न्यायपालिका के सामने सबसे बड़ी चुनौती न्याय की राह की बाधाएं दूर करना : CJI डी वाई चंद्रचूड़

उन्होंने यह भी कहा कि अदालतों को सुगम और समावेशी बनाने के लिए प्राथमिकता के आधार पर बुनियादी ढांचे में आमूलचूल परिवर्तन करने की जरूरत है. 

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सीजे‍आई ने अदालती अवसंरचना में आमूलचूल बदलाव की जरूरत बताई है. (फाइल)
नई दिल्ली :

प्रधान न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ ने मंगलवार को कहा कि भारतीय न्यायपालिका के सामने सबसे बड़ी चुनौती न्याय तक पहुंच की बाधाएं दूर करना और यह सुनिश्चित करना है कि न्यायपालिका समावेशी एवं पंक्ति में आखिरी छोर पर खड़े व्यक्ति के लिए सुगम हो. स्वतंत्रता दिवस पर राष्ट्र के नाम अपने संबोधन में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा उच्चतम न्यायालय के फैसलों के प्रभावी हिस्सों का क्षेत्रीय भाषाओं में अनुवाद करने के शीर्ष अदालत के कदम की सराहना किये जाने के शीघ्र बाद प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि अबतक शीर्ष अदालत के 9,423 निर्णयों का क्षेत्रीय भाषाओं में अनुवाद किया जा चुका है. 

उच्चतम न्यायालय परिसर में सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन (एससीबीए) द्वारा आयोजित स्वतंत्रता दिवस समारोह में अपने संबोधन में प्रधान न्यायाधीश ने शीर्ष अदालत के सभी 35,000 फैसलों को नागरिकों के सामने क्षेत्रीय भाषाओं में उपलब्ध कराने के लिए उसके (उच्चतम न्यायालय) द्वारा किये जा प्रयासों का भी उल्लेख किया. 

उन्होंने यह भी कहा कि अदालतों को सुगम और समावेशी बनाने के लिए प्राथमिकता के आधार पर बुनियादी ढांचे में आमूलचूल परिवर्तन करने की जरूरत है. 

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इस मौके पर केंद्रीय कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने कहा कि भारत को 2047 तक विकसित राष्ट्र बनाने के लिए रोडमैप जरूरी है. उन्होंने कानून के शासन को लोकतंत्र की बुनियाद बताया. 

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प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि लक्ष्य एक ऐसा न्यायतंत्र बनाना है जो लोगों के लिए अधिक सुगम तथा सस्ती हो तथा इंसाफ की प्रक्रियागत बाधाओं से मुक्ति पाने के लिए प्रौद्योगिकी के सामर्थ्य का दोहन किया जाना है. 

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एससीबीए के कार्यक्रम में प्रधान न्यायाधीश और कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल के अलावा शीर्ष अदालत के अन्य न्यायाधीश, अटॉनी जनरल आर वेंकटरमणी, एसीबीए के अध्यक्ष एवं वरिष्ठ वकील आदिश सी अग्रवाल एवं सचिव रोहित पांडे समेत बार एसोसिएशन के पदाधिकारी मौजूद थे. 

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प्रौद्योगिकी के इस्तेमाल की वकालत
प्रधान न्यायाधीश ने 27 अतिरिक्त अदालतों, चार रजिस्ट्रार अदालत कक्षों तथा वकीलों एवं वादियों के वास्ते पर्याप्त सुविधाओं की खातिर नये भवन का निर्माण कर शीर्ष अदालत का विस्तार किये जाने की योजना का भी जिक्र किया. उन्होंने कहा कि अदालतों को सुगम और समावेशी बनाने के लिए , ‘‘हमें प्राथमिकता के आधार पर अपनी अदालती अवसंरचना में  आमूलचूल बदलाव करने की जरूरत है.''उन्होंने अकर्मण्यता दूर करने के लिए न्यायिक प्रक्रिया में प्रौद्योगिकी के इस्तेमाल को सबसे अच्छा उपाय बताया. 

रोडमैप तैयार करना होगा : मेघवाल 
मेघवाल ने अपने संबोधन में कहा कि जब आजादी के 75 वें वर्ष को ‘आजादी के अमृत महोत्सव' के रूप मनाया जा रहा है तब यह भारत की यात्रा विश्लेषण करने और यह पता करने का मौका है कि क्या भारत अपने गंतव्य पर पहुंचा. उन्होंने कहा , ‘‘किसी देश को विकसित बनाने के लिए रोडमैप जरूरी है. हमें रोडमैप बनाना होगा. सभी को भारत को विकसित देश बनाने की प्रक्रिया में मिलकर आगे बढ़ना है.''उन्होंने कहा कि पश्चिमी दार्शनिकों के अनुसार मैग्नाकार्टा से पहले ‘कानून के शासन और व्यक्ति के शासन में टकराव था.'

लोकतांत्रिक परंपराओं का इतिहास 
उन्होंने कहा कि मैग्नाकार्टा की धारा 35 व्यवस्था देती है कि भविष्य में कानून का शासन होगा जो लोकतंत्र की बुनियाद है लेकिन भारत में लोकतांत्रिक परंपराओं का इतिहास रहा है जो गौतमबुद्ध के काल में ‘सभाओं' में नजर आया, जिसका संत रविदास एवं अन्य ने जिक्र किया. कानून मंत्री ने वकीलों को आश्वासन दिया कि वकील सुरक्षा कानून से जुड़ी बातों एवं वकील चैंबर्स समेत उनके मुद्दों पर मंत्रालय द्वारा गौर किया जा रहा है. 

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(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)
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