नई दिल्ली: अधिकारियों के मुताबिक, भारत को मैला ढोने की प्रथा से मुक्त घोषित करने की सरकार की समय-सीमा नजदीक आ रही है, लेकिन देश के लगभग 246 जिलों ने अभी तक खुद को इस अमानवीय प्रथा से मुक्त घोषित नहीं किया है. सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्री वीरेंद्र कुमार की अध्यक्षता में केंद्रीय निगरानी समिति की आठवीं बैठक में इस विषय पर चर्चा हुई.
बैठक में साझा किये गये आंकड़ों के अनुसार देश के 766 जिलों में से करीब 520 जिलों ने खुद को मैला ढोने की प्रथा से मुक्त घोषित किया है, वहीं 246 जिलों ने अभी तक रिपोर्ट नहीं दी है. सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय की एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, ‘‘मैं संबंधित राज्यों से आग्रह करुंगी कि हमें रिपोर्ट दें क्योंकि हम भारत को अगस्त 2023 तक मैला ढोने की प्रथा से मुक्त घोषित करने के अपनी संकल्पना को पूरा करने के लिए प्रतिबद्ध हैं.''
उन्होंने कहा कि जिन राज्यों ने अभी तक रिपोर्ट नहीं सौंपी है उन्हें या तो अपने सभी जिलों को मैला ढोने की कुप्रथा से मुक्त घोषित करना होगा या मौजूदा अस्वच्छ शौचालयों और मैला ढोने वालों, यदि कोई हो, की जानकारी देनी होगी, ताकि ऐसे लोगों को अपेक्षित पुनर्वास का लाभ दिया जा सके और अस्वच्छ शौचालयों को स्वच्छ भारत मिशन के तहत स्वच्छ शौचालयों में परिवर्तित किया जा सके.
मंत्रालय ने कहा कि राज्यों या जिलाधिकारियों को अब तक 20 बार रिपोर्ट जमा करने को कहा जा चुका है. अधिकारियों के अनुसार मध्य प्रदेश में 52 में से 35 जिलों ने रिपोर्ट नहीं सौंपी है, वहीं महाराष्ट्र में 36 जिलों में से 21 जिलों ने अभी तक खुद को मैला ढोने की कुप्रथा से मुक्त घोषित नहीं किया है. आंकड़ों के मुताबिक 14 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में सफाई कर्मचारियों के लिए राज्य स्तरीय आयोग नहीं हैं.
ये भी पढ़ें:-
"शिवसेना क्यों और BJP क्यों नहीं"? शरद पवार ने बागियों के हर सवालों का दिया जवाब
(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)