एक विवाह ऐसा भी... दिल्ली पुलिस के SHO ने पेश की मिसाल, गुर्जर समाज में बढ़ेगी जागरूकता

भारत में शादियों में लाखों-करोड़ों रुपये खर्च किये जाते हैं. दहेज के नाम पर लाखों रुपये कैश और कीमती सामान दिये जाते हैं. ऐसे में हर्षित और आकांक्षा की शादी 28 नवंबर को हुई शादी ने लोगों को प्रेरित किया है.

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शादी में दान-दहेज का पूर्णतः बहिष्कार किया...
नई दिल्‍ली:

गुर्जर समाज में जहां एक तरफ शान शौकत और महंगी शादियों की परंपरा बनी हुई है. आज भी इस समाज में अपनी शानोशौकत और चौधराहट की खातिर मोटे दहेज का चलन है. दिल्ली पुलिस के एक अधिकारी ने इस परंपरा को तोड़ते हुए अपने बेटे की ऐसी शादी की है, जो गुर्जर समाज को प्रेरित कर रही है. 

दिल्ली पुलिस में इंस्पेक्टर जतन सिंह चौधरी इस समय उत्तरी दिल्ली के कोतवाली थाने में SHO हैं, वह गुर्जर समाज से आते हैं. उन्होंने अपने बेटे हर्षित की शादी आकांक्षा से 28 नवंबर को नोएडा में की. आकांक्षा के पिता अरुण चंडीला पेशे से वकील हैं और नोएडा के गिरधरपुर गांव के रहने वाले हैं. हर्षित और आकांक्षा की शादी 28 नवंबर को बड़ी सादगीपूर्ण तरीके से सम्पन्न हुई. इस विवाह ने समाज को नई दिशा देने वाला आदर्श प्रस्तुत किया. 

विवाह की बड़ी बातें...

  1. दान-दहेज का पूर्णतः बहिष्कार- वर पक्ष ने शादी के दौरान किसी भी प्रकार का दहेज या सामान लेने से इनकार किया. केवल चिट्ठी, लगन, और कन्यादान में प्रतीकात्मक 1 रुपये ही स्वीकार किए.
  2. पारंपरिक रस्म भात में भी जतन चौधरी ने केवल 101 रुपये ही लिए, जहां गुर्जर समाज में दहेज का चलन काफी ज्यादा है, वहीं इस परिवार इस कुरीति को तोड़ा.
  3. याकूदपुरिया के प्रधान  जगत चौधरी के परिवार ने इस पहल के जरिए समाज में आदर्श स्थापित किया और दहेजमुक्त समाज की ओर कदम बढ़ाया. 
  4. विवाह का आयोजन अत्यंत सरल और गरिमामय तरीके से हुआ, जिससे समाज को दिखाया गया कि शादी का असली उद्देश्य प्रेम और सम्मान है. इस शादी ने यह स्पष्ट किया कि पारिवारिक और सामाजिक मूल्य पैसों और उपहारों से अधिक महत्वपूर्ण हैं.
  5. इस शादी ने गुर्जर समाज को नई दिशा देने की ओर कदम बढ़ाया है. इस पहल के बाद समाज में दहेज प्रथा के खिलाफ जागरूकता बढ़ेगी. 
  6. विवाह के लिए पूरे गुर्जर समाज ने प्रधान जगत चौधरी और उनके परिवार की प्रशंसा की और इसे एक नई शुरुआत बताया. यह विवाह समाज के लिए एक प्रेरणा है, जो दिखाता है कि यदि इच्छाशक्ति हो तो परंपरागत कुरीतियों को भी बदला जा सकता है.

बता दें कि भारत में शादियों में लाखों-करोड़ों रुपये खर्च किये जाते हैं. दहेज के नाम पर लाखों रुपये कैश और कीमती सामान दिये जाते हैं. कई बार दहेज न देने पर लड़कियों पर अत्‍याचार भी किया जाता है. लड़कियों को जिंदा तक जला दिया जाता है. ऐसे में अगर लोग दहेज प्रथा का बहिष्‍कार करें, तो काफी समस्‍याओं का समाधान हो सकता है.

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