Ground Report: नांदेड़ के अस्पताल में न दवाई और न टेस्ट का इंतजाम, मरीजों के परिजनों से ही लगवा रहे झाड़ू

नांदेड़ के शंकरराव चव्हाण सरकारी अस्पताल में 48 घंटे के अंदर 31 मरीजों की मौत हो गई है. NDTV ने यहां मिलने वाली सुविधाओं का जायजा लिया. इस दौरान कई चौंकाने वाली चीजें सामने आई. इस अस्पताल में बेड से लेकर साफ-सफाई तक में लापरवाही और बदहाली दिखी. पढ़ें NDTV की ग्राउंड रिपोर्ट:-

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मुंबई:

महाराष्ट्र में नांदेड़ के शंकरराव चव्हाण सरकारी अस्पताल में 24 घंटे में 24 मौतों के बाद 1 और 2 अक्टूबर को और 7 लोगों की जान चली गई. इसी के साथ 48 घंटे के दौरान मरने वालों की संख्या 31 पहुंच गई है. जान गंवाने वालों में 12 बच्चे, 7 महिलाएं और 5 पुरुष हैं. अस्पताल में 500 बेड की व्यवस्था है, लेकिन 1200 मरीज भर्ती हैं. इनमें 70 मरीजों की हालत अभी भी गंभीर है.

अस्पताल में मरीजों के परिजन हंगामा कर रहे हैं. आरोप है कि दवा और स्टाफ की कमी से मरीजों की मौत हो रही है. 2 अक्टूबर को यह मामला मीडिया में आया. इस बारे में जब अस्पताल प्रशासन से सवाल पूछा गया तो दिनभर (2 अक्टूबर) को इन मौतों को सामान्य घटना बताता रहा. प्रशासन ने कहा कि 4 मरीजों की मौत दिल का दौरा पड़ने से हुई. 1 मरीज का लिवर फेल हुआ था. 1 मरीज की मौत जहर खाने, 2 की संक्रमण और 1 महिला की मौत डिलीवरी के वक्त ज्यादा ब्लड बहने से हुई. वहीं, अन्य मौतों की जांच चल रही है.

सरकार जिस तरह से दावा कर रही है पर्याप्त मात्रा में दवा है तो ये परिजन कह रहे हैं कि शायद दवा हो, लेकिन इन्हें तो नहीं मिल रही है. क्योंकि इन्हें बाहर भटकना पड़ रहा है. नांदेड़ से यह बड़ी खबर हम समझ पाते उसे हजम कर पाते. उसी बीच औरंगाबाद से भी परेशान करने वाली खबर आई कि 18 मौतें वहां भी सरकार अस्पताल में हुई हैं. चार मृत मरीज वहां पर पहुंचे थे. एक दिन में 14 मौतें वहां भी हुई हैं. आखिर क्यों सरकारी अस्पतालों की हालत अचानक से चरमरा गई है. 

NDTV ने नांदेड़ के शंकरराव चव्हाण सरकारी अस्पताल में मिलने वाली सुविधाओं का जायजा लिया. इस दौरान हमारी ग्राउंड रिपोर्ट में कई चौंकाने वाली चीजें सामने आई. इस अस्पताल में बेड से लेकर साफ-सफाई तक में लापरवाही और बदहाली दिखी. 

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50 से 60 किलोमीटर के दायरे में ये एक मात्र अस्पताल है. लिहाजा यहां दूर-दराज से इलाज के लिए लोग आते हैं. एक मरीज के तीमारदार ने बताया, "हम 150 किलोमीटर हमारे गांव से इलाज के लिए अस्पताल आए थे. हमें पर्ची पकड़ा दी गई. कहा गया कि दवा खरीद लेना. हम कहा से दवा खरीद पाएंगे. यहां तो मरने की नौबत आ गई है. दवा खरीदने के पैसे नहीं हैं. दुआ करते हैं कि मरीज ठीक हो जाए."

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राहुल मिस्त्री का काम करते हैं. उन्होंने आपने अपने बच्चे को इस अस्पताल में खो दिया है. उन्होंने बताया, "शुक्रवार को मेरी पत्नी की बीपी बढ़ गई थी. शुक्रवार को सुबह 10 बजे डिलिवरी हो गई. बच्चे को आईसीयू लेकर गए. बाद में डॉक्टर ने बोला कि तुम्हारा बच्चा नहीं रहा. सब दवाई बाहर से लाए थे. अंदर कुछ भी नहीं मिला. कोई भी दवा मौजूद नहीं थी. 20-25 मिनट में 1100 रुपये की दवा लेकर आए. अभी पत्नी को नहीं बताया है. दवाई अंदर से लिखकर दे रहे हैं और बाहर से लाने के लिए बोल रहे हैं. अंदर से दवाई नहीं दे रहे हैं." 

