हुनर को मिली पहचान; जानिए कैसे हिमाचल की महिलाएं कपड़ों में बुन रही हैं भविष्य के सपने

हीरामणि खड्डी के व्यवसाय के तहत आज किन्नौरी और कुल्लू शैली की शॉल और मफलर तैयार करती हैं. इस काम से उन्हें प्रति माह 15 हजार रुपये से लेकर 20 हजार रुपये तक की आय हो रही है,

विज्ञापन
Read Time: 4 mins
मंडी:

हिमाचल प्रदेश के मंडी जिला के थमलाह गांव की हीरामणि एक सामान्य गृहिणी हैं, जो अपने दैनिक कार्यों के बाद खाली समय में खड्डी पर कुशलता से अपने हाथ चलाती हैं. इस शौक को हुनर में बदलते हुए उन्होंने न केवल अपने जीवन को संवारने का प्रयास किया, बल्कि कई अन्य महिलाओं को भी स्वरोजगार से जोड़ा. उनके इस प्रयास में प्रदेश सरकार की योजनाओं ने अहम भूमिका निभाई है. इन योजनाओं के तहत स्यांज क्षेत्र की महिलाएं अपने हुनर से सफलता की नई कहानी लिख रही हैं, साथ ही अपने भविष्य के सुनहरे सपने भी साकार कर रही हैं.

आईएएनएस से बात करते हुए हीरामणि बताती हैं कि लगभग ढाई दशक से वह घर में खड्डी का काम करती आ रही थीं. लेकिन, साल 2021 में हिमाचल प्रदेश हस्तशिल्प एवं हथकरघा निगम के मंडी स्थित अधिकारियों से मिलने के बाद उन्होंने इस कार्य को व्यावसायिक दृष्टिकोण से बढ़ाने का सोचा. इसके लिए स्यांज बाजार में एक दुकान किराए पर ली और अपना काम शुरू किया. निगम द्वारा उन्हें मास्टर ट्रेनर के रूप में नियुक्त किया गया और उन्होंने अपने गांव की 8 महिलाओं को हैंडलूम की एक साल की ट्रेनिंग दी. इसके बदले में उन्हें मासिक 7500 रुपए का वेतन भी प्राप्त हुआ. साथ ही प्रशिक्षण के दौरान निगम द्वारा प्रशिक्षु महिलाओं को एक खड्डी और 2400 रुपए प्रतिमाह की राशि भी दी गई.

हीरामणि खड्डी के व्यवसाय के तहत आज किन्नौरी और कुल्लू शैली की शॉल और मफलर तैयार करती हैं. इस काम से उन्हें प्रति माह 15 हजार रुपये से लेकर 20 हजार रुपये तक की आय हो रही है, जिससे वह अपने परिवार की आर्थिकी में सहयोग कर रही हैं. उनसे प्रशिक्षण प्राप्त कर चुकी महिलाएं भी घर से और दुकान से खड्डी का कार्य करती हैं. हीरामणि ने हिमाचल सरकार और प्रदेश के मुख्यमंत्री सुखविंद्र सिंह सुक्खू का आभार व्यक्त किया, जिन्होंने महिलाओं के सशक्तिकरण और हथकरघा व्यवसाय को बढ़ावा देने के लिए प्रभावी योजनाएं शुरू की हैं. इन योजनाओं के कारण महिलाएं स्वरोजगार से जुड़कर आत्मनिर्भर बन रही हैं.

Advertisement

गरीब परिवार से ताल्लुक रखने वाली स्यांज गांव की भूपेंद्रा कुमारी ने भी हीरामणि से प्रेरणा लेकर खड्डी पर काम शुरू किया. भूपेंद्रा ने वर्ष 2023 में स्कूल की पढ़ाई पूरी की और इसके बाद घर में रहते हुए खड्डी का काम करने लगीं. हस्तशिल्प एवं हथकरघा निगम द्वारा उन्हें अगस्त 2023 से एक साल का प्रशिक्षण प्राप्त हुआ. इस दौरान निगम ने उन्हें एक खड्डी और मासिक 2400 रुपए की प्रोत्साहन राशि प्रदान की. प्रशिक्षण के बाद भूपेंद्रा ने शॉल और मफलर तैयार किए, जिससे अतिरिक्त आय प्राप्त होने लगी. अब वह घर से ही इस काम को करती हैं और महीने में 10 हजार रुपए तक कमा रही हैं. भूपेंद्रा ने प्रदेश सरकार का धन्यवाद किया कि उन्होंने ग्रामीण महिलाओं को स्वरोजगार से जोड़ने के लिए ऐसी योजनाएं बनाई हैं.

Advertisement

स्यांज गांव की नीलम ने भी हथकरघा में अपनी किस्मत आजमाई. स्नातक की पढ़ाई पूरी करने के बाद कोरोना काल में नीलम ने आगे की पढ़ाई छोड़ दी थी. खड्डी के काम को नीलम ने शौकिया तौर पर शुरू किया. अगस्त 2023 में उन्होंने एक साल की प्रशिक्षण योजना में भाग लिया. प्रशिक्षण के दौरान नीलम को एक खड्डी और हर महीने 2400 रुपए की प्रोत्साहन राशि भी दी गई. अब वह शॉल और मफलर तैयार कर रही हैं और हर महीने 8 हजार से 10 हजार रुपये तक कमा रही हैं.

Advertisement

हिमाचल प्रदेश हस्तशिल्प एवं हथकरघा निगम के जिला मंडी के प्रभारी और सहायक प्रबंधक अक्षय सिंह डोट ने आईएएनएस को बताया कि प्रदेश सरकार हथकरघा व्यवसाय को बढ़ावा देने के लिए निगम के माध्यम से लघु अवधि के विभिन्न प्रशिक्षण कार्यक्रमों का आयोजन करती है. हाल ही में, जिला मंडी में 90 से अधिक लोगों को एक साल का हथकरघा बुनाई का प्रशिक्षण दिया गया. इस प्रशिक्षण के दौरान लगभग 30 लाख रुपए से अधिक की प्रोत्साहन राशि भी प्रदान की गई.

Advertisement
(हेडलाइन के अलावा, इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है, यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)
Featured Video Of The Day
Delhi Elections 2025: Arvind Kejriwal के सामने कई चुनौतियां, मां की हार का बदला लेंगे Sandeep Dixit?