बंगाल में Mamata ने कैसे खींची PM मोदी और अमित शाह के आगे लंबी लकीर?- इन 5 कारणों से समझें

Mamata Banerjee पर पीएम मोदी, अमित शाह जैसे बड़े केंद्रीय नेताओं का सीधा हमला भी उनके लिए सहानुभूति का काम कर गया. दीदी ओ दीदी, दो मई-दीदी गईं, दीदी की स्कूटी नंदीग्राम में गिर गई जैसे बयान बीजेपी पर उल्टे पड़े.

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Bengal Assembly Election Results : ममता बनर्जी ने विधानसभा चुनाव 2016 जैसा प्रदर्शन दिखाया
नई दिल्ली:

पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव (West Bengal Assembly Election Results 2021) में सारी ताकत झोंकने के बावजूद बीजेपी ममता बनर्जी (Mamata Banerjee) की अगुवाई वाली तृणमूल कांग्रेस (TMC) को सत्ता से हटाने का लक्ष्य पाती नहीं दिख रही है. रुझानों के हिसाब से टीएमसी ने 190 से ज्यादा सीटों पर बढ़त बना ली है, जबकि BJP 97 सीटों पर अटक गई है. चुनावी विश्लेषकों की मानें तो 'बंगाल की बेटी' ममता बनर्जी की तेजतर्रार छवि, बंगाली अस्मिता, महिलाओं और अल्पसंख्यकों का टीएमसी की ओर बड़ा झुकाव का सीधा फायदा तृणमूल को मिला. चुनाव आयोग समेत केंद्रीय एजेंसियों की चुनाव के दौरान जरूरत से ज्यादा दखल बीजेपी के खिलाफ गया.

1. दीदी की घायल शेरनी की छवि
बीजेपी की भारीभरकम चुनावी मशीनरी का अकेले मुकाबला कर रहीं ममता बनर्जी का नंदीग्राम में चुनाव प्रचार के दौरान घायल हो जाना निर्णायक बातों में एक रहा. माना जा रहा है कि ममता बनर्जी ने चोट के बावजूद व्हीलचेयर पर जिस तरह से लगातार धुआंधार प्रचार किया और बीजेपी नेतृत्व के खिलाफ आक्रामक हमला बोला, उससे यह छवि बनी कि घायल शेरनी ज्यादा मजबूती से मोर्चा संभाले हुए हैं. ऐसे में सहानुभूति की फैक्टर उनके पक्ष में गया. 

2. महिलाओं, मुस्लिमों, बांग्ला मानुष पर अपनी पकड़ बरकरार रखने में ममता कामयाब
तृणमूल कांग्रेस ने बीजेपी की ध्रुवीकरण की कोशिश की काट करने के लिए 'बंगाल को चाहिए अपनी बेटी' का नारा देकर महिला वोटरों को बड़े पैमाने पर अपने पाले में खींचा. विश्लेषकों के मुताबिक, बीजेपी के पास न तो मुख्यमंत्री पद का कोई चेहरा था और ना ही कोई तेजतर्रार महिला नेता जो ममता को उनकी शैली में जवाब दे पाता. ममता अल्पसंख्यकों खासकर मुस्लिमों के बीच भरोसा कायम रखने में कामयाब रहीं कि बीजेपी को कोई रोक सकता है तो वो टीएमसी है. माना जा रहा है कि मुस्लिमों ने भी लेफ्ट-कांग्रेस के साथ शामिल इंडियन सेकुलर फ्रंट की जगह बीजेपी को हराने के लिए एकतरफा टीएमसी के लिए वोट किया. इससे वोटों के बंटवारे की विपक्ष की रणनीति धरी की धरी रह गई. बीजेपी के बाहरी नेताओं के ममता बनर्जी पर सीधे हमले के मुद्दे को भुनाते हुए टीएमसी ने बांग्ला संस्कृति, बांग्लाभाषा और अस्मिता के फैक्टर को हर जगह उभारा. ममता ने 50 महिला उम्मीदवारों को इसी रणनीति के तहत मैदान में उतारा था.

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3. दलितों-पिछड़ों के बीच BJP का पूरी पकड़ न बन पाना
बीजेपी ने दलितों, पिछड़ों और आदिवासियों को साथ लाकर हिन्दू वोटों एक साथ लाने की कोशिश की. मातुआ समुदाय को पूरी तरह से बीजेपी साथ नहीं ला पाई. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का चुनाव के बीच बांग्लादेश जाना और मातुआ समुदाय से जुड़े मंदिर में जाना भी काम नहीं आया. माना जा रहा है कि राजबंशी और अन्य पिछड़े समुदायों के वोटों में टीएमसी ने बड़ा हिस्सा झटक लिया. दलितों-पिछड़ों के लिए कल्याणकारी योजनाओं से भी ममता सत्ता विरोधी लहर को काबू में रखने में कामयाब रहीं. 

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4. बीजेपी हिन्दू ध्रवीकरण के खिलाफ पूरे बंगाल को दो ध्रुवों में बांट पाने में TMC की रणनीति
बीजेपी की बंगाल में रणनीति साफ थी कि वो 70-30 के ध्रुवीकरण के फार्मूले को धार दे रही थी, लेकिन TMC नेताओं और ममता ने बहुत सावधानी से हर रैली में जोरशोर से कहा कि बीजेपी बंगाल को बांटने की साजिश रच रही है. चुनावी रणनीतिकारों का कहना है कि ममता बनर्जी ने खुद मंदिरों के साथ मस्जिदों में भी जाने का सियासी जोखिम लिया. कट्टर बीजेपी विरोधी वोट इस कारण एकमुश्त तरीके से टीएमसी के पाले में चला गया. लेफ्ट-कांग्रेस  गठबंधन द्वारा टीएमसी के अल्पसंख्यक वोट बैंक में गहरी चोट पहुंचाने की बीजेपी की उम्मीद टूटती नजर आई. 

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5. PM मोदी और अमित शाह के निगिटेव नरेशन, चुनाव से ऐन पहले केंद्रीय एजेंसियों का इस्तेमाल-

चुनावी विश्लेषकों के अनुसार, ममता बनर्जी पर पीएम मोदी, अमित शाह जैसे बड़े केंद्रीय नेताओं का सीधा हमला भी उनके लिए सहानुभूति का काम कर गया. दीदी ओ दीदी, दो मई-दीदी गईं, दीदी की स्कूटी नंदीग्राम में गिर गई जैसे बयान बीजेपी पर उल्टे पड़े. बंगाल बीजेपी अध्यक्ष दिलीप घोष का बरमूडा वाला बयान भी महिलाओं के बीच अच्छा संदेश नहीं गया. विक्टिम कार्ड को भुनाने में टीएमसी ने कोई कसर नहीं छोड़ी. जिस तरह दिल्ली चुनाव में अरविंद केजरीवाल के लिए सहानुभूति कार्ड काम किया था, वही बंगाल में में ममता के पक्ष में नजर आया. माना जा रहा है कि कोरोना के बढ़ते मामलों के बावजूद चुनाव आयोग द्वारा 8 चऱणों में चुनाव कराना, अर्धसैनिक बलों की गोलीबारी में 5 लोगों की मौत, अधिकारियों के तबादलों से ऐसा संकेत गया कि केंद्रीय एजेंसियां चुनाव में ज्यादा दखल दे रही हैं. 

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