प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सोमवार को बिहार के भागलपुर में थे. वहां उनका स्वागत मखाने से बनी एक सुंदर माला से किया गया. किसान सम्मान निधि की किश्त भेजने के लिए आयोजित समारोह में पीएम मोदी मखाना के प्रति प्रेम का प्रदर्शन करने में पीछे नहीं रहे. मखाना को सुपर फूड बताते हुए पीएम ने कहा,''आपका मखाना आज देश ही नहीं पूरे विश्व में फेमस है. मैं भी 365 में से 300 दिन तो जरूर मखाना खाता हूं.'' इससे पहले वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने बजट में घोषणा की थी कि सरकार बिहार में मखाना को प्रोत्साहन देने के लिए बिहार में मखाना बोर्ड का गठन करेगी. वित्तमंत्री की इस घोषणा के बाद से मखाने की कीमतों में 30 फीसदी से अधिक का उछाल देखा गया है. आइए देखते हैं कि दुनिया मखाना पर फिदा क्यों है और इसमें कितना पोषण पाया जाता है.
मखाना को सुपर फूड क्यों माना जाता है
दुनिया में लोगों ने स्वास्थ्यवर्धक खानों की ओर अग्रसर हुए हैं. लोग अब पशुओं से मिलने वाले प्रोटीन की जगह पौधों से मिलने वाले प्रोटीन को प्राथमिकता दे रहे हैं. ऐसे में लोगों को मखाना प्रोटीन का एक बेहतरीन स्रोत नजर आ रहा है. मखाना में पर्याप्त मात्रा में प्रोटीन और कम कैलोरी पाई जाती है. सौ ग्राम मखाने में करीब 10 ग्राम तक प्रोटीन पाया जाता है.यह गुलेटिन फ्री भी होता है. इस वजह से लोग मखाना खाने पर जोर दे रहे हैं. मखाना वजन घटाने में मदद करने के साथ-साथ हृदय को स्वस्थ्य रखने, डायबिटीज को नियंत्रित रखने और हड्डियों को मजबूत बनाने आदि में भी मदद करता है. पौधे से मिलने की वजह से यह शाकाहारियों को विशेष रूप से प्रिय है. राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के मुताबिक 2023 तक करीब 40 फीसदी शहरी परिवारों ने मखाना जैसे हेल्दी स्नैक को अपना लिया था. वहीं फूड सेफ्टी एंड स्टैंडर्ड अथॉरिटी ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट बताती है कि गांवों में अभी केवल 20 फीसदी लोगों की ही पता है कि मखाना एक स्वास्थ्यवर्धक खाद्य पदार्थ है.
भारत में मखाने का बाजार
बाजार के बारे में रिसर्च करने वाली संस्था केन रिसर्च की अक्तूबर 2024 में आई एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत में मखाना का बाजार करीब 100 अरब रुपये का है. इसके मुताबिक सुपरफूड के रूप में पहचान होने के बाद मखाने की मांग में तेजी आई है.इससे इसकी देश में खपत बढ़ी है और निर्यात की संभावना भी बढ़ी है. केन रिसर्च के मुताबिक इस समय भारत में मखाना- कच्चा मखाना, रोस्टेड मखाना, फ्लेवर्ड मखाना और मखाना पाउडर के रूप में बिक रहा है. माखाने का बाजार बढ़ाने में ईकॉमर्स कंपनियों का योगदान बहुत बड़ा है. आज देश में मखाने का 25 फीसदी कारोबार इन ई कॉमर्स कंपनियों के जरिए ही हो रहा है. भारत से मखाने का निर्यात अमेरिका, यूरोप और पश्चिम एशिया के देशों को किया जा रहा है.वहीं दी एग्रीकल्चरल एंड प्रॉस्सेड फूड प्रोडक्ट्स एक्सपोर्ट डेवलपमेंट अथॉरिटी (एपीईडीए) की एक रिपोर्ट के मुताबिक 2023 में मखाना से जुड़े उत्पादों की मांग में 12 फीसदी की तेजी दर्ज की गई थी.
बिहार का मखाना
भारत में पैदा होने वाले कुल मखाने का करीब 85 फीसदी केवल बिहार में पैदा होता है. इसकी खेती बिहार के मधुबनी, दरभंगा, सीतामढ़ी, सहरसा, कटिहार, पूर्णिया, सुपौल, किशनगंज और अररिया जिले में की जाती है. बिहार के अलावा यह पश्चिम बंगाल और असम में भी पैदा होता है. भारत के अलावा मखाना कोरिया, जापान और रूस में भी मखाने की पैदावार होती है. दरभंगा स्थित नेशनल रिसर्च सेंटर फॉर मखाना के मुताबिक भारत में करीब 15 हजार हेक्टेयर जमीन पर मखाने की खेती होती है. भारत में एक लाख 20 हजार मिट्रिक टन मखाने के बीजों और 40 हजार मिट्रिक टन मखाने के लावा का उत्पादन होता है. इस शोध संस्थान के मुताबिक किसान करीब 250 करोड़ रुपये के मखाना का उत्पादन करते हैं, जबकि इसका व्यापार करीब 550 करोड़ रुपये का है. मिथिला के मखाना को अगस्त 2022 में जीआई (जियोग्राफिकल आइडेंटिफिकेशन) टैग मिला था. मिथिलांचल मखाना उत्पादक संघ ने इसे हासिल किया था.
मिथिला के मखाना को अगस्त 2022 में जीआई टैग मिला था.
इतना सब होने के बाद भी बिहार मखाने की व्यापारिक संभावनाओं का दोहन नहीं कर पाया है. इसे देखते हुए ही केंद्र सरकार ने बजट में बिहार में मखाना बोर्ड बनाने का ऐलान किया. इससे किसानों और कारोबारियों के लिए नए अवसर पैदा होने की उम्मीद बढ़ी है. बजट में मखाना बोर्ड के गठन का ऐलान करते हुए वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा था,''बिहार के लोगों के लिए एक विशेष अवसर है. प्रदेश में मखाने के उत्पादन, प्रसंस्करण, मूल्यवर्धन और विपणन में सुधार के लिए मखाना बोर्ड की स्थापना की जाएगी. इन गतिविधियों में लगे लोगों को एफपीओ (किसान उत्पादक संगठन) में संगठित किया जाएगा. यह मखाना किसानों को समर्थन और प्रशिक्षण सहायता प्रदान करेगा.'' बिहार में अभी एक आम किसान परंपरागत रूप से एक हेक्टेयर के तालाब से करीब दो टन मखाना के बीजों का उत्पादन करता है. वहीं एडवांस तकनीक अपनाने वाला किसान उसी तालाब से तीन से साढ़े तीन टन मखाने के बीजों का उत्पादन कर लेता है. वहीं प्रासेसिंग यूनिट न होने की वजह से किसानों को मखाने की अच्छी कीमत नहीं मिल पाती है. इससे किसानों की आमदनी कम रह जाती है. अच्छी प्रासीसिंग यूनिट न होने की वजह से बिहार का मखाना वह गुणवत्ता हासिल नहीं कर पाता है, जो निर्यात के लिए जरूरी होता है. बिहार का केवल दो फीसदी मखाना ही निर्यात के लिए जरूरी अंतरराष्ट्रीय गुणवत्ता रखते हैं. उम्मीद की जा रही है कि मखाना बोर्ड के गठन से इस हालात में बदलाव आएगा.
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