- पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद में TMC से निलंबित विधायक हुमायूं कबीर आज बाबरी मस्जिद की आधारशिला रखेंगे.
- आयोजन के लिए करीब 60 से 70 लाख रुपये का बजट निर्धारित किया गया है और बड़ी संख्या में तैयारियां की जा रही हैं.
- भाजपा नेता अर्जुन सिंह ने हुमायूं कबीर को मस्जिद निर्माण पर गंभीर परिणाम भुगतने की चेतावनी दी है.
पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद जिले के बेलडांगा में तृणमूल कांग्रेस (TMC) के निलंबित विधायक हुमायूं कबीर आज बाबरी मस्जिद शैली की एक मस्जिद का शिलान्यास करने जा रहे हैं. इस मस्जिद निर्माण के लिए दूर-दूर से लोग पहुंच रहे हैं. ऐसे में उत्तर बारासात निवासी मोहम्मद सफीकुल इस्लाम सिर पर ईंटें ढोते हुए चल रहे हैं. सफीकुल का कहना है कि उनका योगदान बाबरी मस्जिद के निर्माण में जाएगा. मोहम्मद सफीकुल इस्लाम कहते हैं, 'मैं सिर पर इन ईंटों को रखकरा वहां ले जा रहा हूं जहां हुमायूं कबीर बाबरी मस्जिद की आधारशिला रखेंगे. मैं बाबरी मस्जिद निर्माण के लिए यहां आया हूं.'
सफीकुल ने कहा कि उन्हें मस्जिद बनने से बहुत खुशी है. बता दें कि पश्चिम बंगाल के एकमात्र उत्तर-दक्षिण मुख्य राजमार्ग एनएच (राष्ट्रीय राजगमार्ग)-12 के किनारे स्थित विशाल आयोजन स्थल पर तैयारियां उसी जोर-शोर से चल रही हैं जैसी आमतौर पर बड़े स्तर के राजनीतिक कार्यक्रमों के लिए होती हैं. कबीर ने कहा कि समारोह बजे 10 बजे कुरान की आयतों के साथ शुरू होगा और दोपहर में आधारशिला रखी जाएगी.
60-70 लाख है इस आयोजन का बजट
इस समारोह के लिए सऊदी अरब से मौलवियों को बुलाने की बात कही गई है. मेहमानों के लिए 40,000 पैकेट और स्थानीय लोगों के लिए 20,000 पैकेट बिरयानी तैयार की जा रही है. आयोजन का बजट 60-70 लाख रुपये बताया जा रहा है. मंच 150 फुट लंबा और 80 फुट चौड़ा होगा, जिसकी लागत करीब 10 लाख रुपये है.
इस बीच, भाजपा नेता अर्जुन सिंह ने कबीर को चेतावनी दी है कि अगर वह बाबरी मस्जिद की तर्ज पर मस्जिद की आधारशिला रखते हैं तो गंभीर परिणाम भुगतने होंगे. राज्य सरकार ने इलाके में अतिरिक्त सुरक्षा बल तैनात कर दिए हैं. राज्यपाल सी वी आनंद बोस ने लोगों से शांति बनाए रखने और अफवाहों से बचने की अपील की है.
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अदालत ने रोक लगाने से किया इनकार
कलकत्ता हाई कोर्ट ने मस्जिद निर्माण को रोकने की याचिका पर हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया है. दरअसल गुरुवार को दायर जनहित याचिका में इस आधार पर आयोजन पर रोक लगाने की अपील की गई थी कि इससे क्षेत्र में सांप्रदायिक सद्भाव बिगड़ सकता है. याचिकाकर्ता ने प्रार्थना की कि अदालत कबीर की भड़काऊ टिप्पणियों के खिलाफ तत्काल कार्रवाई करे जिन्होंने कथित तौर पर सांप्रदायिक सद्भाव बिगाड़ा है. याचिका में कहा गया है, 'रिट याचिका मुर्शिदाबाद के बेलडांगा ब्लॉक एक में बाबरी मस्जिद के शिलान्यास को, कानून-व्यवस्था बनाए रखने के लिए रोकने से संबंधित है. विधायक एक समुदाय के खिलाफ अशोभनीय और अपमानजनक बातें और अभद्र भाषा का इस्तेमाल कर रहे हैं, जिससे सार्वजनिक शांति भंग होती है.'
