क्या थाईलैंड से दुबई से भाग गए हैं भगोड़े लूथरा भाई, वहां से भारत वापस लाना कितना मुश्किल?

भारत और संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) के बीच 2000 से प्रत्यर्पण संधि लागू है, लेकिन लूथरा भाइयों को वहां से वापस लाना आसान नहीं होने वाला है.

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  • गोवा के क्लब Romeo Lane में आग लगने के बाद मालिक सौरभ और गौरव लूथरा देश छोड़कर भाग गए हैं
  • भारत-यूएई के बीच 2000 से प्रत्यर्पण संधि है, जिसके तहत गंभीर अपराधों में आरोपियों को लाया जा सकता है
  • प्रत्यर्पण का मुकदमा दुबई की अदालत में चलेगा और भारत को साबित करना होगा कि लूथरा भाई सीधे जिम्मेदार हैं
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इधर गोवा के बर्च बाय रोमियो लेन नाइट क्लब में धधकी आग लोगों की जानें लील रही थी, उधर क्लब के मालिक लूथरा ब्रदर्स इंडिगो में विमान में सवार होकर थाईलैंड फरार हो गए. सौरभ लूथरा और गौरव लूथरा को भारत इंटरपोल के जरिए ब्लू कॉर्नर नोटिस जारी कराकर पकड़ने के प्रयास में  है. हालांकि चर्चा है कि दोनों भाई दुबई भाग सकते हैं. सूत्र बताते हैं कि सौरभ और गौरव का दुबई में भी घर है. परिवार के कुछ लोग भी वहां रहते हैं. ऐसे में सवाल उठता है कि दोनों भाई भागकर दुबई गए तो उन्हें वहां से लाना कितना मुश्किल हो सकता है. आइए देखते हैं. 

भारत-UAE में 2000 से प्रत्यर्पण संधि लागू

भारत और संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) के बीच प्रत्यर्पण संधि है, लेकिन किसी आरोपी को लाना आसान काम नहीं है. भारत और यूएई के बीच प्रत्यर्पण संधि पर 25 अक्टूबर 1999 को दस्तखत हुए थे और 29 मई 2000 से यह लागू हो चुकी है. मतलब यह है कि दोनों देश इस संधि से बंधे हैं और कानूनी रूप से एक-दूसरे के यहां मौजूद भगोड़ों को प्रत्यर्पित कर सकते हैं. 

इन नियमों के तहत ही प्रत्यर्पण संभव

इस प्रत्यर्पण संधि के कुछ नियम हैं और इन्हीं के अनुरूप किसी अपराधी का प्रत्यर्पण हो सकता है. प्रत्यर्पण के लिए भारत को पूरी प्रक्रिया का पालन करना होगा, तभी उसके आवेदन पर विचार किया जा सकता है. प्रत्यर्पण सिर्फ एक साल या उससे अधिक की सजा वाले अपराधों के आरोपियों का ही सकता है. इस संधि का अनुच्छेद 2 कहता है कि प्रत्यर्पण सिर्फ उन्हीं मामलों में हो सकता है, जो दोनों देशों के कानून में अपराध हों. लूथरा भाइयों पर गंभीर लापरवाही से मौत और सुरक्षा मानकों की अनदेखी जैसे आरोप हैं. ये भारत और यूएई दोनों देशों में क्राइम की कैटिगरी में आते हैं.  

वर्षों तक खिंच सकता है मामला

अगर गिरफ्तारी से 45 दिन के अंदर प्रत्यर्पण संधि से संबंधित वांछित कागजात नहीं सौंपे जाते तो आरोपी को रिहा किया जा सकता है. अगर भारत 60 दिन के अंदर दस्तावेज नहीं दे पाता, तब भी आरोपियों को छोड़ा जा सकता है. ऐसे में कहा जा सकता है कि अदालतों में अपील, दस्तावेजी प्रक्रिया और मानवाधिकार की दलीलों के कारण मामला वर्षों तक खिंच सकता है. 

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असंभव नहीं, पर आसान भी नहीं

हालांकि दुबई से प्रत्यर्पण नामुमकिन नहीं होगा. भारत और यूएई के बीच प्रत्यर्पण संधि की वजह से पहले भी कई कुख्यात आरोपियों को भारत लाया जा सका है. इनमें 2019 में अगस्ता वेस्टलैंड मामले के आरोपी किश्चियन माइकल, दीपक तलवार व राजीव सक्सेना भी हैं. हाल ही में सितंबर में बब्बर खालसा के आतंकी परमिंदर सिंह को अबू धाबी से प्रत्यर्पित करके लाया गया था. हालांकि महादेव ऐप के प्रमोटर सौरभ चंद्राकर व रवि उप्पल के अलावा अंतर्राष्ट्रीय ड्रग तस्कर वीरेंद्र बसोया, जसविंदर सिंह, ऋतिक बजाज समेत कई अपराधियों को वापस लाना टेढ़ी खीर साबित हुआ है. 

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