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दूसरे मरीज के परिजन ने बताया, "इलाज कर रहे हैं, लेकिन बहुत धीरे से. कभी स्लाइन बंद हो गई अगर नर्स को बताया जाता है तो वो कहती हैं कि तुम अपने हाथ से बंद कर दो हम आते हैं थोड़ी देर में. जो झाड़ू पोछा लगाते हैं... वो भी कहते हैं कि तुम अपने बेड के नीचे खुद ही झाड़ू लगाकर ले आओ. मैंने दो दिन खुद से झाड़ू लगाया. मेरी बेटी की स्लाइन बंद हो गई थी. मैंने खुद ही लगाया. वो चेंज नहीं कर रहे थे. कह रहे थे कि थोड़ी देर रुको."


एक और मरीज के परिजन ने NDTV को बताया, "इस अस्पताल का पूरा प्रशासन भी जिम्मेदार है. महाराष्ट्र सरकार भी पूरी तरह से जिम्मेदार है. एक बात बताना चाहता हूं कि जो भी मरीज यहां आता है उसे एमआरआई करना हो या सोनोग्राफी करानी हो. एक्सरे कराना हो या सीटी स्कैन करवाना हो. उसे बाहर भेजा जा रहा है." 

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एक और मरीज के रिश्तेदार ने बताया, "यह मेडिकल कॉलेज है. यहा पर ज्यादा लोग प्रैक्टिस ट्रेनी वाले डॉक्टर हैं. हम चाहते हैं कि यहां विशेषज्ञ डॉक्टर हों. यहां डॉक्टरों की ब हुत कमी है. इलाज नहीं मिल रहा है यहां."

स्थानीय पत्रकार योगेश लतकर बताते हैं, "सरकारी अस्पताल में रेजिडेंट्स डॉक्टरों पर जिम्मेदार हैं. इन्हीं के भरोसे पूरी अस्पताल चलती है. सीनियर डॉक्टरों को अपना प्राइवेट अस्पताल चलाने में ज्यादा इंटरेस्ट है."

हमें संस्थान से दवाइयां नहीं मिली-डीन
अस्पताल के डीन ने बताया कि हम थर्ड लेवल के देखभाल केंद्र हैं और 50 से 60 किलोमीटर के दायरे में एकमात्र सरकारी अस्पताल हैं. इसलिए दूर-दूर से मरीज हमारे पास आते हैं. डीन ने बताया कि हमें हाफकिन नाम के एक संस्थान से दवाइयां खरीदनी थीं, लेकिन ऐसा नहीं हो पाया. इसलिए हमने स्थानीय स्तर पर दवाएं खरीदीं और मरीजों को मुहैया कराईं. कुछ दिनों में मरीजों की संख्या बढ़ जाती है और यह बजट के लिए समस्या पैदा कर देती है. बता दें कि एनसीपी सांसद हेमंत पाटिल ने मंगलवार को इस अस्पताल का दौरा किया था. इस दौरान गंदा टॉयलेट देखकर वो भड़क गए थे. पाटिल ने डीन से ही टॉयलेट साफ करवाया था.

सुप्रिया सुले ने संबंधित मंत्री का इस्तीफा मांगा
इस बीच NCP प्रमुख शरद पवार की बेटी सुप्रिया सुले ने इस घटना के लिए राज्य सरकार को जिम्मेदार ठहराया. उन्होंने सोशल मीडिया पर लिखा- नांदेड़ के एक सरकारी अस्पताल में हुई मौतें कोई संयोग नहीं है. इनकी जांच की जानी चाहिए. उन्होंने सरकार से सवाल पूछते हुए कहा कि क्या महाराष्ट्र के लोगों की जान इतनी सस्ती हो गई है. यह देरी और लापरवाही का मामला है. इस मामले में सख्त कार्रवाई होनी चाहिए. राज्य के संबंधित मंत्री का इस्तीफा भी लिया जाना चाहिए. साथ ही सभी मृतकों के परिजनों को मुआवजा भी दिया जाना चाहिए. शिंदे सरकार ने इस मामले में जांच की बात कही है.
 

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