भुरभुरी चट्टानें, भारी बारिश; वायनाड में क्यों आ गया मौत का सैलाब, साइंटिस्ट से समझिए

डॉक्टर नवीन जुयाल ने बताया कि पश्चिमी घाट पर स्थित इन हिस्सों में हिमालय की तुलना में काम करना आसान है. लेकिन रिपोर्ट को नजर अंदाज करने के कारण इस तरह की घटनाएं हुई है.

विज्ञापन
Read Time: 4 mins

केरल के वायनाड जिले में भूस्खलन की घटना में भारी तबाही हुई है. इस मामले में अब तक 84 लोगों की मौत की पुष्टि हो चुकी है. सैकड़ों अन्य लोग अब भी फंसे हुए हैं. जानकारी के मुताबिक भूस्खलन से सबसे ज्यादा प्रभावित इलाकों में चूरलपारा, वेलारीमाला, मुंडकायिल और पोथुकालू शामिल हैं. एनडीआरएफ (NDRF) की टीमें रेस्क्यू ऑपरेशन में जुटी हुई हैं. युद्ध स्तर पर राहत और बचाव कार्य जारी है. साल 2018 में भी केरल में इस तरह की घटनाएं हुई थी. उस दौरान भी बहुत अधिक बारिश के कारण भूस्खलन हुआ था. 2014 में महाराष्ट्र में भी भूस्खलन की घटना हुई थी. इस तरह की घटनाएं क्यों हो रही है इसके पीछे के कारणों को जानने के लिए एनडीटीवी ने जियोलॉजिस्ट डॉक्टर नवीन जुयाल से बात की. उन्होंने इस तरह की घटनाओं के लिए जिम्मेदार भौगोलिक कारणों को बताया. 

भूस्खलन का क्या है सबसे अहम कारण? 
डॉक्टर नवीन जुयाल ने बताया कि केरल का जो यह हिस्सा है वो वेस्टर्न घाट के अंतर्गत आता है. वायनाड का एक बहुत बड़ा हिस्सा पश्चिमी घाट के अंतर्गत आता है. पश्चिमी घाट की जो चट्टानें हैं वो थोड़ी भुरभुरी होती है. इसमें क्ले की मात्रा अधिक होती है. जब इसपर पानी पड़ती है तो यह फैलती है. इस दौरान यह ढलान में फिसलती है और यह स्वाभाविक कारण है. इस क्षेत्र में यह भौगोलिक घटनाएं होती है. लेकिन सबसे अहम बात यह है कि साल 2018 के बाद 2019 में एक महत्वपूर्ण रिपोर्ट दीपा शिवदास और उनकी टीम ने वायनाड को लेकर तैयार की थी. उन्होंने रिपोर्ट में बताया था कि वायनाड जिले में 242 लेंडस्लाइड वाले केस आइडेंटिफाई हुए हैं. इस कारण यहां के ढलान थोड़े सेंसेटिव हैं. 

डॉक्टर नवीन जुयाल ने बताया कि पॉलिसी बनाने वालों के पास घटना से पहले ही एक दस्तावेज था जिससे हम जान रहे थे कि यह क्षेत्र सबसे अधिक संवेदनशील है. उन्होंने कहा कि सरकार को इस रिपोर्ट के 4.9 नंबर को देखने की जरूरत है. इसमें साफ कहा गया है कि वायनाड के 360 वर्ग किलोमीटर का क्षेत्र भूस्खलन को लेकर बेहद संवेदनशील है. इस क्षेत्र में हमेशा इस तरह की छोटी-छोटी घटनाएं होती रहती है. 

ढलान को बिना ध्यान में रखे हो रहा विकास है जिम्मेदार: डॉक्टर नवीन जुयाल
जियोलॉजिस्ट ने बताया कि सड़क के निर्माण और अन्य विकास कार्यों के लिए ढलानों को काटा जा रहा है. यह भी एक बेहद अहम कारक है जिस कारण मिट्टी नीचे की तरफ खिसक रही है. लेकिन समस्या यह है कि 2019 की रिपोर्ट को किसी ने तवज्जो नहीं दी. इस रिपोर्ट में सीधे तौर पर कहा गया भूस्खलन को लेकर यह क्षेत्र बेहद संवेदनशील है. एक्सपर्ट ने बताया कि इस हिस्से में भारी बारिश होती है.  लगभग 2 हजार एमएम तक बारिश होती है. वैसे हालत में अगर हम ढलान को सुरक्षित नहीं करेंगे तो इस तरह की घटनाएं होगी ही. 

Advertisement

हिमालय की तुलना में कम है रिस्क फिर भी क्यों हुआ हादसा? 
वायनाड की जितनी भी नदियां है वो वेस्ट से ईस्ट की तरफ बहती है. ये नदियां मानसून पर निर्भर है. हिमालय की तुलना में इस हिस्से में काम करना अधिक आसान है. हिमालय के क्षेत्र में चट्टानों का स्वरूप लगभग हर किलोमीटर के बाद बदल जाता है. लेकिन इस जगह पर ऐसी बात नहीं है. इन जगहों पर नदियों का प्रवाह 2 बातों से तय होता है. पहला ढलान से दूसरा बारिश से. नदी के प्रवाह में बारिश से तेजी आती है. ऐसे हालत में हमें यह पता होना चाहिए कि कौन सा क्षेत्र प्रभावित होगा और कौन सा क्षेत्र नहीं होगा. केरल में लोग पढ़े लिखे हुए हैं लेकिन क्यों वो इन बातों को नहीं समझ पाए. केरल को इस मामले में एक माइल स्टोन बनाने की जरूरत थी. 

Advertisement

ये भी पढ़ें-: 

खौफनाक मंजर..! वायनाड में पानी के तेज बहाव के बीच चट्टान से चिपककर जान बचाते दिखा व्यक्ति

Featured Video Of The Day
Manmohan Singh Death Update: पूर्व PM मनमोहन सिंह के निधन पर देश में 7 दिन का राष्ट्रीय शोक
Topics mentioned in this article