क्लिनिकल प्रतिष्ठानों को विनियमित करने के लिए कानून बनाने पर न्यायिक आदेशों का पालन नहीं करने के लिए दिल्ली के स्वास्थ्य मंत्री सौरभ भारद्वाज को हाईकोर्ट ने फटकार लगाई है. इसी के साथ कोर्ट ने गुरुवार को उन्हें चेतावनी दी कि उन्हें जेल भेजा जा सकता है. दरअसल कोर्ट ने कार्यवाही के दौरान मौजूद स्वास्थ्य मंत्री सौरभ भारद्वाज और स्वास्थ्य सचिव एसबी दीपक कुमार से कहा कि वे "सरकार के सेवक" हैं और इतना बड़ा अहंकार नहीं रख सकते. कोर्ट ने फरवरी में एक ईमेल देखने के बाद भारद्वाज और कुमार को उसके समक्ष उपस्थित होने के लिए कहा था, जिसमें कहा गया था कि दिल्ली स्वास्थ्य प्रतिष्ठान (पंजीकरण और विनियमन) विधेयक पर चर्चा के दौरान मंत्री को लूप में नहीं रखा गया था.
इस दौरान कहा गया कि हमें परेशान करने वाली बात यह है कि याचिकाकर्ता एक आम आदमी की दुर्दशा को उजागर कर रहा है, वह हमें बता रहा है कि सभी प्रकार की लैब रिपोर्ट तैयार की जा रही हैं जो सच और सही नहीं हैं और आम आदमी पीड़ित है. लेकिन यह आपका खेल है आप दोनों के बीच और विभिन्न गुटों के बीच जो चल रहा है, वह अदालत के लिए अस्वीकार्य है. कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश मनमोहन और न्यायमूर्ति मनमीत पीएस अरोड़ा की पीठ ने कहा, ''आपको व्यावहारिक होना होगा और यह भी सुनिश्चित करना होगा कि इन दो लोगों के बीच की लड़ाई से दलालों को फायदा न हो.''
पीठ ने कहा कि यदि मंत्री और सचिव मुद्दों को संभालने में असमर्थ हैं और झगड़ते रहते हैं, तो कोर्ट किसी तीसरे पक्ष को चीजों को संभालने के लिए कहेगी या क्या करना है इसके बारे में आदेश पारित करेगी. "हमारे साथ ऐसा मत करो नहीं तो तुम दोनों जेल जाओगे, अगर इससे आम आदमी को फायदा होगा तो हमें तुम दोनों को जेल भेजने में कोई हिचकिचाहट नहीं होगी. तुम दोनों बड़ा अहंकार नहीं कर सकते, तुम दोनों नौकर हो." सरकार और आप दोनों को यह सुनिश्चित करना होगा कि आम आदमी को फायदा हो, आप क्या कर रहे हैं? लोगों को उनके ब्लड सैंपल की गलत रिपोर्ट मिल रही है.'' कोर्ट बेजोन कुमार मिश्रा की 2018 की याचिका पर सुनवाई कर रहा था.
जिसका प्रतिनिधित्व अधिवक्ता शशांक देव सुधी ने किया था, जिन्होंने आरोप लगाया है कि राष्ट्रीय राजधानी में अनधिकृत प्रयोगशालाएं और डायग्नोस्टिक केंद्र अयोग्य तकनीशियनों के साथ काम कर रहे थे और मरीजों को गलत रिपोर्ट दे रहे थे. जैसा कि मंत्री ने कहा कि दिल्ली स्वास्थ्य विधेयक को मई 2022 में ही अंतिम रूप दे दिया गया था, कोर्ट ने पूछा कि इसे अभी तक मंजूरी के लिए केंद्र के पास क्यों नहीं भेजा गया. कोर्ट ने कहा कि अगर इसमें समय लगेगा, तो दिल्ली सरकार को केंद्र सरकार के कानून- क्लिनिकल प्रतिष्ठान (पंजीकरण और विनियमन) अधिनियम, 2010 को लागू करने पर विचार करना चाहिए.
भारद्वाज की यह दलील कि कोर्ट की कृपा से सरकार को विधेयक को अधिनियमित करने में मदद मिलेगी, कोर्ट नाराज हो गया और कहा, "आपको लगता है कि हम इस खेल में एक मोहरा हैं और आप इसे रणनीति के तौर पर इस्तेमाल करेंगे. हम किसी के प्यादे नहीं हैं." इस ग़लतफ़हमी को दूर करो कि तुम अदालत की प्रक्रिया का उपयोग करोगे." याचिकाकर्ता ने अदालत के समक्ष तर्क दिया था कि शहर में पैथोलॉजिकल लैब अनियमित हैं और नागरिकों के जीवन के लिए खतरा हैं.
इस याचिका में कहा गया है, "इस तरह की अवैध लैब दिल्ली-एनसीटी और उसके आसपास लगातार बढ़ती जा रही हैं और यह आसानी से अनुमान लगाया जा सकता है कि ऐसी अवैध पैथोलॉजिकल और डायग्नोस्टिक लैब की कुल संख्या 20,000 से 25,000 के बीच हो सकती है, और राजधानी की हर सड़क पर ऐसी अवैध पैथोलॉजिकल लैब हैं."
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