"नरेंद्र मोदी को उकसाएंगे, तो मुश्किल में आ जाएंगे..." : NDTV से बोले विचारक एस. गुरुमूर्ति

जाने-माने विचारक एस. गुरुमूर्ति ने NDTV के एडिटर-इन-चीफ़ संजय पुगलिया के साथ बातचीत में कहा कि यही वक्त था, जब BJP ने तमिलनाडु में एन्ट्री ली. अगर उकसावे की बात करें, तो नरेंद्र मोदी उन लोगों में से नहीं हैं कि 'मोदी गो बैक' के नारे को हल्के में लें.

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NDTV Battleground: तमिलनाडु की राजनीति पर बीजेपी की नजर.
चेन्नई:

लोकसभा चुनाव (Lok Sabha Elections 2024) नजदीक हैं, ऐसे में तमिलनाडु का चेन्नई इन दिनों मोदी 3.0 प्लान के लिए बड़ा युद्ध क्षेत्र बना हुआ है.आखिर नरेंद्र मोदी का फोकस तमिलनाडु पर इतना क्यों हैं?  इस सवाल के जवाब के लिए एनडीटीवी के एडिटर-इन-चीफ संजय पुगलिया (Sanjay Pugalia) ने NDTV Battleground में फेमस थिंकर एस गुरुमूर्ति (S Gurumurthy) से खास बातचीत की. यह पूरा इंटरव्यू मंगलवार दोपहर 1 बजे और रात नौ बजे NDTV इंडिया पर प्रसारित किया जाएगा. दक्षिणी राज्य तमिलनाडु में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बिग पुश के सवाल पर फेमस थिंकर एस गुरुमूर्ति ने कहा कि डीएमके अपनी तरह से राजनीति करने में लगी है, वह अब थकी हुई नजर आ रही है. एस गुरुमूर्ति ने कहा कि डीएमके ने "मोदी वापस जाओ" के नारे लगाकर पीएम मोदी को और उकसाने की कोशिश की, जबकि प्रधानमंत्री मोदी उकसावे को हल्के में नहीं लेते हैं. 

बीजेपी के सामने फीकी पड़ी AIADMK और DMK की चमक

उन्होंने कहा कि जयललिता और करुणानिधि के बाद AIADMK, DMK दोनों ही दलों में अब पहले जैसी बात नहीं रही. दोनों ही दल अपनी गूंज दिखा पाने में की पोजिशन में अब नहीं रहे. AIADMK का रोल डीएमके की खिलाफत करना था. जबकि डीएमके हमेशा ही द्रविड़ियन की राजनीति करता रहा है. डीएमके का काम तमिलनाडु को द्रविड़ियन विचारधारा को लेकर फिर से परिभाषित करना था, चाहे वह सीधे तौर पर या फिर घुमा फिराकर एंटी हिंदू हो या फिर एंटी ब्राह्मण, डीएमके ने इन सब को द्रविणियन विचारधारा की तरफ मोड़ दिया. करुणानिधि ये बात अच्छी तरह से जानते थे. हालांकि, उनके बाद इस दल को भी दूसरे दलों की तरह ही परिवार द्वारा चलाया जा रहा है.

द्रविड़ राजनीति को बीजेपी की चुनौती

फेमस थिंकर एस गुरुमूर्ति ने कहा कि मानव संसाधन के मामले में तमिलनाडु शायद देश का सबसे अच्छा राज्य है. लेकिन शायद यहीं सबसे ज्यादा हिंदू आबादी है. ज्यादातर लोगों को यह नहीं पता है कि तमिलनाडु की कानूनी जड़ें इतनी मजबूत हैं कि इसे 1960 या 70 के दशक में द्रविड़ियन आंदोलन पर इसकी छाप रही. उसके बाद समाज का विश्वास कम होने लगा, लेकिन समाज में अचानक से विश्वास बढ़ गया. राजनीति को यह नहीं पता था कि विश्वास से भरे समाज को कैसे हैंडल किया जाए. इसीलिए डीएमके स्थिर हो गई. इसीलिए इस पार्टी के भीतर बड़े स्तर पर वैचारिक कंफ्यूजन पैदा हो गया.

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तमिलनाडु में कब हुई बीजेपी की एंट्री?

फेमस थिंकर ने कहा कि यही वक्त था जब बीजेपी ने तमिलनाडु में एंट्री ली. अगर उकसावे की बात करें तो नरेंद्र मोदी उन लोगों में से नहीं हैं कि 'मोदी गो बैक' के नारे को हल्के में लें. अगर कोई नरेंद्र मोदी को उकसाएंगा तो मुश्किल में आ जाएगा. उनकी योजना कोई तीन या चार महीने की नहीं है, बल्कि दशकों पुरानी है. इसी वजह से उन्होंने तमिल प्लेटफॉर्म पर आगे बढ़ने का फैसला किया है. इसीलिए उन्होंने चाहे संयुक्त राष्ट्र हो या फिर ऑस्ट्रेलिया और मलेशिया, वह जहां कहीं भी जाते हैं, तमिलनाडु का जिक्र जरूर करते हैं. तमिलनाडु को यह पता ही नहीं है कि नरेंद्र मोदी को कैसे हैंडल करना है. डीएमके भी इस बात को समझ ही नहीं पा रहा है.

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दक्षिणी राज्य तमिलनाडु पर बीजेपी की नजर

 लोकसभा चुनाव को लेकर सभी दलों ने अपना पूरा दमखम लगा दिया है. बीजेपी का लक्ष्य देशभर में 370 सीटें जीतने का है. वहीं एनडीए के लिए 400 का टारगेट रखा गया है. बीजेपी उत्तर भारत के कई राज्यों में पहले से ज्यादा मजबूत हुई है और पहले से ही ज्यादातर सीट जीत चुकी है. लोकसभा चुनाव के मद्देनजर सीटें बढ़ाने के लिए तमिलनाडु समेत दक्षिण भारत के राज्य बहुत ही अहम  माने जा रहे हैं. तमिलनाडु में बीजेपी पीएमके समेत 3 दलों के साथ गठबंधन कर चुनावी मैदान में है. पहली बार बीजेपी राज्य में मजबूती के साथ चुनावी मैदान में है. बीजेपी ने तमिलनाडु में डीएमके की द्रविड़ राजनीति को चुनौती दी है.  

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