उत्‍तराखंड की सिलक्यारा टनल में कैसे गुजरे 17 दिन, बाहर आए मजदूरों ने NDTV से साझा किया अनुभव

उत्तराखंड के उत्तरकाशी की सुरंग में फंसे मजदूरों ने NDTV को बताया कि वो 17 दिन मौत की तरह थे, एक-एक पल काटना मुश्किल था. खुद को व्‍यस्‍त रखने के लिए वो सुरंग के भीतर ही टहलते थे, योगा करते थे और डायरी के पन्नों से कार्ड बनाकर खेलते थे.

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सुरंग में फंसे मजदूरों में से 8 उत्‍तर प्रदेश से थे

लखनऊ:

उत्तरकाशी की सुरंग से निकाले गए 41 मज़दूर अब अपने घरों को लौट रहे हैं. वापस लौटे ये मज़दूर अपनी आपबीती भी सुना रहे हैं. सुरंग में ज़िंदगी और मौत के बीच झूलते इन मज़दूरों के वो 17 दिन कैसे बीते? NDTV से मज़दूरों ने अपने-अपने अनुभव साझा किये. मजदूरों का कहना है कि वो 17 दिन मौत की तरह थे, एक-एक पल काटना मुश्किल था. खुद को व्‍यस्‍त रखने के लिए वो सुरंग के भीतर ही टहलते थे, योगा करते थे और डायरी के पन्नों से कार्ड बनाकर खेलते थे. इस दौरान उन्हें अपने घरवालों की फिक्र भी सताता रहता था कि इस संकट की ख़बर सुनकर उन पर क्या बीत रही होगी...? 

सुरंग में फंसे मजदूरों में से 8 उत्‍तर प्रदेश से थे. वे अब अपने शहर लौट गए हैं. इन्‍हीं में से एक मजदूर हैं अंकित. उन्‍होंने बताया, "वो 17 दिन मौत के बराबर ही थे. बाहर किसी से बात न कर पाना, अपनी फैमिली से संपर्क न हो पाना, ऑक्‍सीजन भी वहां पर्याप्‍त मात्रा में नहीं मिल पा रही थी. इन्‍हीं परेशानियों से जूझते हुए हमारे 17 दिन सुरंग के अंदर बीते."

उत्‍तराखंड में इन दिनों काफी ठंड पड़ रही है. ऐसे में मजदूरों ने टनल के अंदर बिना किसी चादर या कंबल के 17 दिन कैसे गुजारा किया...? अंकित ने बताया, "सुरंग के अंदर का तापमान, बाहर के तापमान से ज्‍यादा था. इसलिए टनल के अंदर ज्‍यादा ठंड नहीं लगती थी. हालांकि, रात में सोने के लिए हम 'जीयो टेक्‍स्‍ट टायल' का इस्‍तेमाल करते थे. इन टायल का इस्‍तेमाल सुरंग के अंदर पानी के रिसाव को रोकने के लिए किया जाता है. इन टायल को हम बिछाते थे और इन्‍हीं को कंबल की तरह ओड़कर सो जाते थे." 

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अंकित ने बताया कि टनल में समय बिताने के लिए उन्‍होंने बचपन में खेले जाने वाले खेल खेले. उन्‍होंने बताया, "समय बिताने के लिए हम टनल में टहलते थे, योगा करते थे... ये टनल लगभग ढाई किलोमीटर लंबा था, इसलिए टहलने के लिए काफी जगह थी. इसके अलावा बचपन में जो खेल खेला करते थे, वो हमने खेले. राजा-रानी, चोर-सिपाही और ताश के गेम खेले. डायरी के पेज से हमले ताश बनाए थे और उसके साथ खेले."

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मजदूरों ने बताया कि उनके लिए राहत की बात ये रही कि इस दौरान खाने-पीने की कोई दिक्कत नहीं हुई. पाइप के ज़रिए उन तक खाने-पीने की चीज़ें पहुंचाई गईं थीं. इन मज़दूरों से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी का शुक्रिया अदा किया जो लगातार उनकी चिंता करते रहे और उन्हें सुरक्षित निकालने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी.

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