कैसे बनी अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी? सर सैय्यद को क्यों लैला बनकर करना पड़ा नाटक?

अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (Aligarh Muslim University) के अल्‍पसंख्‍यक दर्जे को लेकर चल रहे मामले में सुप्रीम कोर्ट का फैसला आ गया है. ऐसे में जानते हैं कि इस यूनिवर्सिटी का गौरवशाली इतिहास और इसकी स्‍थापना से जुड़े दिलचस्‍प किस्‍से.

विज्ञापन
Read Time: 6 mins
नई दिल्‍ली:

History of Aligarh Muslim University: देश-विदेश में नामचीन अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (History of AMU) इन दिनों सुर्खियों में है. सुप्रीम कोर्ट ने उसके अल्पसंख्यक दर्जे को बरकरार रखा है. यह फैसले से अलग हर किसी का को यह पता होना चाहिए कि 100 साल पुरानी इस यूनिवर्सिटी का गौरवशाली इतिहास क्या है? आखिर क्यों कहा जाता है कि इस यूनिवर्सिटी की छाप पूरे भारतीय उपमहाद्वीप पर है? आप किसी भी क्षेत्र में चले जाइए उसके दिग्गजों में AMU का कोई न कोई छात्र जरूर होगा. साथ ही सवाल ये भी है कि इसके संस्थापक सर सैय्यद अहमद खान (Sir Syed Ahmed Khan) को आखिर क्यों लैला बनकर नाचना पड़ा था? वहीं बनारस, दरभंगा और हाथरस के हिंदू राजाओं ने इसके लिए कितना दान दिया था?

डॉ. जाकिर हुसैन, खान अब्दुल गफ्फार खान, लियाकत अली खां, नसीरुद्दीन शाह, जावेद अख्तर, प्रो. इरफान हबीब, रविन्द्र जैन, कैफी आजमी, राही मासूम राजा, ध्यानचंद, लाला अमरनाथ... यह लिस्ट बेहद लंबी है. ये सभी अपने-अपने क्षेत्र के दिग्गज हैं, लेकिन क्या आप जानते हैं कि इन सबमें कॉमन क्या है? ये सभी AMU यानी अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के छात्र रहे हैं. वे उस यूनिवर्सिटी के छात्र हैं, जिसने भारत ही नहीं बल्कि पाकिस्तान, अफगानिस्तान, बांग्लादेश और मालद्वीव जैसे देशों को उसके सर्वोच्च नेता मतलब राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री दिए.

आलम ये है कि आप समाज के किसी भी क्षेत्र पर अपनी अंगुली रखिए और उसके दिग्गजों की लिस्ट बनाइए, वो लिस्ट AMU के बिना अधूरी होगी. AMU ने एक यूनिवर्सिटी के तौर पर पूरे उपमहाद्वीप पर कभी न मिटने वाला असर छोड़ा है. 

आंखों के सामने तबाह हो गया घर 

बात 1857 में हुए भारत के पहले स्वतंत्रता आंदोलन की है. अंग्रेजों ने इसे बेरहमी से कुचल दिया. उस दौर में 40 साल के शख्स ने अपने घर को अपनी आंखों के सामने तबाह होते देखा. उसके सामने उसके कई संबंधियों का कत्ल हो गया. उसकी मां सात दिनों तक घोड़े के अस्तबल में छुपी रही. इस तबाही को देखकर उस शख्स के मन में देशभक्ति की लहरें करवट लेने लगीं. उस शख्स को लगा कि यदि अंग्रेजों से मुकाबला करना है तो शिक्षा को हथियार बनाना होगा. खासकर मुस्लिम समाज में शिक्षा की अलख को जगाना होगा.

1875 में मुस्लिम-एंग्लो ओरिएंटल स्कूल 

इसी सोच को लेकर उस शख्स ने अलीगढ़ में मई 1875 में मुस्लिम-एंग्लो ओरिएंटल स्कूल की नींव रखी, जो अब अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के तौर पर हम सबके सामने हैं. जानते हैं वो शख्स कौन थे? वो शख्‍स थे सर सैय्यद अहमद खान. आप सवाल पूछ सकते हैं कि अलीगढ़ ही क्यों? दरअसल सर सैय्यद अहमद 1830 से ही ईस्ट इंडिया कंपनी में क्लर्क के तौर पर काम कर रहे थे, जिस समय उन्होंने स्कूल की बुनियाद रखी वो अलीगढ़ में ही तैनात थे और यहां की आबोहवा उन्हें बेहद पसंद आई थी.

