व्हाट्सऐप पर शेयर हो रहा 'इतिहास' : NCERT की पुस्तकों से अध्यायों को हटाने पर बोले इतिहासकार

इतिहासकारों ने जारी किया बयान, रोमिला थापर, जयति घोष, मृदुला मुखर्जी, इरफान हबीब और उपिंदर सिंह आदि के हस्ताक्षर

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एनसीईआरटी ने पाठ्यपुस्तकों में ऐतिहासिक तथ्यों को दबाने के आरोपों का खंडन किया है.
नई दिल्ली:

इतिहासकारों के एक समूह ने सीबीएसई के छात्रों को पढ़ाई जाने वाली इतिहास की किताबों से कुछ अध्यायों को हटाने के एनसीईआरटी के कदम पर चिंता जताई है. शुक्रवार को एक बयान में, उन्होंने कहा कि वे विशेष रूप से कक्षा 12 की पुस्तक से अधयायों को हटाने के एनसीईआरटी के फैसले से "हैरान" हैं. उन्होंने इस कदम को "गहरी चिंता का विषय" कहा है.

बयान पर हस्ताक्षर करने वाले इतिहासकारों में दिल्ली विश्वविद्यालय की माया जॉन, जेएनयू के प्रसिद्ध इतिहासकार आदित्य मुखर्जी, इतिहासकार इरफान हबीब, न्यूयार्क यूनिवर्सिटी के डेविड लूडन, रोमिला थापर, जयति घोष, मृदुला मुखर्जी, अपूर्वानंद और उपिंदर सिंह आदि शामिल हैं.

राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद (NCERT) की किताबों से गुजरात दंगा, मुगलों से संबंधित अध्याय, महात्मा गांधी की हत्या से संबंधित अध्याय हटा दिए गए हैं. कक्षा 6 से 12 तक की सामाजिक विज्ञान, इतिहास और राजनीति विज्ञान की पुस्तकों से अध्याय हटाए गए हैं. इसे लेकर विश्व भर के 250 से ज़्यादा इतिहासकारों ने लिखित बयान जारी करके अपनी चिंता जाहिर की है. 

इतिहासकारों ने अपने बयान में कहा है कि कोरोना महामारी के बहाने पाठ्यक्रम कम करने के नाम पर इतिहास के कुछ महत्वपूर्ण अध्याय हटा दिए गए. मुगलों ने कई सदियों तक भारत में राज किया है और उनको पढ़ाए बिना इतिहास को नहीं समझा जा सकता. 

बयान में कहा गया है कि, "महामारी के दौरान हटाए गए अध्याय एनसीईआरटी की पुस्तकों के नए संस्करणों में भी नहीं हैं. जबकि स्कूली शिक्षा वापस सामान्य स्थिति में आ गई है और अब ऑनलाइन मोड में नहीं है."

शिक्षा में राजनीति शामिल करने के कथित प्रयास की ओर इशारा करते हुए इतिहासकारों ने कहा कि, "इतिहास के अध्ययन को इस तरह से कम करके, छद्म इतिहास के लिए जमीन तैयार की जा रही है, विशेष रूप से सांप्रदायिक और जातिवादी विविधता के लिए. जो भी हो, इस तरह का 'इतिहास' आजकल व्हाट्सऐप और अन्य सोशल मीडिया माध्यमों से व्यापक रूप से प्रसारित किया जाता है."

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इतिहासकार इरफान हबीब ने कहा कि, ''हमें पता है कि लेटर से कुछ नहीं होता पर हमें बोलना पड़ेगा क्योंकि यह हमारे भविष्य से जुड़ा हुआ मामला है. चाहे इतिहासकार हों या बौद्धिक वर्ग बोलना तो है ही, असर हो न हो.''

एनसीईआरटी ने ऐतिहासिक तथ्यों को दबाने के आरोपों से इनकार किया है. स्कूली शिक्षा पर केंद्र और राज्य के लिए शीर्ष सलाहकार संस्था ने कहा है कि यह महामारी से प्रभावित छात्रों की मदद करने के लिए एक पेशेवर अभ्यास है और इसका कोई गुप्त राजनीतिक मकसद नहीं है.

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एनसीईआरटी के डायरेक्टर दिनेश प्रसाद सकलानी ने मंगलवार को एनडीटीवी से कहा, "जैसा कि हमने पिछले साल भी समझाया था, कोविड महामारी के कारण पढ़ाई का बहुत नुकसान हुआ है और छात्रों को बहुत आघात हुआ है. तनावग्रस्त छात्रों की मदद करने के लिए और समाज व राष्ट्र के प्रति एक जिम्मेदारी के रूप में यह महसूस किया गया कि पाठ्यपुस्तकों में सामग्री का भार कम किया जाना चाहिए." 

उन्होंने कहा कि, विशेषज्ञों ने महसूस किया कि कुछ अध्यायों का विषयों और कक्षाओं में दोहराव हो रहा था. छात्रों पर पढ़ाई का भार कम करने के लिए कुछ हिस्सों को हटा दिया गया. उन्होंने कहा कि छात्रों ने दर्दनाक महामारी का सामना किया और वे बहुत तनाव में थे. उन्होंने इन आरोपों का खंडन किया कि परिवर्तन एक विशेष विचारधारा के अनुरूप किए गए.

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