हरियाणा विधानसभा चुनाव की मतगणना का काम अभी भी जारी है. रूझानों में बीजेपी 50 सीटें जीतती हुई नजर आ रही है. वहीं कांग्रेस उम्मीदों के मुताबिक प्रदर्शन नहीं कर पाई है. उसे अबतक केवल 35 सीटों पर ही बढ़त हासिल है. इसके साथ ही बीजेपी राज्य में लगातार तीसरी बार सरकार बनाने के लिए तैयार है. ऐसा पहली बार हुआ है कि हरियाणा में लगातार तीसरी बार किसी पार्टी को सरकार बनाने का मौका मिला है. हरियाणा की पहचान जवान, पहलवान और किसान के लिए है. लेकिन मतगणना के रूझान बता रहे हैं कि इनमें से किसी भी वर्ग ने अबतक बीजेपी से नाराजगी नहीं जताई है.
इस चुनाव के प्रचार के दौरान यह नैरेटिव सेट करने की कोशिश की गई की, हरियाणा के लोग बीजेपी की सरकार से नाराज हैं. विश्लेषकों ने कहा कि नौजवान, किसान और पहलवान बीजेपी से काफी नाराज है. वो इसका प्रदर्शन मतदान के दौरान करेंगे. लेकिन मतगणना में यह विश्लेषण बेमानी साबित हुआ. बीजेपी ने अधिकांश चुनाव विश्लेषकों और एग्जिट पोल के अनुमानों को धता बताते हुए प्रचंड जीत की ओर आगे बढ़ रही है. यह हरियाणा में बीजेपी की अबतक की सबसे बड़ी जीत है.
क्या बीजेपी से नाराज थे हरियाणा के युवा
चुनाव प्रचार के दौरान विपक्ष ने हरियाणा में बेरोजगारी का मुद्दा उठाया था.हरियाणा देश के उन राज्यों में शामिल है, जहां बेरोजगारी की दर सबसे अधिक है. केंद्र सरकार के आंकड़ों के मुताबिक हरियाणा में बेरोजगारी की दर 9 फीसदी से अधिक है. यह बेरोजगारी की राष्ट्रीय दर 4.1 फीसदी से भी अधिक है. विपक्ष ने इसे मुद्दा बनाया. प्रचार के दौरान दिखा भी कि हरियाणा के युवा रोजगार न मिलने से बीजेपी की सरकार से नाराज हैं. राजनीतिक दलों ने राज्य में कॉमन एलिजिबिलिटी टेस्ट (सीईटी) नियमित न होने को भी मुद्दा बनाया था. हरियाणा की मनोहर लाल खट्टर सरकार ने फैसला किया था कि राज्य सरकार की नौकरियां इसी परीक्षा के आधार पर दी जाएंगी. लेकिन यह परीक्षा अब तक केवल एक बार ही आयोजित की गई है, जबकि राज्य सरकार ने कहा था कि यह परीक्षा हर साल आयोजित की जाएगी. लेकिन चुनाव परिणाम बता रहे हैं कि विपक्ष का यह मुद्दा इस चुनाव में नहीं चला. लोगों ने बीजेपी के वादे पर भरोसा कर उसे एक बार फिर से प्रदेश की सत्ता सौंप दी है.
किसानों की नाराजगी किसे पड़ी भारी
नरेंद्र मोदी सरकार के तीन कृषि कानूनो के खिलाफ दो साल से अधिक समय तक किसानों ने आंदोलन किया. किसानों ने जब दिल्ली कूच किया तो उनसे हरियाणा की पुलिस बहुत कड़ाई से पेश आई. उनके रास्ते में बहुत अवरोधक खड़े किए गए. खट्टर सरकार के इस कदम ने किसान आंदोलन को और मजबूत किया.वो खट्टर सरकार के हर अवरोध को हटाकर दिल्ली पहुंचे और तब तक डटे रहे, जब तक की सरकार ने तीनों कृषि कानूनों को वापस नहीं ले लिया.पंजाब के किसानों ने फरवरी 2023 में फिर एक बार दिल्ली कूच किया.लेकिन मनोहर लाल खट्टर की सरकार ने उन्हें अपनी सीमा में घुसने नहीं दिया.ये किसान अभी भी शंभू बॉर्डर पर बैठे हुए हैं. इससे किसानों में बीजेपी के किसान विरोधी होने की छवि बनी.विपक्ष ने भी इस मुद्दें को भुनाने की कोशिश की.इससे निपटने के लिए बीजेपी ने अपने चुनाव घोषणा पत्र 24 फसलों को न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर खरीदने की गारंटी दी थी. लगता है कि बीजेपी की यह गारंटी किसानों को पसंद आ गई और उन्होंने बीजेपी को जमकर वोट दिया. किसानों की नाराजगी का असर जननायक जनता पार्टी के प्रदर्शन पर दिख रहा है. उसके सबसे बड़े नेता दुष्यंत चौटाला अबतक की मतगणना में 10 हजार वोट भी नहीं जुटा पाए हैं.
पहलवानों का प्रदर्शन का चुनाव परिणाम पर असर
हरियाणा से आने वाली कुछ महिला पहलवानों ने बीजेपी सांसद बृजभूषण शरण सिंह पर कथित यौन उत्पीड़न के आरोप लगाए थे.बृज भूषण शरण सिंह उस समय भारतीय कुश्ती संघ के प्रमुख थे. इसको लेकर उन्होंने दिल्ली में लगातार प्रदर्शन किया. इस दौरान दिल्ली पुलिस उनके साथ कड़ाई से पेश आई. इसको लेकर देशभर में गुस्सा देखा गया. बाद में यह मामला अदालत तक पहुंचा और आज भी कानूनी प्रक्रिया जारी है. अपने सांसद पर लगे आरोपों के बाद बीजेपी ने बृजभूषण शरण सिंह का टिकट लोकसभा चुनाव में काट दिया. उनकी जगह उनके बेटे को उम्मीदवार बनाया गया और वो जीते भी. पहलवानों के प्रदर्शन से लगा कि हरियाणा और देश में बीजेपी के खिलाफ माहौल बनेगा. लेकिन ऐसा हुआ नहीं. बीजेपी ने 240 सीटों के साथ लोकसभा चुनाव जीतकर केंद्र में लगातार तीसरी बार सरकार बनाई. लेकिन हरियाणा में उसे पांच सीटों का नुकसान उठाना पड़ा. इससे लगा कि विधानसभा चुनाव में पहलवानों की नाराजगी का असर बीजेपी के चुनाव परिणाम पर नजर आएगा, लेकिन मतगणना के अब तक के रूझान बता रहे हैं कि पहलवानों की नाराजगी बेअसर रही है और लोगों ने बीजेपी पर भरपूर प्यार लुटाया है.
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