीछे एक मां का टूटा हुआ दिल है, एक बच्चे की अधूरी मुस्कान है, और एक सिस्टम है जिसने फिर आंखें मूंद लीं. एनडीटीवी से बातचीत में हुसैन रजा की मां ने कहा, वो कहते हैं रजा सूखा हुआ है. बेटे की मौत के बाद आंखों से आंसू भी सूख गए थे.

मध्य प्रदेश सरकार हर दिन बच्चों के पोषण पर लाखों खर्च करने का दावा करती है. आंगनबाड़ियों में सामान्य बच्चों के लिए 8 रुपये और गंभीर रूप से कुपोषित बच्चों के लिए 12 रुपये रोज़ खर्च दिखाए जाते हैं, लेकिन इन्हीं 8 और 12 रुपयों के बीच, एक मासूम ज़िंदगी चली गई. काग़ज़ों पर सरकार हर बच्चे पर 980 रुपये तक खर्च दिखाती है, लेकिन ज़मीन पर 8 और 12 रुपयों के बीच पिसती इन मासूम ज़िंदगियों की कहानी बताती है कि पोषण की योजनाओं में संवेदनशीलता कहीं खो चुकी है.

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