मुंबई कॉलेज में हिजाब और बुर्का पर बैन मामला पहुंचा सुप्रीम कोर्ट, याचिकाकर्ताओं ने की ये मांग

बोम्बे हाईकोर्ट ने इस मामले पर पहले कहा था कि निर्देश का उद्देश्य छात्रों के धर्म का खुलासा रोकने के लिए है, ताकि वो केवल अपनी शिक्षा पर ध्यान केंद्रित कर सकें.

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नई दिल्ली:

सुप्रीम कोर्ट में बॉम्ब हाई कोर्ट के उस आदेश को चुनौती देते हुए याचिका दर्ज की गई है जिसमें चेंबूल कॉलेज द्वारा कैंपस में बुर्का, हिजाब या फिर नकाब पहनने पर लगाए गए प्रतिबंध को बरकरार रखा गया था. CJI डी वाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पर्दीवाला और मनोज मिश्रा ने भरोसा दिलाया कि जल्द ही इस मामले को लिस्ट किया जाएगा. कोर्ट ने कहा, "हां हम इस मामले में आपको डेट देंगे और मामले को सुनेंगे."

छात्रों ने पहले बॉम्बे हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया.. 

चेंबूर स्थित एनजी आचार्य और डीके मराठे कॉलेज के नौ छात्रों ने कॉलेज के एक नोटिस के खिलाफ बॉम्बे हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था, जिसमें उन्हें जून से शुरू होने वाले नए शैक्षणिक वर्ष से नए ड्रेस कोड का पालन करने का निर्देश दिया गया था. इस नोटिस में कहा गया था, "आपको कॉलेज में फॉर्मल या फिर डीसेंट ड्रेस का ड्रेस कोड फॉलो करना है जिसमें किसी के धर्म का पता न चले. इसलिए आप बुर्का, नकाब, हिजाब, कैप, बैज आदि कुछ नहीं पहनेंगे. वहीं लड़कों के लिए केवल फुल या हाल शर्ट और नोर्मल ट्राउजर और लड़कियों के लिए कोई भी इंडियन/ वेस्टर्न नॉन रिवीलिंग ड्रेस पहनने की इजाजत होगी. लड़कियों के लिए कैंपस में चेंजिंग रूम है."

याचिका में कही गई है ये बात

याचिका में कहा गया है कि मुंबई विश्वविद्यालय से संबद्ध और महाराष्ट्र राज्य की सहायता से चलने वाले कॉलेज के पास इस तरह के प्रतिबंध लगाने से जुड़े निर्देश जारी करने का कोई अधिकार और शक्ति नहीं है और यह नोटिस कायम नहीं रखा जा सकता है. 

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याचिकाकर्ताओं ने कहा हिजाब हमारे धर्म का अभिन्न अंग है

याचिका में कहा गया है कि नकाब और हिजाब पहनना याचिकाकर्ताओं की धार्मिक आस्था का अभिन्न अंग है और क्लास में इसे पहनना उनकी स्वतंत्र इच्छा, पसंद और निजता के अधिकार का हिस्सा है. इसके अलावा, याचिका में कहा गया है कि विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) के दिशानिर्देशों का उद्देश्य अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों, ओबीसी, मुसलमानों और अन्य समुदायों के लिए उच्च शिक्षा तक पहुंच बढ़ाना है और राष्ट्रीय शिक्षा नीति समावेशिता को बढ़ावा देती है.

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नोटिस रद्द किए जाने की है मांग

इसलिए, याचिका में न्यायालय से नोटिस को मनमाना बताते हुए उसे रद्द करने का निर्देश देने की मांग की गई है. हालांकि, बोम्बे हाई कोर्ट ने इस मामले पर सुनवाई करने से इनकार कर दिया था. जस्टिस ए.एस. चंदुरकर और जस्टिस राजेश पाटिल की खंडपीठ ने कहा कि निर्देश का उद्देश्य छात्रों के धर्म का खुलासा रोकने के साथ ही उन्हें केवल अपनी शिक्षा पर ध्यान केंद्रित करने की अनुमति देना है.

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हाई कोर्ट ने कही थी ये बात

हाई कोर्ट ने कहा, "यह नोटिस जारी करने का कारण ही यही है कि छात्रों के कपड़ों से उनके धर्म का पता न चले ताकि वो अपनी पढ़ाई पर ध्यान केंद्रित कर सकें और यह उनकी भलाई के लिए ही है."

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