कौन हैं हुमायूं कबीर? विवादों में उलझा रहा है सफर
पश्चिम बंगाल में कभी ममता बनर्जी की पहली कैबिनेट में मंत्री रहे और वर्तमान में तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) के सबसे विवादास्पद असंतुष्टों में से एक विधायक हुमायूं कबीर एक बार फिर राजनीतिक सुर्खियों में हैं. हुमायूं कबीर ने इस बार छह दिसंबर को बाबरी मस्जिद विध्वंस की बरसी पर एक और बाबरी मस्जिद की आधारशिला रखने की योजना की घोषणा करके राज्य की राजनीति में भूचाल पैदा कर दिया है. कबीर (62) मुर्शिदाबाद की अल्पसंख्यक राजनीति में शायद सबसे अप्रत्याशित पहलू बनकर उभरे हैं. टीएमसी में उनके विरोधी इसे ‘हुमायूं समस्या' कहते हैं, जबकि उनके समर्थकों को उनका यह अंदाज पसंद है और कबीर खुद इसे नियति कहते हैं.
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हिंदुओं पर दिया था विवादित बयान
3 जनवरी, 1963 को जन्मे कबीर ने 90 के दशक की शुरुआत में युवा कांग्रेस के जरिए सार्वजनिक जीवन में प्रवेश किया था और 2011 में कांग्रेस उम्मीदवार के रूप में रेजिनगर से जीत हासिल की. एक साल बाद, वे तृणमूल कांग्रेस में शामिल हो गए और उन्हें कैबिनेट में जगह मिली. तीन साल बाद, ममता बनर्जी पर उनके भतीजे अभिषेक को लेकर आरोप लगाने के बाद कबीर को छह साल के लिए निष्कासित कर दिया गया और इस घटना ने उनकी छवि एक प्रकृति से विरोधी नेता के रूप में स्थापित हुई. अगर राजनीति को एक मैराथन मान लिया जाए तो कबीर लंबी रेस के घोड़े की तरह दौड़ते हैं. कबीर ने 2016 का विधानसभा चुनाव निर्दलीय के रूप में लड़ा और हार गए. वर्ष 2018 में वे भाजपा में शामिल हुए, 2019 में उन्होंने मुर्शिदाबाद लोकसभा सीट से चुनाव लड़ा और हार गए. छह साल का निष्कासन समाप्त होने पर, वह 2021 के चुनाव से ठीक पहले तृणमूल कांग्रेस में लौट आए और भरतपुर सीट से जीत दर्ज की.
2024 के लोकसभा चुनाव प्रचार के दौरान, 70:30 मुस्लिम-हिंदू अनुपात वाले एक जिले में, उन्होंने दावा किया कि वे 'हिंदुओं को दो घंटे के भीतर भागीरथी में फेंक सकते हैं.' इस टिप्पणी के लिए उन्हें प्रधानमंत्री सहित पूरे देश की आलोचना झेलनी पड़ी, और पार्टी की ओर से एक और कारण बताओ नोटिस भी मिला. महीनों बाद, उन्हें फिर से फटकार लगाई गई और इस बार अभिषेक बनर्जी को उप-मुख्यमंत्री बनाने की बात कहने पर. इसके बाद उन्होंने माफी तो मांगी, लेकिन अनचाहे मन से. तृणमूल से इस निलंबन ने कबीर को भले ही हाशिये पर धकेल दिया हो लेकिन इससे उनके उस मार्ग पर तेजी से बढ़ने की संभावना है जो वह बहुत पहले से तैयार कर चुके थे. उनकी हालिया राजनीतिक बयानबाजी से ऐसे नेता की छवि की झलक नहीं मिलती जो अनुशासनात्मक कार्रवाई से अचंभित है, बल्कि ऐसे नेता की ओर इशारा करती है जो अपने अगले कदम की तैयारी कर रहा है.













