- लगभग 62 एकड़ में फैला गांधी मैदान अपनी ऐतिहासिक संरचनाओं और गांधीजी की प्रतिमा के कारण आज भी प्रासंगिक है.
- गांधी मैदान ने महात्मा गांधी, राजेंद्र प्रसाद, सुभाष चंद्र बोस और जेपी जैसे नेताओं को मंच प्रदान किया
- यह मैदान बिहार की राजनीति का प्रमुख रंगमंच रहा है जहां कई सरकारें बनीं, टूटें और महत्वपूर्ण आंदोलन हुए.
पटना का गांधी मैदान: इतिहास, जनचेतना, सत्ता और संघर्ष की वह विशाल भूमि जिसने सदियों की राजनीति, संस्कृति और सामाजिक धड़कनों को अपनी मिट्टी में समेट रखा है.
पटना के केंद्र में पसरा गांधी मैदान सिर्फ एक खुला मैदान नहीं, यह बिहार की आत्मा के सबसे पुराने और सबसे जीवंत हिस्सों में से एक है. यह वह जगह है जहां सदियों पुराने इतिहास और आधुनिक राजनीति की आवाजें एक साथ सुनाई देती हैं. जहां हर इंच मिट्टी किसी पुरानी कहानी का टुकड़ा समेटे हुए है. जहां जनता की भीड़ सिर्फ लोगों की भीड़ नहीं, बल्कि बदलते बिहार का चेहरा बनकर खड़ी होती है.
गांधी मैदान का जन्म- जब पटना ने एक नई खुली जगह को राजनीति और संस्कृति का केंद्र बनाया
ब्रिटिश काल में इसे बांकीपुर मैदान के नाम से जाना जाता था. 19वीं सदी के मध्य में अंग्रेजों ने इसे शहर के बीच एक बड़े सार्वजनिक स्थल के रूप में विकसित किया. खुली जगहों का निर्माण उनके शहरी ढांचे का हिस्सा था, लेकिन यह जमीन आगे चलकर अंग्रेजों के खिलाफ सबसे बड़े जनसंघर्ष का केंद्र बन जाएगी, यह शायद खुद उन्हें भी नहीं पता था.
स्वतंत्रता संघर्ष के उफान के दौरान इस मैदान ने महात्मा गांधी, राजेंद्र प्रसाद, सुभाष चंद्र बोस और जेपी जैसे नेताओं के भाषण सुने. धीरे-धीरे यह जगह राजनीति और जनांदोलनों का धड़कता केंद्र बन गया. आजादी के बाद इसका नाम बदलकर गांधी मैदान रखा गया. जो कि एक प्रतीक, एक स्मृति, और एक संकल्प के रूप में शहर को गौरवांवित कर रहा है.
बिहार की राजनीति का सबसे बड़ा रंगमंच
गांधी मैदान उन दुर्लभ जगहों में से है, जिसने कई सरकारों को बनते, कई गठबंधनों को टूटते और कई नेताओं को उभरते देखा है. यह मैदान अक्सर बिहार की राजनीतिक दिशा तय करने वाला साबित हुआ.
जेपी आंदोलन
यहीं से लोकनायक जयप्रकाश नारायण ने बिहार ही नहीं, पूरे देश की राजनीति बदल देने वाला आंदोलन छेड़ा था. उनके शब्द, 'संपूर्ण क्रांति अब नारा है' आज भी इसी मिट्टी में गूंजते हैं.
कर्पूरी ठाकुर की रैलियां
फिर कर्पूरी ठाकुर का दौर आया जिनकी जनसभाएं इस मैदान की पहचान बन गई थीं.
लालू यादव की अभूतपूर्व रैलियां
इसके बाद 90 के दशक में गांधी मैदान ने लालू का दौर भी देखा. ये वो वक्त था जब लालू यादव की आवाज हजारों की भीड़ को इसी जगह से संबोधित करती थी. यब भीड़ खुद एक राजनीतिक शक्ति बन जाती थी.
नीतीश कुमार का सत्ता मार्ग
नीतीश कुमार के कई शपथ समारोह, परिवर्तन रैलियां और ऐतिहासिक सभाएं भी इसी मैदान से निकली हैं. बिहार में शासन की कहानी का हर महत्वपूर्ण अध्याय कहीं ना कहीं गांधी मैदान से होकर गुजरता है. आज फिर वही मौका है. नीतीश एक बार फिर राज्य की बागडोर संभालने जा रहे हैं. नीतीश के इस अहम पल को ऐतिहासिक बनाने के लिए इसी गांधी मैदान को चुना गया है.
नीतीश के शपथ ग्रहण समारोह के लिए तैयार पटना का गांधी मैदान.
Photo Credit: PTI
सांस्कृतिक और सामाजिक आयोजनों का महाकेंद्र
यह केवल राजनीति का मंच नहीं, यह संस्कृति का महामंच भी है. दशहरा का विशाल उत्सव, पटना बुक फेयर, अंतरराष्ट्रीय सांस्कृतिक कार्यक्रम, स्वतंत्रता और गणतंत्र दिवस समारोह, खादी मेले, खेल आयोजन. यानी यह कहा जा सकता है कि गांधी मैदान ने साहित्य, संगीत, शिल्प और लोकसंस्कृति का भी उतना ही स्वागत किया है जितना कि नेताओं का.
गांधी मैदान की संरचना
गांधी मैदान चारों तरफ लगभग गोल आकार में बना है, जिसका विस्तार करीब 62 एकड़ है. इसके चारों ओर सड़कें हैं, पुराने पेड़ हैं, ऐतिहासिक संरचनाए हैं और एक तरफ है गांधीजी की विशाल प्रतिमा जो इस जगह को जीवंत करती है.
इतना पुराना मैदान आज भी इतना प्रासंगिक है कि जब कोई बड़ी रैली होती है, जब कोई नई सरकार शपथ लेती है, जब कोई आंदोलन जन्म लेता है, जब कोई सांस्कृतिक कार्यक्रम अपने चरम पर होता है तो पटना का गांधी मैदान फिर जीवंत हो उठता है.
यानी यह कहना गलत नहीं होगा कि पटना का गांधी मैदान ऐसा जीवंत कैनवास है जिस पर बिहार की राजनीति, समाज और इतिहास ने अपनी सबसे गहरी लकीरें खींची हैं. यह वही जगह है जहां अतीत पलट कर खड़ा हो जाता है और वर्तमान अपनी राह चुनता है.














