हरियाणा चुनाव 2024: दलितों और ओबीसी पर क्यों है बीजेपी का फोकस, क्या है कांग्रेस की रणनीति

हरियाणा चुनाव में बीजेपी की पूरी कोशिश दलित और ओबीसी वोटरों में बंटवारा रोकने की है. इसके लिए वह कांग्रेस को दलित और ओबीसी विरोधी साबित करने में लगी हुई है. इसलिए वह कुमारी शैलजा और भूपेंद्र सिंह हुड्डा के मतभेदों को हवा देने की कोशिश कर रही है.

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नई दिल्ली:

जाति भारतीय समाज की सच्चाई है. यह चुनावी राजनीति में उभर कर सामने आती है. इन दिनों चल रहे हरियाणा विधानसभा के चुनाव में भी जाति का इस्तेमाल जमकर हो रहा है. बीजेपी जहां गैर जाट वोटों को सहेजने की कोशिश कर रही है, वहीं कांग्रेस जाट वोटों के सहारे मैदान में है.दोनों दलों की इस कोशिश को उनके प्रचार-प्रसार और टिकट वितरण में भी देखा जा सकता है. कांग्रेस ने सबसे अधिक 35 जाटों को टिकट दिए हैं.वहीं बीजेपी ने ओबीसी पर भरोसा जताते हुए उसे 24 टिकट दिए हैं. ओबीसी को टिकट देने में कांग्रेस भी पीछे नहीं है, उसने 20 टिकट ओबीसी को दिए हैं.बीजेपी के चुनाव प्रचार का एक बड़ा हिस्सा जाति पर टिका हुआ है.हरियाणा में बीजेपी दलित, आरक्षण, ओबीसी का मुद्दा उठा रही है.वह कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं भूपेंद्र सिंह हुड्डा और कुमारी शैलजा में मतभेद की बात को हवा देकर भी जाति की राजनीति ही कर रही है. 

पीएम मोदी का कांग्रेस पर हमला

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बीते दिनों हरियाणा में दो रैलियों को संबोधित किया. इस दौरान उन्होंने कांग्रेस को दलित विरोधी साबित करने की कोशिश की. गोहाना में उन्होंने आरोप लगाया कि कांग्रेस ने दलितों और ओबीसी को ठगने का काम किया है. उन्होंने कहा कि 2014 से पहले हरियाणा में भूपेंद्र सिंह हुड्डा की सरकार थी. उन्होंने कहा कि हुड्डा की सरकार में शायद ही ऐसा कोई साल रहा हो, जिसमें दलितों और ओबीसी के उत्पीड़न की घटनाएं न हुई हों. उन्होंने यहां तक कह दिया कि आरक्षण का विरोध करना कांग्रेस के डीएनए में है. 

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लोकसभा में नेता विपक्ष राहुल गांधी के एक कथित आरक्षण विरोधी बयान को लेकर बीजेपी उन पर हमलावर है. केवल प्रधानमंत्री मोदी ही नहीं बल्कि बीजेपी के दूसरे बड़े नेता भी कांग्रेस को आरक्षण और दलित विरोधी साबित करने में लगे हुए हैं. वो दलितों और ओबीसी के मुद्दे से अपना ध्यान नहीं हटाना चाहते हैं. वोटों की इसी लड़ाई को ध्यान में रखकर ही बीजेपी ने हरियाणा में मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी को मुख्यमंत्री पद का चेहरा बनाया है.सैनी माली जाति से आते हैं, जो कि ओबीसी की एक प्रमुख जाति है. इसलिए ही हर रैली में सैनी को प्रमुखता से जगह दी जाती है.वहीं राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर पार्टी के पोस्टरों से गायब होते जा रहे हैं. खट्टर पंजाबी खत्री हैं. उनको लेकर बीजेपी के नेताओं और कार्यकर्ताओं में भी नाराजगी है. उनका आरोप है कि खट्टर की सरकार में कार्यकर्ताओं और सरकार में दूरी बढ़ गई थी. 

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हरियाणा के समाज की संरचना

अगर हम हरियाणा के समाज की जातिगत संरचना की बात करें तो ओबीसी की आबादी करीब 35 फीसदी है. यह राज्य में मतदाताओं का सबसे बड़ा वर्ग है. ओबीसी के बाद दूसरे नंबर की आबादी जाट जाति की है. माना जाता है कि हरियाणा में जाट आबादी करीब 27 फीसदी है. तीसरा सबसे बड़ा वोट बैंक दलित का है, जिनकी आबादी 20 फीसदी से अधिक मानी जाती है. राज्य में अनुसूचित जाति के लिए 17 सीटें रिजर्व है. यानी बीजेपी जिस ओबीसी और दलित समुदाय के हितों की बात कर रही है, उसकी आबादी राज्य में 55 फीसदी से अधिक की है. 

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हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर.

माना जाता है कि ओबीसी और दलित वोटर राज्य की 35 से अधिक सीटों पर निर्णायक भूमिका में हैं. साल 2019 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने इनमें से 21 सीटों पर जीत दर्ज की थी.कांग्रेस के हिस्से में 15 सीटें आई थीं. कुछ सीटें जननायक जनता पार्टी ने भी जीती थीं. वहीं हरियाणा में करीब 30 सीटें ऐसी हैं, जहां जाट जाति निर्णायक मानी जाती है. 

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किधर जाएंगे हरियाणा के दलित

इस साल हुए लोकसभा चुनाव में राज्य में अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित दोनों सीटें कांग्रेस ने जीत ली थीं. इसलिए माना जा रहा है कि दलितों का रुझान कांग्रेस की ओर है. इसी को ध्यान में रखते हुए कांग्रेस लगातार आरक्षण और संविधान को खतरे में बता रही है. कांग्रेस नेता अपने भाषणों के दौरान संविधान की प्रतियां लहराते हुए नजर आते हैं.वहीं बीजेपी नेता कांग्रेस को दलित और आरक्षण विरोधी साबित करने में लगे हुए हैं.  

राहुल गांधी के साथ मंच साझा करते कुमारी शैलजा और भूपेंद्र सिंह हुड्डा (सबसे दाएं).

ऐसा नहीं है कि हरियाणा में जाति की लड़ाई केवल बीजेपी और कांग्रेस के बीच ही बंटी हुई है. हरियाणा के दो क्षेत्रीय दलों जननायक जनता पार्टी और इंडियन नेशनल लोकदल ने दलित-पिछड़े वोटों के बंटवारे के लिए दलितों की राजनीति करने वाले दलों से हाथ मिलाया है. जजपा का समझौता नगीना से सांसद चंद्रशेखर आजाद की पार्टी आजाद समाज पार्टी से है. वहीं इनेलो ने बहुजन समाज पार्टी से हाथ मिलाया है.अब ये समझौते और रणनीतियां कितनी काम आती हैं, इसका पता आठ अक्तूबर को ही चल पाएगा, जब विधानसभा चुनाव के नतीजे आएंगे. 

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