केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) ने हिमाचल प्रदेश के करोड़ों रुपये के छात्रवृत्ति घोटाले की जांच पूरी कर ली है और 20 संस्थानों एवं 105 व्यक्तियों के खिलाफ आरोप-पत्र दायर कर दिये हैं. अधिकारियों ने शुक्रवार को यह जानकारी दी.
सीबीआई की ओर से जारी एक बयान में कहा गया है कि अनुसूचित जाति (एससी), अनुसूचित जनजाति (एसटी) और अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के छात्रों की मदद के लिए केंद्र सरकार द्वारा शुरू एवं राज्य सरकार के माध्यम से लागू की गई छात्रवृत्ति और फीस प्रतिपूर्ति योजना के तहत धन के दुरुपयोग के लिए शैक्षणिक संस्थानों के मालिकों, शिमला स्थित उच्च शिक्षा निदेशालय के कर्मचारियों, बैंक अधिकारियों और अन्य निजी व्यक्तियों के खिलाफ आरोप-पत्र दायर किये गये हैं.
छात्रवृत्ति घोटाला 2012-13 में उस वक्त शुरू हुआ, जब राज्य के एससी, एसटी और ओबीसी के ‘प्री-मैट्रिक' और ‘पोस्ट-मैट्रिक' छात्रों को 36 योजनाओं के तहत छात्रवृत्ति का भुगतान पात्र विद्यार्थियों को नहीं किया गया. छात्रवृत्ति का अस्सी प्रतिशत पैसा निजी संस्थानों को भुगतान किया गया.
वर्ष 2013 से 2017 के दौरान लगभग 181 करोड़ रुपये की छात्रवृत्ति के फर्जी और धोखाधड़ी के दावों के लिए हिमाचल प्रदेश सरकार के अनुरोध पर राज्य के निजी शैक्षणिक संस्थानों के खिलाफ केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) द्वारा वर्ष 2019 में मामला दर्ज किया गया था.
इससे पहले कुछ लोगों के परिसरों से संबंधित लगभग 30 स्थानों पर तलाशी ली गई थी, जहां से आपत्तिजनक दस्तावेज बरामद हुए थे. इसके बाद शैक्षणिक संस्थानों के अध्यक्ष, उपाध्यक्ष, निदेशक और कर्मचारियों सहित 19 आरोपियों; बैंक अधिकारियों और शिक्षा विभाग के अधिकारियों को गिरफ्तार कर लिया गया था.
जांच से पता चला है कि शिक्षा विभाग को गुमराह करने के लिए झूठी संबद्धता दिखाने के वास्ते कई शैक्षणिक संस्थानों द्वारा फर्जी ‘लेटरहेड' का इस्तेमाल किया गया था. ये संस्थान बुनियादी ढांचे और छात्रों की संख्या का भौतिक सत्यापन सुनिश्चित करने में विफल रहे. धनशोधन की दृष्टि से इस मामले की जांच कर रहे प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने पिछले दिनों कुछ गिरफ्तारियां की थीं.