उच्चतम न्यायालय (Supreme Court) ने शुक्रवार को कहा कि वह झूठी शान की खातिर की गई हत्या (Honour Killing) के मामले को हल्के में नहीं लेगा. साथ ही, एक महिला की उस याचिका पर उत्तर प्रदेश सरकार (UP Government) से जवाब मांगा, जिसने मामले में अपने चाचा की जमानत रद्द करने का आग्रह किया है. दरअसल, महिला के अंतर-जातीय विवाह (Inter Caste Marriage) करने पर पिछले साल उसके पति की हत्या की साजिश में उसका चाचा कथित रूप से संलिप्त था. राज्य सरकार और अन्य को नोटिस जारी करने से पहले न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति सूर्यकांत की पीठ ने दीप्ति मिश्रा की ओर से पेश अधिवक्ता एमएस आर्य से कड़े सवाल किए.
दीप्ति के पति की पिछले साल कथित तौर पर हत्या कर दी गई थी. पीठ ने कहा कि प्राथमिकी में महिला के चाचा के खिलाफ कोई विशेष आरोप नहीं थे, जिसमें केवल यह कहा गया था कि उसने शादी का विरोध किया था. अधिवक्ता ने कहा कि दीप्ति के चाचा मणिकांत मिश्रा और उनके दो बेटे हमले में शामिल थे तथा पूर्व में भी ऐसी (हमले की) घटनाएं हो चुकी थीं, जिस पर महिला के पति द्वारा कई शिकायतें दर्ज कराई गई थीं.
पीठ ने कहा, ‘‘यह झूठी शान की खातिर हत्या का मामला है और हम इसे हल्के में नहीं लेते.''हालाँकि, न्यायालय ने कहा, “क्या हमें इस याचिका पर केवल इस आधार पर विचार करना चाहिए कि प्रतिवादी नंबर दो (मणिकांत मिश्रा) ने शादी का विरोध किया था. कोई विशेष आरोप नहीं है. प्राथमिकी में यह नहीं कहा गया है कि वह घटना के समय वहां मौजूद था या वह साजिशकर्ता था.''
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शीर्ष अदालत ने शुरू में कहा कि वह इसमें हस्तक्षेप नहीं करेगी लेकिन आर्य ने पीठ को मनाने की कोशिश की और हत्या की घटना से ठीक पहले धमकी और हमले की घटनाओं की महिला के पति (मृतक) द्वारा सूचना दिए जाने को रेखांकित किया.
पीठ ने कहा, ‘‘ठीक है, हम नोटिस जारी करेंगे. प्रतिवादी संख्या दो (मणिकांत मिश्रा) को नोटिस स्थानीय पुलिस थाने के माध्यम से दिया जाना चाहिए.''
दीप्ति द्वारा वकील सी के राय के माध्यम से दायर याचिका के अनुसार, यह मामला 'झूठी शान की खातिर हत्या' से संबंधित है, जिसमें उसके पति को महिला के रिश्तेदारों ने केवल इसलिए मार डाला कि वह धोबी जाति का था और उसकी शादी एक ब्राह्मण लड़की से हुई थी. इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने पिछले साल 17 दिसंबर को मणिकांत को जमानत दे दी थी.
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