इसके अलावा अंग्रेजों के मुलाजिम होने की वजह से उनके द्वारा छोड़ी गई कई खाली इमारतें उन्हें स्कूल के लिए आसानी से मिल गईं. जिसका इस्तेमाल कर उन्होंने स्कूल को कॉलेज में तब्दील किया. उस समय के वायसराय लॉर्ड लिटन ने स्ट्रेची हॉल के पास कॉलेज का शिलान्यास किया. इससे पहले सर सैय्यद ने 1869-70 में ऑक्सफोर्ड और कैंब्रिज यूनिवर्सिटी का दौरा किया. उनका सपना था कि भारत में पढ़ाई का ऐसा ही माहौल बने, लेकिन ये सब इतना आसान न था. 

Advertisement

... और इस तरह से बनना पड़ा लैला 

सर सैय्यद अहमद खान यूनिवर्सिटी की स्थापना के लिए पूरे भारत में घूमे और झोली फैलाकर चंदा मांगा. एक दिलचस्प किस्सा ये भी है कि उन्होंने चंदा जुटाने के लिए लैना-मजनूं नाटक का मंचन किया, लेकिन शो शुरू होने से पहले ही जिस लड़के को लैला बनना था वो भाग गया. तब खुद सैय्यद अहमद लैला बनकर मंच पर आए और नाटक को पूरा किया. यह उनका जुनून ही था कि उस दौर की तकरीबन सभी बड़ी हस्तियों ने खुले दिल से उन्हें दान दिया. मसलन हैदराबाद के नवाब ने उन्हें आग्रह पर 1000 हजार रुपये दिए थे. बाद में नवाब ने कई बार बड़ी रकम दान में दी.

हिंदू राजाओं ने भी खोले खजाने 

बनारस के महाराजा ने पहली बार 20 हजार रुपये और फिर 50 हजार रुपये दान में दिए. इसके अलावा बनारस के राजा शंभु नारायण ने 60 हजार रुपये और पटियाला के महाधर सिंह बहादुर ने पांच लाख रुपये दान में दिए थे. बनारस के महाराज तो दो बार इस संस्थान में बतौर मुख्य अतिथि भी आए. राजा महेन्द्र प्रताप ने अपनी जमीन भी यूनिवर्सिटी के लिए दान में दी. बहरहाल 1920 में तब की अंग्रेज सरकार ने एक एक्ट पास किया, जिसका नाम था AMU एक्ट. इसी एक्ट से इस संस्थान को नाम मिला अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी.

Advertisement

एएमयू में 250 से अधिक पाठ्यक्रम 

सर सैय्यद अहमद खान ने जिस पौधे को रोपा था, आज वो कितना विशाल वटवृक्ष बन चुका है आप उसे भी जान लीजिए. आज की तारीख में अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में 250 से अधिक पाठ्यक्रम पढ़ाए जाते हैं. इसकी शाखाएं उत्तर से लेकर दक्षिण भारत तक फैली हैं. 

1877 में ही यहां लाइब्रेरी की स्थापना हो गई थी, जिसमें दुर्लभ पांडुलिपियों के साथ करीब साढ़े 13 लाख पुस्तकें मौजूद हैं. यहां मौजूद पांडुलिपियों की संख्या साढ़े चार लाख है. यहां आपको अकबर के समय फारसी में अनुवाद की गई गीता और महाभारत भी मिल जाएगी.

Advertisement

1400 साल पुरानी कुरान भी है मौजूद 

इसके अलावा 14 सौ साल पुरानी कुरान और तमिल भाषा में लिखे भोजपत्र भी इस लाइब्रेरी में मौजूद हैं. इस यूनिवर्सिटी से पढ़ चुके दो छात्रों को भारत रत्न, छह को पद्मविभूषण, 8 को पद्मभूषण, तीन को ज्ञानपीठ और 4 सुप्रीम कोर्ट के जज रहे हैं. इसके अलावा इसने पाकिस्तान, मालदीव और बांग्लादेश को उसका प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति भी दिया है. भारत के कई राज्यों के मुख्यमंत्री और राज्यपाल यहीं से निकले हैं. 

आप बात साहित्य की करें, पत्रकारिता की करें, राजनीति की करें या फिर विज्ञान की ही कर लें, हर क्षेत्र में इस यूनिवर्सिटी ने दिग्गजों को दिया है. इसके संस्‍थापक सर सैय्यद अहमद खान का व्‍यक्तित्‍व बेहद कमाल का था, जिसमें हर धर्म के लिए आदर था. उन्‍होंने एक बार कहा था - हिंदू और मुसलमान भारत रूपी दुल्हन की दो सुंदर आंखें हैं. 

Advertisement
Featured Video Of The Day
Bihar Elections: NDA में सभी दल... NDA को लेकर Sanjay Jha का बड़ा बयान | Nitish Kumar | BREAKING