सुप्रीम कोर्ट ने ज़किया जाफरी की याचिका खारिज कर दी है जिसमें उन्होंने एसआईटी जांच रिपोर्ट को चुनौती दी थी. सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि यह याचिका 'कड़ाही को खौलाते रहने की कोशिश' है, और जा़हिर हैं, इसके पीछे का इरादा गलत है. कोर्ट ने कहा, इस प्रक्रिया के दुरुपयोग में शामिल सभी लोगों को कठघरे में खड़ा करने की जरूरत है. सर्वोच्च न्यायालय ने कहा.”उनके खिलाफ कानून के मुताबिक कार्यवाही करने की जरूरत है. जाकिया की याचिका "किसी दूसरे" के निर्देशों से प्रेरित है...”
सुप्रीम कोर्ट ने कहा,” 514 पेजों में याचिका के नाम पर जाकिया परोक्ष रूप से विचाराधीन मामलों में अदालतों द्वारा दिए गए फैसलों पर भी सवाल उठा रही थी. ऐसा क्यों ये उसे ही पता है. वह स्पष्ट रूप से किसी के इशारे पर ऐसा कर रही है.”
ज़ाकिया की याचिका के बारे में सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि वास्तव में याचिका की सामग्री उन व्यक्तियों द्वारा दायर किए गए हलफनामों पर आधारित है, जो झूठ से भरे हुए पाए गए हैं और यह SIT के सदस्यों की सत्यनिष्ठा और ईमानदारी को कम आंकने वाली हैं.
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सुप्रीम कोर्ट ने कहा,” इस न्यायालय द्वारा अनुभवी वरिष्ठ अधिकारियों के साथ गठित SIT जटिल अपराधों की जांच करने की क्षमता वाली थी और जाफरी की दलीलें "दूर की कौड़ी और SIT के कामकाज को कमजोर करने का प्रयास ही है. अपने तल्ख टिप्पणी में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि यह याचिका दरअसल सुप्रीम कोर्ट की बुद्धिमत्ता पर सवाल उठाने की प्रकृति वाला है.
अपने 452 पेज के फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि SIT ने जांच के दौरान जुटाई गई सभी सामग्रियों पर विचार कर अपनी राय बनाई थी और आगे की जांच का सवाल उच्चतम स्तर पर बड़ी साजिश के आरोप के संबंध में नई सामग्री/सूचना की उपलब्धता पर ही उठता, जो कि नहीं है. इसलिए, SIT द्वारा प्रस्तुत की गई अंतिम रिपोर्ट को, बिना कुछ किए, स्वीकार किया जाना चाहिए.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि गवाह संजीव भट्ट, हरेन पंड्या, आर बी श्रीकुमार के दावे निराधार हैं जिन्होंने तत्कालीन CM की बैठक की बातों को रखा था. कोर्ट ने कहा कि CM की बैठक की इन लोगों के पास बिल्कुल भी जानकारी नहीं थी. उन्होंने खुद को चश्मदीद गवाह होने का झूठा दावा किया था.
कोर्ट ने कहा, SIT ने भी अपनी जांच रिपोर्ट में पाया कि बैठक में मौजूद रहने के उनके दावे झूठे हैं. ऐसे झूठे दावों पर ही "उच्चतम स्तर पर बड़ी साजिश" का ढांचा खड़ा किया गया था लेकिन ये ढांचा ताश के पत्तों की तरह ढह गया.
दरअसल, गुजरात के पूर्व वरिष्ठ पुलिस अधिकारी संजीव भट्ट ने पहले के एक मामले में आरोप लगाया था कि तत्कालीन CM नरेंद्र मोदी ने पुलिस अधिकारियों से कहा था कि "27 फरवरी, 2002 को गोधरा में साबरमती एक्सप्रेस ट्रेन जलने की घटना के बाद हिंदुओं को मुसलमानों के खिलाफ अपना गुस्सा निकालने दें."
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में अहम टिप्पणी करते हुए कहा कि इस मामले में मुख्यमंत्री की मीटिंग में शामिल होने के दावेदारों के बयान भी मामले को राजनीतिक रूप से सनसनी पैदा करने वाले थे. दरअसल, संजीव भट्ट, हिरेन पंड्या और आरबी श्रीकुमार ने SIT के सामने बयान दिया था जो कि आगे चलकर निराधार और झूठा साबित हो गए क्योंकि जांच में पता चला कि ये लोग तो लॉ एंड ऑर्डर की समीक्षा के लिए बुलाई गई उस मीटिंग में थे ही नहीं तो फिर मीटिंग में चश्मदीद होने का उनका दावा निराधार और झूठा है.
कोर्ट ने कहा कि इस झूठे दावे से इस धारणा को बल मिलता है कि ऊंचे स्तर पर साजिश रची गई और सुनियोजित ढंग से उस पर अमल किया गया. SIT ने जब तथ्यों के आधार पर जांच की तो साजिश का ये ताना बाना ताश के पत्तों के महल की तरह भरभरा कर गिर पड़ा.